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• अर्चयस्थ हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
६२४ सुग्रीवराज्यदः-सुग्रीवको राज्य देनेवाले, विदीर्ण करनेवाले, ६३८ उग्रहा- भयङ्कर राक्षसोंका ६२५ अहीनमनसैवाभयप्रदः-उदार चित्तसे वध करनेवाले ॥ २३० ।। अभय-दान देनेवाले, ६२६ हनुमद्द्रमुख्येश:- रावणकशिरश्छेत्ता निःशङ्केन्द्रकराज्यदः । हनुमान्जी तथा भगवान् शङ्करके प्रधान आराध्यदेव, स्वर्गास्वर्गत्वविच्छेदी देवेन्द्रानिन्द्रताहरः ।। २३१ ।। ६२७ समस्तकपिदेहभृत्-सम्पूर्ण वानरोंके शरीरोका ६३९ रावणकशिरश्छेता-रावणके सिर पोषण करनेवाले ।। २२७ ॥
काटनेवाले एकमात्र वोर, ६४० निःशङ्केन्द्रकसनागदैत्यवाणकव्याकुलीकृतसागरः । राज्यदः-निःशङ्क होकर इन्द्रको एकमात्र राज्य सम्लेच्छकोटियाणकशुष्कनिर्दग्धसागरः ॥ २२८॥ देनेवाले, ६४१ स्वर्गास्वर्गत्वविच्छेदी-स्वर्गकी
६२८ . - सनागदैत्यबाणकव्याकुलीकृत- अस्वर्गताको मिटा डालनेवाले,*६४२ देवेन्द्रासागरः-एक ही बाणसे नाग और दैत्योसहित निन्द्रताहरः-देवराज इन्द्रकी अनिन्द्रता दूर समुद्रको क्षुब्ध कर देनेवाले, ६२९ सम्लेच्छकोटि- करनेवाले ॥ २३१ ॥ बाणैकशुष्कनिर्दग्धसागरः-एक ही बाणसे करोड़ों रक्षोदेवत्यहद्धर्माधर्मत्वघ्नः ४ पुरुष्टुतः । । म्लेच्छोसहित समुद्रको सुखा देने और जला नतिमात्रदशास्यारिदत्तराज्यविभीषणः ॥ २३२ ॥ डालनेवाले ।। २२८ ॥
६४३ रक्षोदेवत्वहत्-राक्षसलोग जो देवताओंको समुद्राद्भुतपूर्वैकबद्धसेतुर्यशोनिधिः । । हटाकर स्वयं देवता बन बैठे थे, उनके उस देवत्वको हर असाध्यसाधको लङ्कासमूलोत्साददक्षिणः ॥ २२९ ॥ लेनेवाले, ६४४ धर्माधर्मत्वघ्नः-धर्मकी अधर्मताका
६३० समुद्राद्भुतपूवैकबद्धसेतुः-समुद्रमें नाश करनेवाले, (राक्षसोंके कारण धर्म भी अधर्मरूपमें पहले-पहल एक अद्भुत पुल बांधनेवाले, ६३१ परिणत हो रहा था, भगवान् रामने उन्हें मारकर धर्मको 'यशोनिधिः-सुयशके भंडार, ६३२ असाध्य- पुनः अपने स्वरूपमें प्रतिष्ठित किया).६४५ पुरुष्टुतःसाधकः-असम्भवको भी सम्भव कर दिखानेवाले, बहुत लोगोंके द्वारा स्तुत होनेवाले, ६४६ नतिमात्रदशा६३३ लङ्कासमूलोत्साददक्षिण:-लङ्काको जड़से स्यारिः-नत मस्तक होनेतक ही रावणको शत्रु नष्ट कर डालनेमें दक्ष ॥ २२९ ॥
माननेवाले, ६४७ दत्तराज्यविभीषणः-विभीषणको वरदप्तजगच्छल्यपौलस्त्यकुलकन्तनः । राज्य प्रदान करनेवाले ॥ २३२॥ रावणिनः प्रहस्तच्छित्कुम्भकर्णभिदुग्रहा ।। २३०॥ सुधावृष्टिमताशेषस्वसैन्योज्जीवनैककृत् ।।
६३४ वरदृप्तजगच्छल्यपौलस्त्यकुलकृन्तन:- देवब्राह्मणनामकथाता सर्वामरार्थितः ॥ २३३ ॥ वर पाकर घमंडसे भरे हुए तथा संसारके लिये । ६४८ सुधावृष्टिमृताशेषस्वसैन्योजीवनककण्टकरूप रावणके कुलका उच्छेद करनेवाले, ६३५ कृत्-सुधाकी वर्षा कराकर अपने समस्त मरे हुए रावणिनः-लक्ष्मणरूपसे रावणके पुत्र मेघनादका सैनिकोंको जीवन प्रदान करनेवाले, ६४९ देवब्राह्मणवध करनेवाले, ६३६ प्रहस्तच्छित्-प्रहस्तका मस्तक नामैकधाता-देवता और ब्राह्मणके नामोंके एकमात्र काटनेवाले, ६३७ कुम्भकर्णभित्- कुम्भकर्णको रक्षक, वे यदि न होते तो देवताओं एवं ब्राह्मणोंका
* राक्षसोने ‘स्वर्ग का वैभव लूटकर उसे 'अस्वर्ग बना दिया था, भगवान् रामने रावणको मारकर पुनः उसे अपनी प्रतिष्ठाके अनुरूप बनाया. स्वर्गको अस्वगंता दूर कर दी।
रावणने इन्द्रको इन्द्रपदसे हटा दिया था, वे 'अनिन्द्र' (इन्द्रपदसे च्युत) हो गये थे: श्रीरामने उनकी अनिन्द्रता दूर की-उन पुनः इन्द्रके सिंहासनपर बिठाया।