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उत्तरखण्ड
• नाम-कीर्तनको महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन •
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बढ़ानेवाले,७८९ बाणबाहुसहस्रच्छित्-बाणासुरकी प्रतिष्ठा करनेवाले, ८०६-स्वांशशङ्करपूजक:सहस्र भुजाओंका उच्छेद करनेवाले, ७९० नन्द्यादि- अपने अंशभूत शङ्करकी पूजा करनेवाले ॥ २६६ ॥ गणकोटिजित्-नन्दी आदि करोड़ों शिवगणोंको शिवकन्यानतपतिः कृष्णरूपशिवारिहा । परास्त करनेवाले ॥ २६२ ॥
महालक्ष्मीवपुगौंरीत्राता वैदलवत्रहा ।। २६७ ।। लीलाजितमहादेवो महादेवैकपूजितः।
८०७ शिवकन्याव्रतपति:-शिवको कन्याके इन्द्रार्थार्जुननिर्भङ्गजयदः पाण्डवैकधक् । २६३ ॥ व्रतकी रक्षा करनेवाले. ८०८ कृष्णरूपशिवारिहा
७९१ लीलाजितमहादेवः-अनायास ही कृष्णरूपसे शिवके शत्रु (भस्मासुर) का संहार महादेवजीपर विजय पानेवाले, ७९२ महादेवैक- करनेवाले, ८०९ महालक्ष्मीवपुगौंरीत्रातापूजितः-महादेवजीके द्वारा एकमात्र पूजित, ७९३ महालक्ष्मीका शरीर धारण करनेवाली पार्वतीके रक्षक, इन्द्रार्थार्जुननिर्भङ्गजयदः-इन्द्रकी प्रसन्नताके लिये ८१० वैदलवृत्रहा-वैदलवत्र नामक दैत्यका वध अर्जुनको अखण्ड विजय प्रदान करनेवाले, ७९४ करनेवाले ।। २६७ ॥ पाण्डवैकधृक्-पाण्डवोंके एकमात्र रक्षक ॥ २६३ ।। स्वधाममुचुकुन्दैकनिष्कालयवनेष्टकृत् । काशिराजशिरश्छेत्ता रुद्रशक्त्येकमर्दनः। यमुनापतिरानीतपरिलीनद्विजात्मजः ॥२६८ ॥ विश्वेश्वरप्रसादाळ्यः काशिराजसुतार्दनः ।। २६४ ॥ ८११ स्वधाममुचुकुन्दैकनिष्कालयवनेष्ट
७९५ काशिराजशिरश्छेत्ता-काशिराजका कृत्- अपने तेजःस्वरूप राजा मुचुकुन्दके द्वारा केवल मस्तक काट देनेवाले, ७९६ रुदशक्त्येकमर्दनः- कालयवनका नाश कराकर उन्हें अभीष्ट वरदान रुद्रकी शक्तिके एकमात्र मर्दन करनेवाले,७९७ विश्वेश्वर- देनेवाले, ८१२ यमुनापतिः-सूर्यकन्या यमुनाको प्रसादाढ्यः-काशीविश्वनाथकी प्रसन्नता प्राप्त पत्नीरूपसे ग्रहण करनेवाले, ८१३ आनीतपरिलीनकरनेवाले,७९८ काशिराजसुतार्दनः- काशीनरेशके द्विजात्मजः- मरे हुए ब्राह्मण-पुत्रोंको पुनः पुत्रको पीड़ा देनेवाले ॥ २६४ ॥
लानेवाले॥२६८॥ शम्भुप्रतिज्ञाविध्वंसीकाशीनिर्दग्धनायकः । श्रीदामरभक्तार्थभूम्यानीतेन्द्रवैभवः । काशीशगणकोटिनो लोकशिक्षाद्विजार्चकः ।। २६५ ॥ दुर्वत्तशिशुपालैकमुक्तिदो द्वारकेश्वरः ।। २६९ ॥
७९९ शम्भुप्रतिज्ञाविध्वंसी-शङ्करजोको ८१४ श्रीदामरकभक्तार्थभूम्यानीतेन्द्रवैभव:प्रतिज्ञा तोड़नेवाले, ८०० काशीनिर्दग्धनायक:- अपने दीन भक्त श्रीदामा (सुदामा) के लिये पृथ्वीपर जिन्होंने काशीको जलाकर अनाथ-सी कर दिया था, वे इन्द्रके समान वैभव उपस्थित करनेवाले, ८१५ दुर्वृत्तभगवान् श्रीकृष्ण, ८०१ काशीशगणकोटिनः- शिशुपालैकमुक्तिदः-दुराचारी शिशुपालको एकमात्र काशीपति विश्वेश्वरके करोड़ों गणोंका नाश करनेवाले, मोक्ष प्रदान करनेवाले, ८१६ द्वारकेश्वरः-द्वारकाके ८०२ लोकशिक्षाद्विजार्चकः-लोकको शिक्षा देनेके स्वामी ।। २६९ ।। लिये सुदामा आदि ब्राह्मणोंकी पूजा करनेवाले ॥ २६५॥ आचाण्डालादिकप्राप्यद्वारकानिधिकोटिकृत् । शिवतीव्रतपोवश्यः पुराशिववरप्रदः। अक्रूरोद्धवमुख्यैकभक्तः स्वच्छन्दमुक्तिदः ॥ २७० ।। शङ्करैकप्रतिष्ठाध्क्स्यांशशङ्करपूजकः ॥ २६६ ॥ ८१७ आचाण्डालादिकप्राप्यद्वारकानिधि
८०३ शिवतीव्रतपोवश्यः-शिवजीकी तीन कोटिकृत्-द्वारकामें चाण्डाल आदितकके लिये तपस्याके वशीभूत होनेवाले. ८०४ पुराशिववरप्रदः- सुलभ होनेवाली करोड़ों निधियोका संग्रह करनेवाले, पूर्वकालमें शिवजीको वरदान देनेवाले, ८०५ ८१८ अकूरोद्धवमुख्यैकभक्तः- अक्रूर और उद्धव शङ्करैकप्रतिष्ठाधृक्-भगवान् शङ्करकी एकमात्र आदि प्रधान भक्तोंके साथ रहनेवाले, ८१९ स्वच्छन्द