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. अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
वातासुरारिः केशिनो थेनुकारिगवीश्वरः। देवोचित सुधर्मा नामक सभासे भूलोकको भी सुशोभित दामोदरो, गोपदेवो यशोदानन्ददायकः ॥ २५५ ॥ करनेवाले, ७७३ जरासंधबलान्तकः-जरासंधकी
७५४ वातासुरारिः-तृणावर्तके शत्रु, ७५५ सेनाका संहार करनेवाले ॥ २५८ ।। केशिनः-केशी नामक दैत्यको मारनेवाले, ७५६ त्यक्तभनजरासंधो . भीमसेनयशःप्रदः । धेनुकारि:-धेनुकासुरके शत्रु, ७५७ गवीश्वरः- सांदीपनिमृतापत्यदाता कालान्तकादिजित् ॥ २५९ ॥ गौओंके स्वामी, ७५८ दामोदर:-उदरमें यशोदा ७७४ त्यक्तभनजरासंधः-युद्धसे भगे हुए मैयाद्वारा रस्सी बाँधी जानेके कारण दामोदर नाम धारण जरासंधको जीवित छोड़ देनेवाले, ७७५ भीमसेनकरनेवाले, ७५९ गोपदेवः-वालोंके इष्टदेव, यशःप्रदः-युक्तिसे जरासंघका वध कराकर ७६० यशोदानन्ददायकः-यशोदा मैयाको आनन्द भीमसेनको यश प्रदान करनेवाले, ७७६ सांदीपनिदेनेवाले॥२५५॥
मृतापत्यदाता-अपने विद्यागुरु सांदीपनिक मरे हुए कालीयमर्दनः सर्वगोपगोपीजनप्रियः । पुत्रको पुनः ला देनेवाले,७७७ कालान्तकादिजित्-- लीलागोवर्धनधरो गोविन्दो गोकुलोत्सवः ॥ २५६ ॥ काल और अन्तक आदिपर विजय पानेवाले ॥ २५९ ॥
७६१ कालीयमर्दनः-कालिय नागका समस्तनारकत्राता सर्वभूपतिकोटिजित् । मान-मर्दन करनेवाले, ७६२ सर्वगोपगोपीजन- रुक्मिणीरमणो रुक्मिशासनो नरकान्तकः ।। २६० ।। प्रियः-समस्त गोपों और गोपियोंके प्रियतम, ७६३ ७७८ समस्तनारकत्राता-शरणमे आनेपर लीलागोवर्धनधरः- अनायास ही गोवर्धन पर्वतको नरकमें पड़े हुए समस्त प्राणियोंका भी उद्धार करनेवाले, अँगुलीपर उठा लेनेवाले, ७६४ गोविन्दः-इन्द्रकी ७७९ सर्वभूपतिकोटिजित्-रुक्मिणीके विवाहमें वर्षासे गौओकी रक्षा करनेके कारण कामधेनुद्वारा करोड़ोंको संख्यामें आये हुए समस्त राजाओंको परास्त 'गोविन्द' पदपर अभिषिक्त भगवान् श्रीकृष्ण, ७६५ करनेवाले. ७८० रुक्मिणीरमण:-रुक्मिणीके साथ गोकुलोत्सवः-गोकुलनिवासियोंको निरन्तर आनन्द रमण करनेवाले, ७८१ रुक्मिशासन:-रुक्मीको प्रदान करनेके कारण उत्सवरूप ॥ २५६ ।। दण्ड देनेवाले, ७८२ नरकान्तकः-नरकासुरका अरिष्टमथनः कामोन्मत्तगोपीविमुक्तिदः। विनाश करनेवाले ॥ २६० ॥ .. सद्यःकुवलयापीडयाती चाणूरमर्दनः ॥ २५७ ॥ समस्तसुन्दरीकान्तो मुरारिर्गरुडध्वजः।
७६६ अरिष्टमथन:-अरिष्टासुरको नष्ट एकाकिजितरुद्रार्कमरुदाधखिलेश्वरः ॥२६१ ॥ करनेवाले, ७६७ कामोन्मत्तगोपीविमुक्तिदः- ७८३ समस्तसुन्दरीकान्तः-समस्त सुन्दरियाँ प्रेमविभोर गोपीको मुक्ति प्रदान करनेवाले, ७६८ जिन्हें पानेकी इच्छा करती है, ७८४ मुरारिः-मुर सद्यःकुवलयापीघाती-कुवलयापीड नामक नामक दानवके शत्रु, ७८५ गरुडध्वजः- गरुड़के हाथीको शीघ्र मार गिरानेवाले, ७६९ चाणूरमर्दनः- चिह्नसे चिह्नित ध्वजावाले, ७८६ एकाकिजितरुद्रार्कचाणूरनामक मल्लको कुचल डालनेवाले ॥ २५७॥ मरुदाखिलेश्वरः- अकेले ही रुद्र, सूर्य और वायु कंसारिरुपसेनादिराज्यव्यापारितामरः । आदि समस्त लोकपालोको जीतनेवाले ।। २६१ ॥ सुधर्माहितभूलोको जरासंधबलान्तकः ॥ २५८ ॥ देवेन्द्रदर्पहा कल्पद्रुमालंकृतभूतलः ।
७७० कंसारि:-मथुराके राजा कंसके शत्रु. बाणबाहुसहस्त्रच्छिन्नन्धादिगणकोटिजित् ॥ २६३ ॥ ७७१ उपसेनादिराज्यव्यापारितामरः-राज्य- ७८७ देवेन्द्रदर्पहा-देवराज इन्द्रका अभिमान सम्बन्धी कार्योंमें उग्रसेन आदिके रूपमें देवताओंको ही चूर्ण करनेवाले, ७८८ कल्पद्गुमालंकृतभूतल:नियुक्त करनेवाले, ७७२ सुधर्माङ्कितभूलोकः- कल्पवृक्षको स्वर्गसे लाकर उसके द्वारा भूतलको शोभा