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उत्तरखण्ड ]
. यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माहात्म्य .
चाहिये, जो भगवान् विष्णुको संतोष प्रदान करनेवाला और पञ्चरत्न डाल दे। फिर दिव्य माला पहनाकर उस है। द्वादशीको श्रद्धा और भक्तिके साथ श्रीगोविन्दको कलशको गन्धसे सुवासित करे। कलशमें जल भर दे पूजा करके इस प्रकार कहे-'देव ! स्वपमें इन्द्रियोंकी और उसमें द्रव्य डालकर उसके ऊपर ताँबका पात्र रख विकलताके कारण यदि भोजन और मैथुनको क्रिया बन दे। इसके बाद उस पात्रमें देवाधिदेव तपोनिधि भगवान् जाय तो आप मुझपर कृपा करके क्षमा कीजिये।' इस श्रीधरको स्थापना करके पूर्वोक्त विधिसे पूजा करे। फिर प्रकार नियम करके मिट्टी, गोमय और तिल लेकर मिट्टी और गोबर आदिसे सुन्दर मण्डल बनावे । सफेद मध्याह्नमें तीर्थ (जलाशय) के पास जाय और व्रतकी और धुले हुए चावलोंको पानी में पीसकर उसके द्वारा पूर्तिके लिये निम्नाङ्कित मन्त्रसे विधिपूर्वक स्नान करे- मण्डलका संस्कार करे । तत्पश्चात् हाथ-पैर आदि अङ्गोंसे
अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुकान्ते वसुन्धरे ॥ युक्त धर्मराजका स्वरूप बनावे और उसके आगे ताँबेकी मृत्तिके हर मे पापं यन्मया पूर्वसचितम्। वैतरणी नदी स्थापित करके उसकी पूजा करे। उसके त्वया हतेन पापेन सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ बाद पृथक् आवाहन आदि करके यमराजकी विधिवत् काश्यां चैव तु संभूतास्तिला वै विष्णुरूपिणः। पूजा करे। तिलस्त्रानेन गोविन्दः सर्वपापं व्यपोहति ॥ पहले भगवान् विष्णुसे इस प्रकार प्रार्थना विष्णुदेहोद्भवे देवि महापापापहारिणि । करे-महाभाग केशव ! मैं विश्वरूपी देवेश्वर यमका सर्वपापं हर त्वं वै सौषधि नमोऽस्तु ते॥ आवाहन करता हूँ। आप यहाँ पधारें और समीपमें
(६८ । ३४-३७) निवास करें। लक्ष्मीकान्त ! हरे ! यह आसनसहित पाद्य 'वसुन्धरे ! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते आपकी सेवामें समर्पित है। प्रभो ! विश्वका प्राणिहैं तथा वामन अवतारके समय भगवान् विष्णुने भी तुम्हें समुदाय आपका स्वरूप है। आपको नमस्कार है। आप अपने चरणोंसे नापा था। मृत्तिके ! मैंने पूर्वजन्ममें जो प्रतिदिन मुझपर कृपा कीजिये।' इस प्रकार प्रार्थना करके पाप सश्चित किया है, मेरा वह सारा पाप तुम हर लो। 'भूतिदाय नमः' इस म-त्रके द्वारा भगवान् विष्णुके तुम्हारे द्वारा पापका नाश हो जानेपर मनुष्य सब पापोसे चरणोका, 'अशोकाय नमः' से घुटनोंका, "शिवाय मुक्त हो जाता है। तिल काशीमें उत्पन्न हुए हैं तथा वे नमः'से जाँघोका, “विश्वमूर्तये नमः'से कटिभागका, भगवान् विष्णुके स्वरूप है। तिलमिश्रित जलके द्वारा 'कन्दाय नमः'से लिङ्गका, 'आदित्याय नमः'से स्नान करनेपर भगवान् गोविन्द सब पापोका नाश कर अण्डकोषका, 'दामोदराय नमः' से उदरका, 'वासुदेवाय देते हैं। देवी सर्वोषधि ! तुम भगवान् विष्णुके देहसे नमः'से स्तनोंका, 'श्रीधराय नमः"से मुखका, केशवाय प्रकट हुई तथा महान् पापोंका अपहरण करनेवाली हो। नमः से केशोंका, 'शार्ङ्गधराय नमः'से पीठका, तुम्हें नमस्कार है। तुम मेरे सारे पाप हर लो।' 'वरदाय नमः'से पुनः चरणोंका, 'शङ्खपाणये नमः',
इस प्रकार मृत्तिका आदिके द्वारा स्रान करके चक्रपाणये नमः', 'असिपाणये नमः', 'गदापाणये सिरपर तुलसीदल धारण कर तुलसीका नाम लेते हुए नमः' और 'परशुपाणये नमः'-इन नाममन्त्रोंद्वारा स्नान करे । यह स्रान ऋषियों द्वारा बताया गया है। इसे क्रमशः शङ्ख, चक्र, खड्ग, गदा तथा परशुका तथा विधिपूर्वक करना चाहिये। इस तरह स्नान करनेके पश्चात् 'सर्वात्मने नमः' इस मन्त्रके द्वारा मस्तकका ध्यान करे। जलसे बाहर निकलकर दो शुद्ध वस्त्र धारण करे। फिर इसके बाद यों कहे-'मैं समस्त पापोंको राशिका नाश देवताओं और पितरोंका तर्पण करके श्रीविष्णुका पूजन करनेके लिये मत्स्य, कच्छप, वराह, नृसिंह, वामन, करे। उसकी विधि इस प्रकार है। पहले एक कलशकी, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध तथा कल्किका पूजन जो फूटा-टूटा न हो, स्थापना करे। उसमें पञ्चपल्लव करता हूँ; भगवन् ! इन अवतारोंके रूपमें आपको