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- अर्चयस्व इपीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
तिगुना करके उसे जलसे धोना चाहिये। फिर यदि विधिसे संनिधीकरण (समीपतास्थापन) करना चाहिये। शिवलिङ्गके लिये बनाना हो तो उस लिङ्गके बराबर ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र-ये तीन सूत्रोंके देवता हैं तथा अथवा किसी प्रतिमाके लिये बनाना हो तो उस प्रतिमाके क्रिया, पौरुषी, वीरा, अपराजिता, जया, विजया, सिरसे लेकर पैरतकका या घुटनेतकका या नाभिके मुक्तिदा, सदाशिवा, मनोन्मनी और सर्वतोमुखी-ये दस बराबरतकका पवित्रक बनाना चाहिये। इनमें पहला ग्रन्थियोंकी अधिष्ठात्री देवियाँ हैं। इन सवका सूत्रोंमें उत्तम, दूसरा मध्यम और तीसरा लघु श्रेणीका है। एक आवाहन करना चाहिये। शास्त्रोक्त विधिसे मुद्राद्वारा सालमें जितने दिन हो, उतनी संख्या या उसके आधी आवाहन करे। सबका आवाहन करके संनिधीकरणकी संख्यामें अथवा एक सौ आठकी संख्या में सूतसे ही उस क्रिया करे। पवित्रकमें गाँठं लगानी चाहिये। पार्वती ! चौवनकी मुद्राद्वारा समीपता स्थापित करनेका नाम संनिधीसंख्यामें भी गाँठे लगायी जा सकती है। विष्णुप्रतिमाके करण है। पहले रक्षामुद्रासे संरक्षण करके धेनुमुद्राके लिये जो पवित्रक बने; उसे वनमालाके आकारका बना द्वारा उन्हें अमृतस्वरूप बनाये। फिर सबसे पहले लेना चाहिये। जैसे भी शोभा हो, वह उपाय करना भगवानके आगे कलशका जल लेकर 'क्लीं कृष्णाय' चाहिये । इससे भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं। पवित्रक इस मन्त्रसे उन पवित्रकोंका प्रोक्षण करे । तत्पश्चात् गन्ध, तैयार होनेके पश्चात् भगवानको अर्पण करना चाहिये। धूप, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल आदि निवेदन करके
पार्वती ! कुबेरके लिये पवित्रारोपण करनेकी तिथि षोडशोपचार आदिसे पवित्रकके देवताओका पूजन करे । प्रतिपदा बतायी गयी है। लक्ष्मीदेवीके लिये द्वितीया सब फिर उन्हें धूप देकर देवताके सम्मुख हो नमस्कारमुद्राके तिथियोंमें उत्तम है। तुम्हारे लिये तृतीया बतायी गयी है द्वारा देवताको अभिमन्त्रित करे। उस समय इस मन्त्रका
और गणेशके लिये चतुर्थी । चन्द्रमाके लिये पञ्चमी, उच्चारण करना चाहियेकार्तिकेयके लिये षष्ठी, सूर्यके लिये सप्तमी, दुर्गाके लिये आमन्त्रितो महादेव साध देव्या गणादिभिः । अष्टमी, मातृवर्गके लिये नवमी, यमराजके लिये दशमी, मन्त्रैर्वा लोकपालैश्च सहित: परिचारकैः ।। अन्य सब देवताओंके लिये एकादशी, लक्ष्मीपति आगच्छ भगवन् विष्णो विधेः सम्पूर्तिहेतवे। श्रीविष्णुके लिये द्वादशी, कामदेवके लिये त्रयोदशी, मेरे प्रातस्त्वत्पूजनं कुर्मः सांनिध्यं नियतं कुरु ।। लिये चतुर्दशी तथा ब्रह्माजीके लिये पवित्रकसे पूजन
in (८८।२९-३०) करनेके निमित्त पूर्णिमा तिथि बतायी गयी है। ये भिन्न- 'महान् देवता भगवान् विष्णु ! मन्त्रोद्वारा आवाहन भिन्न देवताओंके लिये पवित्रारोपणके योग्य तिथियाँ कही करनेपर आप देवी लक्ष्मी, पार्षद, लोकपाल और गयी है। लघु श्रेणीके पवित्रको बारह, मध्यम श्रेणीके परिचारकोंके साथ विधिकी पूर्तिके लिये यहाँ पधारिये। पवित्रकमें चौबीस और उत्तम श्रेणीके पवित्रकमें छत्तीस प्रातःकालमें आपकी पूजा करूंगा। यहाँ निश्चितरूपसे प्रन्थियाँ कम-से-कम होनी चाहिये। सब पवित्रकोंको सन्निकटता स्थापित कीजिये। कपूर और केसर अथवा चन्दन और हल्दीमें रंगकर तदनन्तर वह गन्ध और पवित्रक भगवान् राघवके बाँसके नये पात्रमें रखना चाहिये और जहाँ भगवानका अथवा श्रीविष्णुके चरणोंके समीप रख दे, फिर प्रातःपूजन हो, वहाँ उन सबको देवताकी भाँति स्थापित करना काल नित्यकर्म करके पुण्याह और स्वस्तिवाचन कराये चाहिये । पहले देवताकी पूजा करके फिर उन्हें पवित्रकोंमें तथा भगवानको जय-जयकारके साथ घण्टा आदि बाजे अधिवासित करना चाहिये। पवित्रकमें अधिवास हो और तुरही आदि बजाते हुए पवित्रकोंद्वारा पूजन करे। जानेपर पुनः पूजन करना उचित है। पवित्रकोंमें जो देवता 'ॐ वासुदेवाय विद्महे, विष्णुदेवाय धीमहि, अधिवास करते हैं, उनका आगे बतायी जानेवाली तन्नो देवः प्रचोदयात्।'