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उत्तरखण्ड ]
. नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन .
७१८ दैत्यामृतवापीसमस्तपः-त्रिपुरनिवासी दैत्योंकी मारनेवाले, ७३६ मुष्टिकन्नः-मुष्टिकके प्राण अमृतसे भरी हुई सारी बावलीको गोरूपसे पी जाने- लेनेवाले, ७३७ द्विविदहा-द्विविद नामक वीर वाले ॥ २४७ ॥
वानरका वध करनेवाले, ७३८ कालिन्दीकर्षण:महाप्रलयविकनिलयोऽखिलनागराट् । यमुनाकी धाराको खींचनेवाले, ७३९ बल-बलके शेषदेवः सहस्राक्षः सहस्रास्यशिरोभुजः ॥ २४८॥ मूर्तिमान् स्वरूप ॥ २५१ ॥
७१९ महाप्रलयविश्वैकनिलयः-महाप्रलयके रेवतीरमणः पूर्वभक्तिखेदाच्युताग्रजः । समय सम्पूर्ण विश्वके एकमात्र निवासस्थान, ७२० देवकीवसुदेवाहकश्यपादितिनन्दनः ॥२५२॥ अखिलनागरा-सम्पूर्ण नागोंके राजा शेषनाग- ७४० रेवतीरमण:-अपनी पत्नी रेवतीके साथ स्वरूप, ७२१ शेषदेवः-प्रलयकालमें भी शेष रमण करनेवाले, ७४१ पूर्वभक्तिखेदाच्युताग्रजःरहनेवाले देवता, ७२२ सहस्राक्षः-सहस्रों नेत्रवाले, पूर्वजन्ममें लक्ष्मणरूपसे भगवान्की निरन्तर सेवा ७२३ सहस्रास्यशिरोभुजः-सहस्रों मुख, मस्तक करते-करते थके रहनेके कारण दूसरे जन्ममें भगवान्की और भुजाओंवाले ॥ २४८ ॥
इच्छासे उनके ज्येष्ठ बन्धुके रूपमें अवतार लेनेवाले फणामणिकणाकारयोजिताच्छाम्बुदक्षितिः। बलरामरूप, ७४२ देवकीवसुदेवाहकश्यपादितिकालाग्निरुद्रजनको मुशलास्त्रो हलायुधः ॥ २४९॥ नन्दनः-वसुदेव और देवकोके नामसे प्रसिद्ध महर्षि
७२४ फणामणिकणाकारयोजिताच्छाम्बुद- कश्यप और अदितिको पुत्ररूपसे आनन्द देनेवाले क्षितिः-फनोंकी मणियोंके कणोंके आकारसे पृथ्वीपर भगवान् श्रीकृष्ण ॥ २५२। श्वेत बादलोंकी घटा-सी छा देनेवाले, ७२५ वार्ष्णेयः सात्वतां श्रेष्ठः शौरियदुकुलेश्वरः। कालाग्निरुद्रजनकः-भयङ्कर कालाग्नि एवं संहारमूर्ति नराकृतिः परं ब्रह्म सव्यसाधिवरप्रदः ॥ २५३ ।। रुद्रको प्रकट करनेवाले.७२६ मुशलास्त्र:-मुशलको ७४३ वार्ष्णेयः-वृष्णिकुलमें उत्पन्न, ७४४ अस्त्ररूपमें ग्रहण करनेवाले शेषावतार बलरामरूप, सात्वतां श्रेष्ठः-सात्वत कुलमें सर्वश्रेष्ठ, ७४५ ७२७ हलायुधः-हलरूपी आयुधवाले ॥ २४९॥ शौरिः-शूरसेनके कुलमें अवतीर्ण, ७४६ नीलाम्बरो वारुणीशो मनोवाकायदोषहा।। यदुकुलेश्वरः-यदुकुलके स्वामी,७४७ नराकृतिःअसंतोषदृष्टिमात्रपातितैकदशाननः ॥ २५० ॥ मानव-शरीर धारण करनेवाले श्रीकृष्ण, ७४८ परं
७२८ नीलाम्बरः-नीलवस्त्रधारी, ७२९ ब्रह्म-वस्तुतः परमात्मा, ७४९ सव्यसाचिवरप्रदःवारुणीश:-वारुणीके स्वामी, ७३० मनोवाकाय- अर्जुनको वर देनेवाले ॥२५३ ॥ दोषहा-मन, वाणी और शरीरके दोष दूर करनेवाले, ब्रह्मादिकायलालित्यजगदाचर्यशैशवः । ७३१ असंतोषदृष्टिमात्रपातितैकदशाननः- पूतनाघ्रः शकटभिद्यमलार्जुनभञ्जकः ॥ २५४ ॥ असंतोषपूर्ण दृष्टि डालनेमात्रसे ही पातालमें गये हुए ७५० ब्रह्मादिकाम्यलालित्यजगदाचर्यरावणको गिरा देनेवाले शेषनागरूप ॥२५० ॥ शैशव:-ब्रह्मा आदि भी जिन्हें देखनेकी इच्छा रखते हैं बिलसंयमनो घोरो रौहिणेयः प्रलम्बहा। तथा जो सम्पूर्ण जगत्को आश्चर्यमें डालनेवाली है, ऐसी मुष्टिकम्रो द्विविदहा कालिन्दीकर्षणो बलः ॥ २५१ । ललित बाललीलाओंसे युक्त श्रीकृष्ण,७५१ पूतनानः
७३२ बिलसंयमनः-सातों पाताललोकोंको पूतनाके प्राण लेनेवाले, ७५२ शकटभित्-लातके काबूमे रखनेवाले, ७३३ घोरः-प्रलयके समय हलके आघातसे छकड़ेको चकनाचूर कर देनेवाले,७५३ भयङ्कर आकृति धारण करनेवाले, ७३४ रौहिणेयः- यमलार्जुनभञ्जक:- यमलार्जुन नामसे प्रसिद्ध दो जुड़वे रोहिणीके पुत्र, ७३५ प्रलम्बहा-प्रलम्ब दानवको वृक्षोको तोड़ डालनेवाले ॥ २५४ ॥