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• अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
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जाता है।
तनिक भी सन्देह नहीं है। शङ्ख, चक्र और गदा धारण पुरुषोंके लिये जो विशेष दान और कर्तव्य विहित है, उसे करनेवाले भगवान् केशवने मुझसे कहा था कि 'यदि सुनो-उस दिन जलमें शयन करनेवाले भगवान् मानव सबको छोड़कर एकमात्र मेरी शरणमें आ जाय विष्णुका पूजन और जलमयी धेनुका दान करना और एकादशीको निराहार रहे तो वह सब पापोंसे छूट चाहिये। अथवा प्रत्यक्ष घेनु या घृतमयी धेनुका दान
उचित है। पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँतिके मिष्टानोंद्वारा एकादशीव्रत करनेवाले पुरुषके पास विशालकाय, यलपूर्वक ब्राह्मणोंको संतुष्ट करना चाहिये। ऐसा करनेसे विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड-पाशधारी ब्राह्मणोंको सन्तुष्ट करना चाहिये। ऐसा करनेसे ब्राह्मण भयङ्कर यमदूत नहीं जाते। अन्तकालमें पीताम्बरधारी, अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होनेपर श्रीहरि सौम्य स्वभाववाले, हाथमें सुदर्शन धारण करनेवाले और मोक्ष प्रदान करते हैं। जिन्होंने शम, दम और दानमें मनके समान वेगशाली विष्णुदूत आकर इस वैष्णव प्रवृत्त हो श्रीहरिकी पूजा और रात्रिमें जागरण करते हुए पुरुषको भगवान् विष्णुके धाममें ले जाते हैं। अतः इस निर्जला एकादशीका व्रत किया है, उन्होंने अपने निर्जला एकादशीको पूर्ण यत्र करके उपवास करना साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ियोंको और आनेवाली सौ चाहिये। तुम भी सब पापोंकी शान्तिके लिये यत्रके साथ पीढ़ियोंको भगवान् वासुदेवके परम धाममें पहुंचा दिया उपवास और श्रीहरिका पूजन करो। स्त्री हो या पुरुष, है। निर्जला एकादशीके दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, यदि उसने मेरु पर्वतके बराबर भी महान् पाप किया हो शय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने तो वह सब एकादशीके प्रभावसे भस्म हो जाता है। जो चाहिये। जो श्रेष्ठ एवं सुपात्र ब्राह्मणको जूता दान मनुष्य उस दिन जलके नियमका पालन करता है, वह करता है, वह सोनेके विमानपर बैठकर स्वर्गलोकमें पुण्यका भागी होता है, उसे एक-एक पहरमें कोटि-कोटि प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशीकी महिमाको स्वर्णमुद्रा दान करनेका फल प्राप्त होता सुना गया है। भक्तिपूर्वक सुनता तथा जो भक्तिपूर्वक उसका वर्णन मनुष्य निर्जला एकादशीके दिन स्नान, दान, जप, होम करता है, वे दोनों स्वर्गलोकमें जाते हैं। चतुर्दशीयुक्त आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, अमावास्याको सूर्यग्रहणके समय श्राद्ध करके मनुष्य यह भगवान् श्रीकृष्णका कथन है। निर्जला एकादशीको जिस फलको प्राप्त करता है, वही इसके श्रवणसे भी प्राप्त विधिपूर्वक उत्तम रीतिसे उपवास करके मानव होता है। पहले दत्तधावन करके यह नियम लेना चाहिये वैष्णवपदको प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य एकादशीके कि 'मैं भगवान् केशवकी प्रसत्रताके लिये एकादशीको दिन अन्न खाता है, वह पाप भोजन करता है। इस निराहार रहकर आचमनके सिवा दूसरे जलका भी त्याग लोकमें वह चाण्डालके समान है और मरनेपर दुर्गतिको करूंगा।' द्वादशीको देवदेवेश्वर भगवान् विष्णुका पूजन प्राप्त होता है।*
करना चाहिये। गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्रसे जो ज्येष्ठके शुक्रपक्षमें एकादशीको उपवास करके विधिपूर्वक पूजन करके जलका घड़ा सङ्कल्प करते हुए दान देंगे, वे परमपदको प्राप्त होंगे। जिन्होंने एकादशीको निम्नाङ्कित मन्त्रका उच्चारण करे। उपवास किया है, वे ब्रह्माहत्यारे, शराबी, चोर तथा देवदेव हषीकेश संसारार्णवतारक । गुरुद्रोही होनेपर भी सब पातकोंसे मुक्त हो जाते हैं। उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम् ।। कुन्तीनन्दन ! निर्जला एकादशीके दिन श्रद्धालु स्त्री
(५३१६०)
* एकादश्या दिने योऽत्र मुझे पापं भुनक्ति सः । इह लोके च चाण्डालो मृतः प्राप्नोति दुर्गतिम् ॥ (५३ । ४३-४४) + अत्रं वर्स तथा गावो जल शय्यासनं शुभम् । कमण्डलुस्तथा छवं दातव्यं निर्जलादिने । (५३।५३)