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उत्तरखण्ड ]
. नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन .
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नाम-निशान मिट जाता, ६५० सर्वामरार्चितः- किसीके द्वारा भी परास्त न होनेवाले, ६६५ सम्पूर्ण देवताओंसे पूजित ॥ २३३ ॥
कोसलेन्द्रः-कोसल देशके ऐश्वर्यशाली सम्राट्, ६६६ ब्रह्मसूर्येन्द्ररुद्रादिवृन्दार्पितसतीप्रियः । वीरबाहुः-शक्तिशालिनी भुजाओंसे युक्त, ६६७ अयोध्याखिलराजाम्यः सर्वभूतमनोहरः ॥ २३४ ॥ सत्यार्थत्यक्तसोदरः-सत्यकी रक्षाके लिये अपने भाई
६५१ ब्रह्मसूर्येन्द्ररुद्रादिवृन्दार्पितसतीप्रियः- लक्षमणका त्याग करनेवाले ॥ २३७॥ ब्रह्मा, सूर्य, इन्द्र तथा रुद्र आदि देवताओंके समूह- शरसंधाननिधूतधरणीमण्डलो जयः। द्वारा शुद्ध प्रमाणित करके समर्पित की हुई सती ब्रह्मादिकापसांनिध्यसनाथीकृतदैवतः ॥२३८॥ सीताके प्रियतम, ६५२ अयोध्याखिलराजाग्यः- ६६८ शरसंधाननिर्वृतधरणीमण्डल:अयोध्यापुरीके सम्पूर्ण राजाओंमें अग्रगण्य, ६५३ वाणोंके संधानसे समस्त भूमण्डलको कँपा देनेवाले, सर्वभूतमनोहर:-अपने सौन्दर्य-माधुर्यके कारण ६६९ जयः-विजयशील, ६७० ब्रह्मादिसम्पूर्ण प्राणियोंका मन हरनेवाले ॥ २३४ ॥ कामसांनिध्यसनाथीकृतदैवतः-ब्रह्मा आदिकी स्वाम्यतुल्यकृपादण्डो हीनोत्कृष्टकसत्प्रियः । कामनाके अनुसार समीपसे दर्शन देकर समस्त श्शुपक्ष्यादिन्यायदर्शी हीनार्थाधिकसाधकः ॥ २३५॥ देवताओंको सनाथ करनेवाले ॥ २३८ ॥
६५४- स्वाम्यतुल्यकृपादण्ड:-प्रभुताके ब्रह्मलोकाप्तचाण्डालघशेषप्राणिसार्थकः । अनुरूप ही कृपा करने और दण्ड देनेवाले, ६५५ स्वीतगर्दभश्वादिश्चिरायोध्यावनैककृत् ॥ २३९ ॥ हीनोत्कृष्टैकसतिप्रयः-ऊँच-नीच-सबके सच्चे ६७१ ब्रह्मलोकाप्तचाण्डालाद्यप्रेमी, ६५६ श्वपक्ष्यादिन्यायदर्शी-कुते और पक्षी शेषप्राणिसार्थकः-चाण्डाल आदि समस्त
आदिके प्रति भी न्याय प्रदर्शित करनेवाले, ६५७ प्राणियोंको ब्रह्मलोकमें पहुँचाकर कृतार्थ करनेवाले, हीनार्थाधिकसाधकः-असहाय पुरुषोंके कार्यको ६७२ स्वनीतगर्दभश्वादिः-गदहे और कुत्ते अधिक सिद्धि करनेवाले ॥ २३५॥
आदिको भी स्वर्गलोकमें ले जानेवाले, ६७३ वधव्याजानुचितकृत्तारकोऽखिलतुल्यकृत् । चिरायोध्यावनैककृत्-चिरकालतक अयोध्याकी पावित्र्याधिक्यमुक्तात्मा प्रियात्यक्तः स्मरारिजित् ॥ २३६ ॥ एकमात्र रक्षा करनेवाले ॥ २३९ ॥
६५८ वधव्याजानुचितकृत्तारकः-अनुचित रामो द्वितीयसौमिप्रिलक्ष्मण: प्रहतेन्द्रजित्। । कर्म करनेवाले लोगोंका वधके बहाने उद्धार करनेवाले, विष्णुभक्तः सरामाधिपादुकाराज्यनिर्वृतिः ॥ २४० ।। ६५९ अखिलतुल्यकृत्-सबके साथ उसको ६७४ रामः-मुनियोंका मन रमानेवाले भगवान् योग्यताके अनुरूप बर्ताव करनेवाले, ६६० श्रीराम, ६७५ द्वितीयसौमित्रिः-सुमित्राकुमार पावित्र्याधिक्यमुक्तात्मा-अधिक पवित्रताके कारण लक्ष्मणको साथ रखनेवाले, ६७६ लक्ष्मण:-शुभ नित्यमुक्त स्वभाववाले, ६६१ प्रियात्यक्तः-प्रिय पत्नी लक्षणोंसे सम्पन्न लक्ष्मणरूप, ६७७ प्रहतेन्द्रजित्सीतासे कुछ कालके लिये वियुक्त, ६६२ लक्ष्मणरूपसे मेघनादका वध करनेवाले, ६७८ स्मरारिजित्-कामदेवके शत्रु भगवान् शिवको भी विष्णुभक्त:-विष्णुके अवतारभूत भगवान् श्रीरामके जीतनेवाले ॥ २३६ ॥
भक्त भरतरूप, ६७९ सरामाज्रिपादुकाराज्यसाक्षात्कुशलवच्छग्रद्राबितो ह्यपराजितः । निर्वृतिः- श्रीरामचन्द्रजीको चरणपादुकाके साथ मिले कोसलेन्द्रो वीरयाहुः सत्यार्थत्यक्तसोदरः ॥ २३७ ॥ हुए राज्यसे संतुष्ट होनेवाले भरतरूप ॥ २४० ।।
६६३ साक्षात्कुशलवच्छद्यद्रावितः-कुश भरतोऽसह्यगन्धर्वकोटिनो लवणान्तकः । और लवके रूपमें स्वयं अपने-आपसे युद्ध में हार शत्रुघ्नो वैद्यराडायुर्वेदगभौषधीपतिः ॥ २४१ ॥ जानेवाले, ६६४ अपराजितः-वास्तवमें कभी ६८० भरतः-प्रजाका भरण-पोषण करनेवाले