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उत्तरखण्ड ]
• कार्तिककी श्रेष्ठताके प्रसङ्गमें शङ्खासुरके वध आदिकी कथा .
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भागका तबसे ऋषि माना जाने लगा। तदनन्तर सब मुनि किये हुए ब्रह्महत्या आदि पाप भी इस तीर्थका दर्शन एकत्रित होकर प्रयागमें गये तथा ब्रह्माजीसहित भगवान् करनेसे तत्काल नष्ट हो जायें। जो धीर पुरुष इस तीर्थमें विष्णुको उन्होंने प्राप्त किये हुए वेद अर्पण कर दिये। मेरे समीप मृत्युको प्राप्त होंगे, वे मुझमें ही प्रवेश कर यज्ञसहित वेदोंको पाकर ब्रह्माजीको बड़ा हर्ष हुआ तथा जायेंगे, उनका पुनर्जन्म नहीं होगा। जो यहाँ मेरे आगे उन्होंने देवताओं और ऋषियोंके साथ प्रयागमें अश्वमेध पितरोंके उद्देश्यसे श्राद्ध करेंगे, उनके समस्त पितर मेरे यज्ञ किया। यज्ञकी समाप्ति होनेपर देवता, गन्धर्व, यक्ष, लोकमें चले जायेंगे। यह काल भी मनुष्योंके लिये किन्नर तथा गुहाकोंने पृथ्वीपर साष्टाङ्ग प्रणाम करके यह महान् पुण्यमय तथा उत्तम फल प्रदान करनेवाला होगा। प्रार्थना की।
सूर्यके मकर राशिपर स्थित रहते हुए जो लोग यहाँ देवता बोले-देवाधिदेव जगन्नाथ ! प्रभो !! प्रातःकाल नान करेंगे, उनके लिये यह स्थान पापनाशक हमारा निवेदन सुनिये। हमलोगोंके लिये यह बड़े हर्षका होगा। मकर राशिपर सूर्यके रहते समय माघमें समय है, अतः आप हमें वरदान दें। रमापते ! इस प्रातःस्नान करनेवाले मनुष्योंके दर्शनमात्रसे सारे पाप स्थानपर ब्रह्माजीको खोये हुए वेदोंकी प्राप्ति हुई है तथा उसी प्रकार भाग जाते हैं, जैसे सूर्योदयसे अन्धकार। आपकी कृपासे हमें भी यज्ञभाग उपलब्ध हुआ है; अतः माघमें जब सूर्य मकर राशिपर स्थित हों, उस समय यहाँ यह स्थान पृथ्वीपर सबसे अधिक श्रेष्ठ और पुण्यवर्धक प्रातःस्नान करनेपर मैं मनुष्योंको क्रमशः सालोक्य, हो। इतना ही नहीं, आपके प्रसादसे यह भोग और सामीप्य और सारूप्य–तीनों प्रकारकी मुक्ति दूंगा। मोक्षका भी दाता हो। साथ ही यह समय भी महान् मुनीश्वरो ! तुम सब लोग मेरी बात सुनो। यद्यपि मैं पुण्यदायक और ब्रह्महत्यारे आदिकी भी शुद्धि सर्वत्र व्यापक हूँ, तो भी बदरीवनमें सदा विशेषरूपसे करनेवाला हो। इसमें दिया हुआ सब कुछ अक्षय हो। निवास करता हूँ. अन्यत्र दस वर्षातक तपस्या करनेसे यही वर हमें दीजिये।
जिस फलकी प्राप्ति होती है, वही वहाँ एक दिनको भगवान् विष्णुने कहा-देवताओ ! तुमने जो तपस्यासे तुमलोग प्राप्त कर सकते हो। जो नरश्रेष्ठ उस कुछ कहा है, उसमें मेरी भी सम्मति है; अतः तुम्हारी स्थानका दर्शन करते हैं, वे सदाके लिये जीवन्मुक्त है। इच्छा पूर्ण हो, यह स्थान आजसे 'ब्राक्षेत्र' नाम धारण उनके शरीरमें पाप नहीं रहता।। करे। सूर्यवंशमें उत्पन्न राजा भगीरथ यहाँ गङ्गाको ले नारदजी कहते हैं-देवदेव भगवान् विष्णु आयेंगे और वह सूर्यकन्या यमुनाजीके साथ यहाँ देवताओंसे इस प्रकार कहकर ब्रह्माजीके साथ वहीं मिलेगी। ब्रह्माजीसहित तुम सम्पूर्ण देवता भी मेरे साथ अन्तर्धान हो गये तथा इन्द्र आदि सम्पूर्ण देवता भी यहाँ निवास करो। आजसे यह तीर्थ 'तीर्थराज' के अपने अंशोंसे वहाँ रहकर स्वरूपसे अन्तर्धान हो गये। नामसे विख्यात होगा। यहाँ किये हुए दान, व्रत, तप, जो शुद्ध चित्तवाला श्रेष्ठ पुरुष इस कथाको सुनता या होम, जप और पूजा आदि कर्म अक्षय फलके दाता और सुनाता है, वह तीर्थराज प्रयाग और बदरीवनको यात्रा सदा मेरी समीपताकी प्राप्ति करानेवाले हो । सात जन्मोंमें करनेका फल प्राप्त कर लेता है।
संप पु० २५