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उत्तरखण्ड ]
• यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माहात्म्य .
यज्ञोपवीतका निर्माण कराया है, आप इसे ग्रहण करें - 'समुद्रका मन्थन होते समय पाँच गौएँ उत्पन्न हुई और प्रसन्न होकर मेरा मनोरथ पूर्ण करें।'' नर थीं। उनमेंसे जो नन्दा नामकी धेनु है, उसे मेरा बारम्बार - ताम्बूल-मन्त्र -
नमस्कार है। लगातार इदं दतं च ताम्बूलं यथाशक्ति सुशोभनम् ।। तत्पश्चात् विधिपूर्वक गौकी पूजा करके निम्नाङ्कित प्रतिगृह्णीय देवेश मामुद्धर भवार्णवात्। मन्त्रोद्वारा एकाग्रचित्त हो अर्घ्य प्रदान करे
(६८। ६६-६७) सर्वकामदुहे देवि , सर्बार्तिकनिवारिणि । arre'देवेश ! मैंने यथाशक्ति उत्तम शोभासम्पन्न ताम्बूल आरोग्य संतति दीर्घा देहि नन्दिनि मे सदा ॥ दान किया है, इसे स्वीकार करें और भवसागरसे मेरा
पूजिता च वसिष्ठेन विश्वामित्रेण धीमता। उद्धार कर दें।
कपिले हर मे पापं यन्मया पूर्वसञ्चितम्॥ या दीप-आरतीका मन्त्र ...
गावो मे अग्रतः सन्तु गावो मे सन्तु पृष्ठतः । पञ्चवर्तिप्रदीपोऽयं देवेशारार्तिक तय ॥
नाके मामुपतिष्ठन्तु हेमभङ्ग्यः पयोमुचः ।। मोहान्धकारद्युमणे भक्तियुक्तो भवार्तिहन्।
सुरभ्यः सौरभेयाश्च सरितः सागरास्तथा। . (६८। ६७-६८)
सर्वदेवमये देवि सुभद्रे भक्तवत्सले ॥ 'देवेश ! आप मोहरूपी अन्धकार दूर करनेके लिये
(६८।७२-७५) सूर्यरूप हैं। भव-बन्धनकी पीड़ा हरनेवाले परमात्मन् ! मैं
- 'समस्त कामनाओंको पूर्ण करनेवाली तथा सब भक्तियुक्त होकर आपकी सेवामे यह पाँच बत्तियोंका
प्रकारकी पीड़ा हरनेवाली देवी नन्दिनी ! मझे सर्वदा दीपक प्रस्तुत करता हूँ। यह आपके लिये आरती है।
आरोग्य तथा दीर्घायु संतान प्रदान करो। कपिले ! महर्षि . नैवेद्य-मन्त्र
वसिष्ठ तथा बुद्धिमान् विश्वामित्रजीने भी तुम्हारी पूजा की परमान्न सुपक्वान्न समस्तरससयुतम् ॥ है। मैंने पूर्वजन्ममें जो पाप सञ्चित किया है, उसे हर निवेदितं मया भक्या भगवन् प्रतिगृहाताम् ।
लो। गौएँ मेरे आगे रहे, गौएँ ही मेरे पीछे रहें तथा
(६८ । ६८-६९) 'भगवन् ! मैंने सब रसोंसे युक्त सुन्दर पकवान, जो
स्वर्गलोकमे भी सुवर्णमय सींगोसे सुशोभित, सरिताओं परम उत्तम अन्न है, भक्तिपूर्वक सेवामें निवेदन किया है।
और समुद्रोंकी भाँति दूधकी धारा बहानेवाली सुरभी और
उनकी संतानें मेरे पास आवे । सर्वदेवमयी देवी नन्दिनी ! आप इसे स्वीकार करें। जप-समर्पण
तुम परम कल्याणमयी और भक्तवत्सला हो। तुम्हें द्वादशाक्षरमन्त्रेण
नमस्कार है। यथासंख्यजपेन च ॥ प्रीयतां मे श्रियः कान्तः प्रीतो यच्छतु वाञ्छितम्।
इस प्रकार विधिवत् पूजा करके गौओंको प्रतिदिन
या ग्रास समर्पण करे। उसका मन्त्र इस प्रकार है'द्वादशाक्षर मन्त्रका यथाशक्ति जप करनेसे भगवान सौरभेय्यः सर्वहिताः पवित्राः पापनाशिनीः । ।। लक्ष्मीकान्त मझपर प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर मझे प्रतिगृह्णन्तु मे प्रासं गावस्वैलोक्यमातरः ।। मनोवाञ्छित वस्तु प्रदान करें।
इस प्रकार श्रीहरिका पूजन करनेके बाद निम्नाड़ित , 'सबके हितमे लगी रहनेवाली, पवित्र, पापनाशिनी मन्त्र पढ़कर गौको प्रणाम करे
तथा त्रिभुवनकी माता गौएँ मेरा दिया हुआ प्रास पन गावसमत्यत्रा मध्यमाने महोदधौ। ग्रहण करें। तासां मध्ये तु या नन्दा तस्यै धन्यै नमो नमः॥ महादेवजी कहते हैं-इस प्रकार धर्मराजके
(६८७०-७१) मुखसे सुने हुए वैतरणी-व्रतका मेरे आगे वर्णन करके