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उत्तरखण्ड ]
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. श्रावणमासको 'कापिका' और 'पुत्रदा एकादशीका माहात्म्य .
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शयन करना चाहिये । सावन में साग, भादोंमें दही, कारमें व्रत करना चाहिये। कभी भूलना नहीं चाहिये। ‘शयनी' दूध और कार्तिकमें दालका त्याग कर देना चाहिये।* और 'बोधिनी के बीचमें जो कृष्णपक्षको एकादशियाँ अथवा जो चौमासेमें ब्रह्मचर्यका पालन करता है, वह होती हैं, गृहस्थके लिये वे ही व्रत रखने योग्य है-अन्य परम गतिको प्राप्त होता है। राजन् ! एकादशीके व्रतसे ही मासोंकी कृष्णपक्षीय एकादशी गृहस्थके रखने योग्य नहीं मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है; अतः सदा इसका होती । शुक्लपक्षकी एकादशी सभी करनी चाहिये।
श्रावणमासकी 'कामिका' और 'पुत्रदा एकादशीका माहात्म्य
- युधिष्ठिरने पूछा-गोविन्द ! वासुदेव ! आपको हुई गायको अन्यान्य सामग्रियोंसहित दान करता है, उस नमस्कार है! श्रावणके कृष्णपक्षमें कौन-सी एकादशी मनुष्यको जिस फल की प्राप्ति होती है, वही 'कामिका'का होती है? उसका वर्णन कीजिये।
व्रत करनेवालेको मिलता है। जो नरश्रेष्ठ श्रावणमासमे - भगवान् श्रीकृष्ण बोले-राजन् ! सुनो, मैं तुम्हें भगवान् श्रीधरका पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धों एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकालमें और नागोंसहित सम्पूर्ण देवताओंकी पूजा हो जाती है; ब्रह्माजीने नारदजीके पूछनेपर कहा था।
अतः पापभीरु मनुष्योंको यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके - नारदजीने प्रश्न किया-भगवन् ! कमलासन ! 'कामिका के दिन श्रीहरिका पूजन करना चाहिये। जो मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रावणके कृष्णपक्षमें पापरूपी पङ्कसे भरे हुए संसारसमुद्रमें डूब रहे हैं, उनका जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है, उसके उद्धार करनेके लिये कामिकाका व्रत सबसे उत्तम है। कौन-से देवता है तथा उससे कौन-सा पुण्य होता है? अध्यात्मविद्यापरायण पुरुषोंको जिस फलकी प्राप्ति होती प्रभो! यह सब बताइये।
है; उससे बहुत अधिक फल 'कामिका' व्रतका सेवन ब्रह्माजीने कहा-नारद ! सुनो-मैं सम्पूर्ण करनेवालोको मिलता है। 'कामिका'का व्रत करनेवाला लोकोंके हितकी इच्छासे तुम्हारे प्रश्नका उत्तर दे रहा हूँ। मनुष्य रात्रिमें जागरण करके न तो कभी भयङ्कर श्रावणमासमें जो कृष्णपक्षकी एकादशी होती है, उसका यमराजका दर्शन करता है और न कभी दुर्गतिमें ही नाम 'कामिका' है; उसके स्मरणमात्रसे वाजपेय यज्ञका पड़ता है। फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव लाल मणि, मोती, वैदूर्य और मुंगे आदिसे पूजित
और मधुसूदन आदि नामोंसे भगवानका पूजन करना होकर भी भगवान् विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे चाहिये । भगवान् श्रीकृष्णके पूजनसे जो फल मिलता है, तुलसीदलसे पूजित होनेपर होते हैं। जिसने तुलसीकी वह गङ्गा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्रमें भी मञ्जरियोंसे श्रीकेशवका पूजन कर लिया है। उसके सुलभ नहीं है। सिंहराशिके वृहस्पति होनेपर तथा जन्मभरका पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है। जो दर्शन व्यतीपात और दण्डयोगमें गोदावरीनानसे जिस फलकी करनेपर सारे पापसमुदायका नाश कर देती है, स्पर्श प्राप्ति होती है, वही फल भगवान् श्रीकृष्णके पूजनसे भी करनेपर शरीरको पवित्र बनाती है, प्रणाम करनेपर मिलता है। जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वीका रोगोका निवारण करती है, जलसे सींचनेपर यमराजको दान करता है तथा जो कामिका एकादशीका व्रत करता भी भय पहुँचाती है, आरोपित करनेपर भगवान् है, वे दोनों समान फलके भागी माने गये हैं। जो व्यायी श्रीकृष्णके समीप ले जाती है और भगवान्के चरणोंमें
* श्रावणे वर्जयेच्छाकं दधि भाद्रपदे तथा ॥ दुग्धमाश्वयुजि त्याज्य कार्तिके द्विदलं त्यजेत्। (५५ । ३३-३४)