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________________ ७१४ • अर्चयस्थ हृषीकेशं यदीच्छसि पर पदम् . [ संक्षिप्त पद्मपुराण कैकेयीकुमार भरतरूप, ६८१ असह्यगन्धर्व- नाम धारण करनेवाले अग्नि देवता. ७०० वेदधर्मकोटिनः-करोड़ों दुःसह गन्धर्वोका वध करनेवाले, परायणः-वेदोक्त धर्मके परम आश्रय, ७०१ श्वेत६८२ लवणान्तकः-लवणासुरको मारनेवाले द्वीपपतिः-श्वेतद्वीपके स्वामी, ७०२ शत्रुघ्नरूप, ६८३ शत्रुनः-शत्रुओका वध करनेवाले सांख्यप्रणेता-सांख्यशास्त्रको रचना करनेवाले सुमित्राके छोटे कुमार, ६८४ वैद्यराट्-वैद्योंके राजा कपिलस्वरूप, ७०३ सर्वसिद्धिराट्-सम्पूर्ण धन्वन्तरिरूप, ६८५ आयुर्वेदगभौषधीपति:- सिद्धियोंके राजा ।। २४४ ॥ आयुर्वेदके भीतर वर्णित ओषधियोंके स्वामी ॥ २४१॥ विश्वप्रकाशितज्ञानयोगमोहतमिस्रहा । नित्यामृतको अन्वन्तरियज्ञो जगद्धरः। देवहूत्यात्मजः सिद्धः कपिलः कर्दमात्मजः ॥ २४५ ॥ सूर्यारिघ्नः सुराजीवो दक्षिणेशो द्विजप्रियः ॥ २४२ ।। ७०४ विश्वप्रकाशितज्ञानयोगमोहतमित्रहाका ६८६ नित्यामृतकरः-हाथोंमें सदा अमृत लिये संसारमें ज्ञानयोगका प्रकाश करके मोहरूपी अन्धकारका रहनेवाले. ६८७ धन्वन्तरि:-धन्वन्तरि नामसे प्रसिद्ध नाश करनेवाले. ७०५ देवहूत्यात्मजः-मनुकुमारी एक वैद्य, जो समुद्रसे प्रकट हुए और भगवान् नारायणके देवहूतिके पुत्र, ७०६ सिद्धः-सब प्रकारकी अंश थे, ६८८ यज्ञः-यज्ञस्वरूप, ६८९ सिद्धियोंसे परिपूर्ण, ७०७ कपिल:-कपिल नामसे जगद्धरः-संसारके पालक, ६९० सूर्यारिघ्रः- प्रसिद्ध भगवान्के अवतार, ७०८ कर्दमात्मजःसूर्यके शत्रु (केतु) को मारनेवाले, ६९१ सुराजीवः- कर्दम ऋषिके सुयोग्य पुत्र ॥ २४५ ॥ अमृतके द्वारा देवताओंको जीवन प्रदान करनेवाले, योगस्वामी ध्यानभङ्गसगरात्मजभस्मकृत् । ६९२ दक्षिणेश:-दक्षिण दिशाके स्वामी धर्मराजरूप, धर्मो वृषेन्द्रः सुरभीपतिः शुद्धात्मभावितः ॥ २४६ ॥ ६९३ द्विजप्रियः-ब्राह्मणोंके प्रियतम ।। २४२ ।। ७०९ योगस्वामी-सांख्ययोगके स्वामी, ७१० छिन्नमूर्धापदेशार्कः शेषाङ्गस्थापितामरः । ध्यानभङ्गसगरात्मजभस्मकृत्-ध्यान भङ्ग होनेसे विश्वार्थाशेषकृद्राहुशिरश्छेताक्षताकृतिः ॥ २४३ ।। सगर-पुत्रोको भस्म कर डालनेवाले, ७११ धर्म: ६९४ छिन्नमूर्धापदेशार्क:-जिसका मस्तक जगत्को धारण करनेवाले धर्मके स्वरूप, ७१२ कटा हुआ है तथा जो कहनेमात्रके लिये सूर्य- वृषेन्द्रः- श्रेष्ठ वृषभकी आकृति धारण करनेवाले, 'स्वर्भानु' नाम धारण करता है, ऐसा राहु नामक ग्रह,* ७१३ सुरभीपतिः-सुरभी गौके स्वामी, ७१४ ६९५ शेषाङ्गस्थापितामरः -जिसके शेष अङ्गोंमें शुद्धात्मभावितः-शुद्ध अन्तःकरणमें चिन्तन किये अमरत्वकी स्थापना हुई है, ऐसा राहु, ६९६ जानेवाले ॥ २४६ ॥ विश्वाशेषकृत्-संसारके सम्पूर्ण मनोरथोंको सिद्ध शम्भुत्रिपुरदाहकस्थैर्यविश्वरथोहः । .. करनेवाले भगवान्, ६९७ राहुशिरश्छेत्ता- राहुका भक्तशम्भुजितो दैत्यामृतवापीसमस्तपः ।। २४७ ।। मस्तक काटनेवाले, ६९८ अक्षताकृतिः-स्वयं किसी ७१५ शम्भु:-कल्याणकी उत्पत्तिके स्थानभूत, प्रकारको भी क्षतिसे रहित शरीरवाले ॥२४३॥ .... शिवस्वरूप, ७१६ त्रिपुरदाहकस्थैर्यविश्ववाजपेयादिनामाग्निवेदधर्मपरायणः । रथोद्वहः-त्रिपुरका दाह करनेके समय एकमात्र स्थिर वेतद्वीपपतिः सारख्यप्रणेता सर्वसिद्धिराट् ॥ २४४ ॥ रहनेवाले और विश्वमय रथका वहन करनेवाले, ७१७ ६९९ वाजपेयादिनामाग्निः-वाजपेय आदि भक्तशम्भुजितः-अपने भक्त शिवके द्वारा पराजित, * राहुका एक नाम 'स्वर्भानु' भी है। इस प्रकार कहनेके लिये तो वह भानु है. पर वास्तवम अन्धकाररूप है। प्रत्येक प्रह भगवानकी दिव्य विभूति है, इसलिये वह भी भगवत्स्वरूप ही है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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