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उत्तरखण्ड ]
. नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन .
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उसे सुननेमाप्रसे मोक्षकी प्राप्ति हो जाती है, उन पूजित देवाधिदेव जगद्गुरु भगवान् शङ्कर कैलासके भगवान्का ही स्मरण करना चाहिये। जिस मुख में 'राम- शिखरपर विराजमान थे। उनके पाँच मुख, दस भुजाएँ, राम'का जप होता रहता है, वही महान् तीर्थ है, वही प्रत्येक मुखमें तीन नेत्र तथा हाथोंमें त्रिशूल, कपाल, प्रधान क्षेत्र है तथा वही समस्त कामनाओंको पूर्ण खट्वाङ्ग, तीक्ष्ण शूल, खड्ग और पिनाक नामका धनुष करनेवाला है। सुव्रत ! भगवान्के कीर्तन करने- शोभा पा रहे थे। बैलपर सवारी करनेवाले वरदाता योग्य कौन-कौन-से नाम हैं? उन सबको विशेष भगवान् भीम अपने अङ्गोंमें भस्म स्माये सोकी शोभासे रूपसे बताइये।
युक्त चन्द्रमाका मुकुट पहने करोड़ों सूर्योके समान ब्रह्माजीने कहा-बेटा ! ये भगवान् विष्णु देदीप्यमान हो रहे थे। नारदजीने देवेश्वर शिवको साष्टाङ्ग सर्वत्रव्यापक सनातन परमात्मा है। इनका न आदि है न दण्डवत् किया। उन्हें देखकर महादेवजीके नेत्रकमल अन्त। ये लक्ष्मीसे युक्त, सम्पूर्ण भूतोंके आत्मा तथा खिल उठे। उस समय वैष्णवोंमें सर्वश्रेष्ठ शिवने समस्त प्राणियोंको उत्पन्न करनेवाले हैं। जिनसे मेरा ब्रह्मचारियोंमें श्रेष्ठ नारदजीसे पूछा-'देवर्षिप्रवर ! प्रादुर्भाव हुआ है, वे भगवान् विष्णु सदा मेरी रक्षा करें। बताओ, कहाँसे आ रहे हो?' वही कालके भी काल और वही मेरे पूर्वज है। उनका नारदजीने कहा-भगवन् ! एक समय मैं कभी विनाश नहीं होता। उनके नेत्र कमलके समान ब्रह्माजीके पास गया था। वहाँ उनके मुखसे मैंने भगवान् शोभा पाते हैं। वे परम बुद्धिमान, अविकारी एवं पुरुष विष्णुके पापनाशक माहात्म्यका श्रवण किया। सुरश्रेष्ठ ! (अन्तर्यामी) है। सदा शेषनागकी शय्यापर शयन ब्रह्माजीने मेरे सामने भगवान्की महिमाका भलीभांति करनेवाले भगवान् विष्णु सहस्रों मस्तकवाले है। वे वर्णन किया। भगवान्के नामकी जितनी शक्ति है, वह महाप्रभु है। सम्पूर्ण भूत उन्हींक स्वरूप है। भगवान् भी मैंने उनके मुस्खसे सुनी है। तत्पश्चात् पहले विष्णुके जनार्दन साक्षात् विश्वरूप है। कैटभ नामक असुरका नामोंके विषयमें प्रश्न किया। तब उन्होंने कहावध करनेके कारण वे कैटभारि कहलाते हैं। वे ही 'नारद ! मैं इस बातको नहीं जानता; इसका ज्ञान व्यापक होनेके कारण विष्णु, धारण-पोषण करनेके महारुद्रको है। वे ही सब कुछ बतायेंगे।' यह सुनकर कारण धाता और जगदीश्वर हैं। नारद ! मैं उनका नाम मैं आपके पास आया हूँ। इस घोर कलियुगमें मनुष्योंकी और गोत्र नहीं जानता। तात ! मैं केवल वेदोंका वक्ता आयु थोड़ी होगी। वे सदा अधर्ममें तत्पर रहेंगे। हूँ, वेदातीत परमात्माका ज्ञाता नहीं, अतः देवर्षे ! तुम भगवानके नामोंमें उनकी निष्ठा नहीं होगी। कलियुगके वहाँ जाओ, जहाँ भगवान् विश्वनाथ रहते हैं। मुनिश्रेष्ठ ! ब्राह्मण पाखण्डी, धर्मसे विरक्त, संध्या न करनेवाले, वे तुमसे सम्पूर्ण तत्त्वका वर्णन करेंगे। कैलासके स्वामी व्रतहीन, दुष्ट और मलिन होंगे; जैसे ब्राह्मण होंगे, वैसे श्रीमहादेवजी ही अन्तर्यामी पुरुष हैं। वे देवताओंके ही क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र तथा अन्य जातिके लोग भी स्वामी और सम्पूर्ण भक्तोंके आराध्यदेव हैं। पाँच मुखोंसे होंगे। प्रायः मनुष्य भगवान्के भक्त नहीं होंगे। द्विजोंसे सुशोभित भगवान् उमानाथ सब दुःखोंका विनाश बाहर गिने जानेवाले शूद्र कलियुगमें धर्म-अधर्म तथा करनेवाले हैं। सम्पूर्ण विश्वके ईश्वर श्रीविश्वनाथजी सदा हिताहितका ज्ञान भी नहीं रखते; ऐसा जानकर मैं आपके भक्तोंपर दया करनेवाले हैं। नारद ! वहीं जाओ, वे तुम्हें निकट आया हूँ। आप कृपा करके विष्णुके सहस्र सब कुछ बता देंगे।
- नामोका वर्णन कीजिये, जो पुरुषोंके लिये सौभाग्यजनक, सूतजी कहते हैं-पिताकी बात सुनकर देवर्षि परम उत्तम तथा सर्वदा भक्तिभावको बढ़ानेवाले हैं। इसी नारद कैलास पर्वतपर, जहाँ कल्याणप्रद भगवान् प्रकार जो ब्राह्मणोंको ब्रह्मज्ञान, क्षत्रियोंको विजय, विश्वेश्वर नित्य निवास करते हैं, गये। देवताओद्वारा वैश्योंको धन तथा शूद्रोंको सदा सुख देनेवाले हैं।