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.अचयस्य इषाकायदाच्छास पर पदम् ..
साक्षप्त पापुराण
2 स्रान करनेवाले पुरुषोंके लिये समुद्रगामिनी पवित्र पितृ-पक्षमें अत्रदान करनेसे तथा ज्येष्ठ और आषाढ़ नदी प्रायः दुर्लभ होती है। कुलके अनुरूप उत्तम मासमें जल देनेसे मनुष्योंको जो फल मिलता है, वह शीलवाली कन्या, कुलीन और शीलवान् दम्पति, कार्तिकमें दूसरोंका दीपक जलाने मात्रसे प्राप्त हो जाता है। जन्मदायिनी माता, विशेषतः पिता, साधु पुरुषोंके जो बुद्धिमान् कार्तिकमें मन, वाणी और क्रियाद्वारा पुष्कर सम्मानका अवसर, धार्मिक पुत्र, द्वारकाका निवास, तीर्थका स्मरण करता है, उसे लाखों-करोड़ोगुना पुण्य भगवान् श्रीकृष्णका दर्शन, गोमतीका स्नान और होता है। माघ मासमें प्रयाग, कार्तिकमें पुष्कर और कार्तिकका व्रत-ये सब मनुष्यके लिये प्रायः दुर्लभ वैशाख मासमें अवन्तीपुरी (उज्जैन)-ये एक युगतक हैं। चन्द्रमा और सूर्यके ग्रहणकालमें ब्राह्मणोंको पृथ्वी उपार्जित किये हुए पापोंका नाश कर डालते हैं। दान करनेसे जिस फलकी प्राप्ति होती है, वह कार्तिकमें कार्तिकेय ! संसारमे विशेषतः कलियुगमें वे ही मनुष्य भूमिपर शयन करनेवाले पुरुषको स्वतः प्राप्त हो जाता है। धन्य हैं, जो सदा पितरोंके उद्धारके लिये श्रीहरिका सेवन ब्राह्मण-दम्पतिको भोजन कराये, चन्दन आदिसे उनकी करते हैं। बेटा ! बहुत-से पिण्ड देने और गयामें श्राद्ध पूजा करे। कम्बल, नाना प्रकारके रत्न और वस्त्र दान आदि करनेकी क्या आवश्यकता है। वे मनुष्य तो करे। ओढ़नेके साथ ही बिछौना भी दे। तुम्हें कार्तिक हरिभजनके ही प्रभावसे पितरोंका नरकसे उद्धार कर देते मासमें जूते और छातेका भी दान करना चाहिये । कार्तिक हैं। यदि पितरोंके उद्देश्यसे दूध आदिके द्वारा भगवान् मासमें जो मनुष्य प्रतिदिन पत्तलमें भोजन करता है, वह विष्णुको नान कराया जाय तो वे पितर स्वर्गमें पहुंचकर चौदह इन्द्रोंकी आयुपर्यन्त कभी दुर्गतिमें नहीं पड़ता। कोटि कल्पोंतक देवताओंके साथ निवास करते हैं। जो उसे सम्पूर्ण कामनाओं तथा समस्त तीर्थीका फल प्राप्त कमलके एक फूलसे भी देवेश्वर भगवान् लक्ष्मीपतिका होता है। पलाशके पत्तेपर भोजन करनेसे मनुष्य कभी पूजन करता है, वह एक करोड़ वर्षतकके पापोंका नाश नरक नहीं देखता; किन्तु वह पलाशके बिचले पत्रका कर देता है। देवताओंके स्वामी भगवान् विष्णु कमलके अवश्य त्याग कर दे। ..... . . एक पुष्पसे भी पूजित और अभिवन्दित होनेपर एक हजार र कार्तिकमें तिलका दान, नदीका सान, सदा साधु- सात सौ अपराध क्षमा कर देते हैं । षडानन ! जो मुखमें, पुरुषोका सेवन और पलाशके पत्तोंमें भोजन सदा मोक्ष मस्तकपर तथा शरीरमें भगवान्की प्रसादभूता तुलसीको देनेवाला है। कार्तिकके महीने में मौन-व्रतका पालन, प्रसन्नतापूर्वक धारण करता है, उसे कलियुग नहीं छूता। पलाशके पत्तेमें भोजन, तिलमिश्रित जलसे स्रान, निरन्तर भगवान् विष्णुको निवेदन किये हुए प्रसादसे जिसके क्षमाका आश्रय और पृथ्वीपर शयन करनेवाला पुरुष शरीरका स्पर्श होता है, उसके पाप और व्याधियाँ नष्ट हो युग-युगके उपार्जित पापोंका नाश कर डालता है। जो जाती हैं। शङ्खका जल, श्रीहरिको भक्तिपूर्वक अर्पण कार्तिक मासमें भगवान् विष्णुके सामने उपाकालतक किया हुआ नैवेद्य, चरणोदक, चन्दन तथा प्रसादस्वरूप जागरण करता है, उसे सहल गोदानोका फल मिलता है। धूप-ये ब्रह्महत्याका भी पाप दूर करनेवाले हैं।
न वेदसदर्श शास्त्र न तीर्थ गङ्गया समम्। न सत्येन समं वृत्तं न कृतेन समं युगम् ।। न तृप्ती रसनातुल्या न दानसदृशं सुखम्। न धर्मसदृश मित्र न ज्योतिश्चक्षुषा समम् ॥ (१२०।२२-२५)