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• अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् ...
[संक्षिप्त पापुराण
शान्ति करनेवाला पुरुष मूलसहित शुद्ध कुशोंको भगवान् वाराहको नमस्कार है। जिसके नखोका स्पर्श लेकर एकाग्रचित्त हो रोगीके सब अलोको झाड़े, वज्रसे भी अधिक तीक्ष्ण और कठोर है, ऐसे दिव्य विशेषतः विष्णुभक्त पुरुष रोग, ग्रह और विषसे पीड़ित सिंहका रूप धारण करनेवाले भगवान् नृसिंह ! आपको मनुष्यकी अथवा केवल विषसे ही कष्ट पानेवाले नमस्कार है। ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदसे लक्षित रोगियोंकी इस प्रकार शुभ शान्ति करे। पार्वती ! कुशसे होनेवाले परमात्मन् ! अत्यन्त लघु शरीरवाले कश्यपपुत्र झाड़ते समय सब रोगोंका नाश करनेवाले इस स्तोत्रका वामनका रूप धारण करके भी समूची पृथ्वीको एक ही पाठ करना चाहिये।
पगमें नाप लेनेवाले! आपको बारंबार नमस्कार है। ५. ॐ परमार्थस्वरूप, अन्तर्यामी, महात्मा, रूपहीन बहुत बड़ी दाढ़वाले भगवान् वाराह ! सम्पूर्ण दुःखों और होते हुए भी अनेक रूपधारी तथा व्यापक परमात्माको समस्त पापके फलोको सैद डालिये, रौंद डालिये। पापके नमस्कार है। वाराह, नरसिंह और सुखदायी वामन फलको नष्ट कर डालिये, नष्ट कर डालिये। विकराल भगवान्का ध्यान एवं नमस्कार करके श्रीविष्णुके उपर्युक्त मुख और दाँतोंवाले, नखोंसे उद्दीप्त दिखायी देनेवाले, नामोका अपने अङ्गोंमें न्यास करे । न्यासके पश्चात् इस पीड़ाओंके नाशक भगवान् नृसिंह ! आप अपनी प्रकार कहे-'मैं पापके स्पर्शसे रहित, शुद्ध, व्याधि गर्जनासे इस रोगीके दुःखोंका भञ्जन कौजिये, भञ्जन
और पापोंका अपहरण करनेवाले गोविन्द, पद्मनाभ, कौजिये। इच्छानुसार रूप ग्रहण करके पृथ्वी आदिको वासुदेव और भूधर नामसे प्रसिद्ध भगवान्को नमस्कार धारण करनेवाले भगवान् जनार्दन अपनी ऋक्, यजुः करके जो कुछ कहूँ, वह मेरा सारा वचन सिद्ध हो । तीन और साममयी वाणीद्वारा इस रोगीक सब दुःखोंकी शान्ति पगोंसे त्रिलोकीको नापनेवाले भगवान् त्रिविक्रम, सबके कर दे। एक, दो, तीन या चार दिनका अन्तर देकर हृदयमें रमण करनेवाले राम, वैकुण्ठधामके अधिपति, आनेवाले हलके या भारी ज्वरको, सदा बने रहनेवाले बदरिकाश्रममें तपस्या करनेवाले भगवान् नर, वाराह, ज्वरको, किसी दोषके कारण उत्पन्न हुए ज्वरको, नृसिंह, वामन और उज्ज्वल रूपधारी हयग्रीवको सन्निपातसे होनेवाले तथा आगन्तुक ज्वरको विदीर्ण कर नमस्कार है। हृषीकेश ! आप सारे अमङ्गलको हर उसकी वेदनाका नाश करके भगवान् गोविन्द उसे सदाके लीजिये। सबके हृदयमें निवास करनेवाले भगवान् लिये शान्त कर दें। नेत्रका कष्ट, मस्तकका कष्ट, वासुदेवको नमस्कार है। नन्दक नामक खङ्ग धारण उदररोगका कष्ट, अनुच्छ्वास (साँसका रुकना), करनेवाले सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्णको नमस्कार है। महाश्वास (साँसका तेज चलना-दमा), परिताप, कमलके समान नेत्रोंवाले आदि चक्रधारी श्रीकेशवको (ज्वर), वेपथु (कम्प या जूड़ी), गुदारोग, नासिकारोग, नमस्कार है। कमल-केसरके समान वर्णवाले भगवान्को पादरोग, कुष्ठरोग, क्षयरोग, कमला आदि रोग, प्रमेह नमस्कार है। पीले रंगके निर्मल वस्त्र धारण करनेवाले आदि भयङ्कर रोग, बातरोग, मकड़ी और चेवक आदि भगवान् विष्णुको नमस्कार है। अपनी एक दाढ़पर समस्त रोग भगवान् विष्णुके चक्रको चोट खाकर नष्ट हो समूची पृथ्वीको उठा लेनेवाले त्रिमूर्तिपति जायें। अच्युत, अनन्त और गोविन्द नामोंके उच्चारणरूपी
मेदे धराधरं देवं गुदे चैव गदाग्रजम् । पीताम्बरधर कट्यामूरुयुम्मे मधुद्विषम् ।। मुरद्विषं पिण्डकयोर्जानुयुग्मे जनार्दनम् । फणीश गुलपयोधस्य क्रमयोश्च त्रिविक्रमम् ॥ पादाङ्गले श्रीपति च पादाधो धरणीधरम् । रोमकूपेषु सर्वेषु विपक्सेनं न्यसेधः ।। मत्स्य मासे तु विन्यस्य कूर्म मेदसि विन्यसेत् । वाराहं तु वसामध्ये सर्वास्थिषु तथाच्युतम् ।। द्विजप्रिय तु मजायां शुक्रे वेतपति तथा । साङ्गे यज्ञपुरुष परमात्मानमात्मनि ॥ एवं न्यासविधि कृत्या साक्षात्रारायणो भवेत् । यावत्र व्यारेत्किंचित्तावद्विष्णुमयः स्थितः ।। (७९ । १६-३०)