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उत्तरखण्ड ]
• नाम-कीर्तनको महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्रका वर्णन •
कापत
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किया। वह जिस दिन जिसका श्राद्ध करता था, उस दिन किया। उसके बाद प्रतिवर्ष भादोंका महीना आनेपर वह आकर स्वनमें बनियेको प्रत्यक्ष दर्शन देता और श्रवण-द्वादशीके योगमें नदीके संगमपर जाकर वह कहता कि 'महाभाग | तुम्हारी कृपासे मैंने प्रेतभावको भगवान् विष्णुके उद्देश्यसे पूर्वोक्त प्रकारसे स्रान-दान त्याग दिया और अब मैं परमगतिको प्राप्त हो रहा हैं।' आदि सब कार्य करने लगा। तदनन्तर दीर्घकालके इस प्रकार वह महामना वैश्य गया-तीर्थमे प्रेतोंका पश्चात् उसकी मृत्यु हो गयी। उसने सब मनुष्योंके लिये विधिपूर्वक श्राद्ध करके बारम्बार भगवान् विष्णुका ध्यान दुर्लभ परमधामको प्राप्त कर लिया। आज भी वह करता हुआ अपने घर लौट आया। फिर भाद्रपद मासके विष्णुदूतोंसे सेवित हो वैकुण्ठधाममें विहार कर रहा है। शुक्लपक्षमें, जब श्रवण-द्वादशीका योग आया, तब वह ब्रह्मन् ! तुम भी इसी प्रकार श्रवण-द्वादशीका व्रत करो। सब आवश्यक सामग्री साथ लेकर नदीके संगमपर गया वह इस लोक और परलोकमें भी सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान और वहाँ स्रान करके उसने द्वादशीका व्रत किया । सान, करनेवाला, उत्तम बुद्धिका देनेवाला तथा सब पापोंको दान और भगवान् विष्णुका पूजन करनेके अनन्तर हरनेवाला उत्तम साधन है। जो श्रवण-द्वादशीके योगमें ब्राह्मणको उपहार भेंट किया। एकचित्त होकर उस इस व्रतका अनुष्ठान करता है, वह इसके प्रभावसे बुद्धिमान् वैश्यने शास्त्रोक्त विधिसे सब कार्य सम्पन्न विष्णुलोकमें जाता है।
नाम-कीर्तनकी महिमा तथा श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रका वर्णन
ऋषियोंने कहा-सूतजी! आपका हृदय विशेषतः नामकीर्तनपूर्वक भगवान्की भक्ति जिस प्रकार अत्यन्त करुणायुक्त है; अतएव श्रीमहादेवजी और देवर्षि 5 नारदका जो अद्भुत संवाद हुआ था, उसे आपने हमलोगोंसे कहा है। हमलोग श्रद्धापूर्वक सुन रहे हैं। अब आप कृपापूर्वक यह बताइये कि महात्मा नारदने ब्रह्माजीसे भगवत्रामोंकी महिमाका किस प्रकार श्रवण किया था।
सूतजी बोले-द्विजश्रेष्ठ मुनियो ! इस विषयमें मैं पुराना इतिहास सुनाता हूँ। आप सब लोग ध्यान देकर सुनें। इसके श्रवणसे भगवान् श्रीकृष्णमें भक्ति बढ़ती है। एक समयकी बात है, चित्तको पूर्ण एकाग्र रखनेवाले नारदजी अपने पिता ब्रह्माजीका दर्शन करनेके लिये मेरु पर्वतके शिखरपर गये। वहाँ आसनपर बैठे हुए जगत्पति ब्रह्माजीको प्रणाम करके मुनिश्रेष्ठ नारदजीने इस प्रकार कहा-'विश्वेश्वर ! भगवान्के नामकी जितनी शक्ति है, उसे बताइये। प्रभो! ये जो सम्पूर्ण विश्वके स्वामी साक्षात् श्रीनारायण हरि हैं, इन अविनाशी परमात्माके नामकी कैसी महिमा है?'
करनी चाहिये, वह सुनो। जिनके लिये शास्त्रोंमें कोई ब्रह्माजी बोले-बेटा ! इस कलियुगमें प्रायश्चित्त नहीं बताया गया है, उन सभी पापोको शुद्धिके संपापु- २३