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उत्तरखण्ड ]
• आश्विन मासकी 'इन्दिरा' और 'पापाङ्कुशा एकादशीका माहात्म्य.
वनकी ओर चल दिये। वहाँ जाकर मुख्य-मुख्य मुनियों और तपस्वियोंके आश्रमोंपर घूमते फिरे। एक दिन उन्हें ब्रह्मपुत्र अङ्गिरा ऋषिका दर्शन हुआ। उनपर दृष्टि पड़ते ही राजा हर्षमें भरकर अपने वाहनसे उतर पड़े और इन्द्रियोंको वशमें रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने मुनिके चरणोंमें प्रणाम किया। मुनिने भी 'स्वस्ति' कहकर राजाका अभिनन्दन किया और उनके राज्यके सातों अङ्गोंकी कुशल पूछी। राजाने अपनी कुशल बताकर मुनिके स्वास्थ्यका समाचार पूछा। मुनिने राजाको आसन और अर्घ्य दिया। उन्हें ग्रहण करके जब वे मुनिके समीप बैठे तो उन्होंने इनके आगमनका कारण पूछा।
तब राजाने कहा - भगवन्! मैं धर्मानुकूल प्रणालीसे पृथ्वीका पालन कर रहा था। फिर भी मेरे राज्यमें वर्षाका अभाव हो गया। इसका क्या कारण है इस बातको मैं नहीं जानता।
ऋषि बोले- राजन् ! यह सब युगों में उत्तम सत्ययुग है। इसमें सब लोग परमात्माके चिन्तनमें लगे रहते हैं। तथा इस समय धर्म अपने चारों चरणोंसे युक्त होता है। इस युगमें केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं, दूसरे लोग नहीं किन्तु महाराज ! तुम्हारे राज्यमें यह शूद्र तपस्या करता है; इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते । तुम इसके प्रतीकारका यत्न करो जिससे यह अनावृष्टिका दोष शान्त हो जाय।
राजाने कहा – मुनिवर ! एक तो यह तपस्या में लगा है, दूसरे निरपराध है; अतः मैं इसका अनिष्ट नहीं करूँगा। आप उक्त दोषको शान्त करनेवाले किसी धर्मका उपदेश कीजिये ।
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एकादशीका व्रत करो। भाद्रपद मासके शुक्लपक्षमें जो 'पद्मा' नामंसे विख्यात एकादशी होती है, उसके व्रतके प्रभावसे निश्चय ही उत्तम वृष्टि होगी। नरेश ! तुम अपनी प्रजा और परिजनोंके साथ इसका व्रत करो।
युधिष्ठिरने पूछा- मधुसूदन ! कृपा करके मुझे यह बताइये कि आश्विनके कृष्णपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ?
ऋषिका यह वचन सुनकर राजा अपने घर लौट आये। उन्होंने चारों वर्णोंको समस्त प्रजाओंके साथ भादोंके शुक्लपक्षकी 'पद्मा' एकादशीका व्रत किया। इस प्रकार व्रत करनेपर मेघ पानी बरसाने लगे। पृथ्वी जलसे आप्लावित हो गयी और हरी-भरी खेतीसे सुशोभित होने लगी। उस व्रतके प्रभावसे सब लोग सुखी हो गये।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन्! इस कारण इस उत्तम व्रतका अनुष्ठान अवश्य करना चाहिये। 'पद्मा' एकादशीके दिन जलसे भरे हुए घड़ेको वस्त्रसे ढँककर दही और चावलके साथ ब्राह्मणको दान देना चाहिये, साथ ही छाता और जूता भी देने चाहिये। दान करते समय निम्नाङ्कित मन्त्रका उच्चारण करेनमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक ॥ अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव । भुक्तिमुक्तिप्रदश्चैव लोकानां सुखदायकः ॥
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(५९ । ३८-३९)
[बुधवार और श्रवण नक्षत्रके योगसे युक्त द्वादशीके दिन] बुद्धश्रवण नाम धारण करनेवाले भगवान् गोविन्द ! आपको नमस्कार है, नमस्कार है; मेरी पापराशिका नाश करके आप मुझे सब प्रकारके सुख प्रदान करें। आप पुण्यात्माजनोंको भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं।'
ऋषि बोले- राजन् ! यदि ऐसी बात है तो पापोंसे मुक्त हो जाता है।
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राजन् ! इसके पढ़ने और सुननेसे मनुष्य सब
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आश्विन मासकी 'इन्दिरा' और 'पापाङ्कुशा' एकादशीका माहात्म्य
कृष्णपक्षमें 'इन्दिरा' नामकी एकादशी होती है, उसके व्रतके प्रभावसे बड़े-बड़े पापोंका नाश हो जाता है। नीच योनिमें पड़े हुए पितरोंको भी यह एकादशी सद्गति
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन् ! आश्विन देनेवाली है।