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• अर्चयस्थ हृषीकेशं यदीच्छसि पर पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
कैकेयीकुमार भरतरूप, ६८१ असह्यगन्धर्व- नाम धारण करनेवाले अग्नि देवता. ७०० वेदधर्मकोटिनः-करोड़ों दुःसह गन्धर्वोका वध करनेवाले, परायणः-वेदोक्त धर्मके परम आश्रय, ७०१ श्वेत६८२ लवणान्तकः-लवणासुरको मारनेवाले द्वीपपतिः-श्वेतद्वीपके स्वामी, ७०२ शत्रुघ्नरूप, ६८३ शत्रुनः-शत्रुओका वध करनेवाले सांख्यप्रणेता-सांख्यशास्त्रको रचना करनेवाले सुमित्राके छोटे कुमार, ६८४ वैद्यराट्-वैद्योंके राजा कपिलस्वरूप, ७०३ सर्वसिद्धिराट्-सम्पूर्ण धन्वन्तरिरूप, ६८५ आयुर्वेदगभौषधीपति:- सिद्धियोंके राजा ।। २४४ ॥ आयुर्वेदके भीतर वर्णित ओषधियोंके स्वामी ॥ २४१॥ विश्वप्रकाशितज्ञानयोगमोहतमिस्रहा । नित्यामृतको अन्वन्तरियज्ञो जगद्धरः। देवहूत्यात्मजः सिद्धः कपिलः कर्दमात्मजः ॥ २४५ ॥ सूर्यारिघ्नः सुराजीवो दक्षिणेशो द्विजप्रियः ॥ २४२ ।। ७०४ विश्वप्रकाशितज्ञानयोगमोहतमित्रहाका ६८६ नित्यामृतकरः-हाथोंमें सदा अमृत लिये संसारमें ज्ञानयोगका प्रकाश करके मोहरूपी अन्धकारका रहनेवाले. ६८७ धन्वन्तरि:-धन्वन्तरि नामसे प्रसिद्ध नाश करनेवाले. ७०५ देवहूत्यात्मजः-मनुकुमारी एक वैद्य, जो समुद्रसे प्रकट हुए और भगवान् नारायणके देवहूतिके पुत्र, ७०६ सिद्धः-सब प्रकारकी अंश थे, ६८८ यज्ञः-यज्ञस्वरूप, ६८९ सिद्धियोंसे परिपूर्ण, ७०७ कपिल:-कपिल नामसे जगद्धरः-संसारके पालक, ६९० सूर्यारिघ्रः- प्रसिद्ध भगवान्के अवतार, ७०८ कर्दमात्मजःसूर्यके शत्रु (केतु) को मारनेवाले, ६९१ सुराजीवः- कर्दम ऋषिके सुयोग्य पुत्र ॥ २४५ ॥ अमृतके द्वारा देवताओंको जीवन प्रदान करनेवाले, योगस्वामी ध्यानभङ्गसगरात्मजभस्मकृत् । ६९२ दक्षिणेश:-दक्षिण दिशाके स्वामी धर्मराजरूप, धर्मो वृषेन्द्रः सुरभीपतिः शुद्धात्मभावितः ॥ २४६ ॥ ६९३ द्विजप्रियः-ब्राह्मणोंके प्रियतम ।। २४२ ।। ७०९ योगस्वामी-सांख्ययोगके स्वामी, ७१० छिन्नमूर्धापदेशार्कः शेषाङ्गस्थापितामरः । ध्यानभङ्गसगरात्मजभस्मकृत्-ध्यान भङ्ग होनेसे विश्वार्थाशेषकृद्राहुशिरश्छेताक्षताकृतिः ॥ २४३ ।। सगर-पुत्रोको भस्म कर डालनेवाले, ७११ धर्म:
६९४ छिन्नमूर्धापदेशार्क:-जिसका मस्तक जगत्को धारण करनेवाले धर्मके स्वरूप, ७१२ कटा हुआ है तथा जो कहनेमात्रके लिये सूर्य- वृषेन्द्रः- श्रेष्ठ वृषभकी आकृति धारण करनेवाले, 'स्वर्भानु' नाम धारण करता है, ऐसा राहु नामक ग्रह,* ७१३ सुरभीपतिः-सुरभी गौके स्वामी, ७१४ ६९५ शेषाङ्गस्थापितामरः -जिसके शेष अङ्गोंमें शुद्धात्मभावितः-शुद्ध अन्तःकरणमें चिन्तन किये अमरत्वकी स्थापना हुई है, ऐसा राहु, ६९६ जानेवाले ॥ २४६ ॥ विश्वाशेषकृत्-संसारके सम्पूर्ण मनोरथोंको सिद्ध शम्भुत्रिपुरदाहकस्थैर्यविश्वरथोहः । .. करनेवाले भगवान्, ६९७ राहुशिरश्छेत्ता- राहुका भक्तशम्भुजितो दैत्यामृतवापीसमस्तपः ।। २४७ ।। मस्तक काटनेवाले, ६९८ अक्षताकृतिः-स्वयं किसी ७१५ शम्भु:-कल्याणकी उत्पत्तिके स्थानभूत, प्रकारको भी क्षतिसे रहित शरीरवाले ॥२४३॥ .... शिवस्वरूप, ७१६ त्रिपुरदाहकस्थैर्यविश्ववाजपेयादिनामाग्निवेदधर्मपरायणः । रथोद्वहः-त्रिपुरका दाह करनेके समय एकमात्र स्थिर वेतद्वीपपतिः सारख्यप्रणेता सर्वसिद्धिराट् ॥ २४४ ॥ रहनेवाले और विश्वमय रथका वहन करनेवाले, ७१७
६९९ वाजपेयादिनामाग्निः-वाजपेय आदि भक्तशम्भुजितः-अपने भक्त शिवके द्वारा पराजित,
* राहुका एक नाम 'स्वर्भानु' भी है। इस प्रकार कहनेके लिये तो वह भानु है. पर वास्तवम अन्धकाररूप है। प्रत्येक प्रह भगवानकी दिव्य विभूति है, इसलिये वह भी भगवत्स्वरूप ही है।