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उत्तरखण्ड ]
• न्याससहित अपामार्जननामक स्तोत्र और उसकी महिमा .
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ओषधिसे समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं यह बात मैं दुष्टोंको नष्ट कर दीजिये। देववर ! अच्युत ! आप सत्य-सत्य कहता हूँ। स्थावर, जङ्गम अथवा कृत्रिम विष दुष्टोका संहार कीजिये। हो या दाँत, नख, आकाश तथा भूत आदिसे प्रकट महाचक्र सुदर्शन ! भगवान् गोविन्दके श्रेष्ठ होनेवाला अत्यन्त दुस्सह विष हो; वह सारा-का-सारा आयुध ! तीखी धार और महान् वेगवाले शस्त्र ! कोटि श्रीजनार्दनका नामकीर्तन करनेपर इस रोगीके शरीरमें सूर्यके समान तेज धारण करनेवाले महाज्वालामय शान्त हो जाय। बालकके शरीरमें ग्रह, प्रेतग्रह अथवा सुदर्शन ! भारी आवाजसे सबको भयभीत करनेवाले अन्यान्य शाकिनी-ग्रहोंका उपद्रव हो या मुखपर चकत्ते चक्र ! आप समस्त दुःखों और सम्पूर्ण राक्षसोंका उच्छेद निकल आये हों अथवा रेवती, वृद्ध रेवती तथा वृद्धिका कर डालिये, उच्छेद कर डालिये। हे सुदर्शनदेव ! आप नामके भयङ्कर ग्रह, मातृप्रह एवं बालग्रह पीड़ा दे रहे हों; पापोंका नाश और आरोग्य प्रदान कौजिये। महात्मा भगवान् श्रीविष्णुका चरित्र उन सबका नाश कर देता है। नृसिंह अपनी गर्जनाओंसे पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और वृद्धों अथवा बालकोंपर जो कोई भी ग्रह लगे हों, वे उत्तर-सब ओर रक्षा करें। अनेक रूप धारण श्रीनृसिंहके दर्शनमात्रसे तत्काल शान्त हो जाते हैं। करनेवाले भगवान् जनार्दन भूमिपर और आकाशमें, भयानक दाढ़ोंके कारण विकराल मुखवाले भगवान् पीछे-आगे तथा पार्श्वभागमें रक्षा करें। देवता, असुर नृसिंह दैत्योंको भयभीत करनेवाले हैं। उन्हें देखकर और मनुष्योंके सहित सम्पूर्ण विश्व श्रीविष्णुमय है। सभी ग्रह बहुत दूर भाग जाते हैं। ज्वालाओंसे योगेश्वर श्रीविष्णु ही सब वेदोंमें गाये जाते हैं, इस सत्यके देदीप्यमान मुखवाले महासिंहरूपधारी नृसिंह ! सुन्दर प्रभावसे इस रोगीका सारा दुःख दूर हो जाय। समस्त मुख और नेत्रोंवाले सर्वेश्वर ! आप समस्त दुष्ट ग्रहोंको वेदाङ्गोंमें भी परमात्मा श्रीविष्णुका हो गान किया जाता दूर कीजिये। जो-जो रोग, महान् उत्पात, विष, महान् है। इस सत्यके प्रभावसे विश्वात्मा केशव इसको सुख ग्रह, क्रूरस्वभाववाले भूत, 'भयङ्कर प्रह-पीड़ाएँ, देनेवाले हो। भगवान् वासुदेवके शरीरसे प्रकट हुए हथियारसे कटे हुए घावोंपर होनेवाले रोग, चेचक आदि कुशोंके द्वारा मैंने इस मनुष्यका मार्जन किया है। इससे फोड़े और शरीरके भीतर स्थित रहनेवाले ग्रह हो, उन शान्ति हो, कल्याण हो और इसके दुःखोंका नाश हो सबको हे त्रिभुवनको रक्षा करनेवाले ! दुष्ट दानवोंके जाय। जिसने गोविन्दके अपामार्जन स्तोत्रसे मार्जन किया विनाशक ! महातेजस्वी सुदर्शन ! आप काट डालिये, है, वह भी यद्यपि साक्षात् श्रीनारायणका ही स्वरूप है: काट डालिये। महान् ज्वर, वातरोग, लूता रोग तथा तथापि सब दुःखोंकी शान्ति श्रीहरिके वचनसे ही होती भयानक महाविषको भी आप नष्ट कर दीजिये, नष्ट कर है। श्रीमधुसूदनका स्मरण करनेपर सम्पूर्ण दोष, समस्त दीजिये। असाध्य अमरशूल विषकी ज्वाला और गर्दभ ग्रह, सभी विष और सारे भूत शान्त हो जाते हैं। अब रोग-ये सब-के-सब शत्रु हैं, 'ॐ हां हां ' इस यह श्रीहरिके वचनानुसार पूर्ण स्वस्थ हो जाय । शान्ति बीजमन्त्रके साथ तीखी धारवाले कुठारसे आप इन हो, कल्याण हो और दुःख नष्ट हो जायें। भगवान् शत्रुओंको मार डालें। दूसरोंका दुःख दूर करनेके लिये हषीकेशके नाम-कीर्तनके प्रभावसे सदा ही इसके शरीर धारण करनेवाले परमेश्वर ! आप भगवान्को स्वास्थ्यकी रक्षा रहे। जो पाप जहाँसे इसके शरीरमें आये नमस्कार है। इनके सिवा और भी जो प्राणियोंको पीड़ा हों, वे वहीं चले जायें। देनेवाले दुष्ट ग्रह और रोग हों, उन सबको सबके आत्मा यह परम उत्तम 'अपामार्जन' नामक स्तोत्र है। समस्त परमात्मा जनार्दन दूर करें। वासुदेव ! आपको नमस्कार प्राणियोंका कल्याण चाहनेवाले श्रीविष्णुभक्त पुरुषोंको है। आप कोई रूप धारण करके ज्वालाओंके कारण रोग और पौड़ाओंके समय इसका प्रयोग करना चाहिये। अत्यन्त भयानक सुदर्शन नामक चक्र चलाकर सब इससे समस्त दुःखोका पूर्णतया नाश हो जाता है। यह