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• अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि पर पदम् ......
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
दिन काँसका बर्तन, उड़द, मसूर, तेल, असत्य-भाषण, 'कामदा एकादशीका व्रत किया और रात्रि जागरण व्यायाम, परदेशगमन, दो बार भोजन, मैथुन, बैलकी करके श्रीपुरुषोत्तमकी पूजा की है, वे सब पापोंसे मुक्त पीठपर सवारी, पराया अत्र तथा साग-इन बारह हो परम गतिको प्राप्त होते हैं। इसके पढ़ने और सुननेसे वस्तुओंका त्याग करे। राजन् ! जिन्होंने इस विधिसे सहस गोदानका फल मिलता है।
चातुर्मास्य व्रतकी विधि और उद्यापन नारदजीने पूछा-महेश्वर ! पृथ्वीपर चातुर्मास्य 'जगत्राथ ! आपके सो जानेपर यह सारा जगत् सो व्रतके जो प्रसिद्ध नियम हैं, उन्हें मैं सुनना चाहता हूँ; जाता है तथा आपके जाग्रत् होनेपर सम्पूर्ण चराचर जगत् आप उनका वर्णन कीजिये।
जाग उठता है।' महादेवजी बोले-देवर्षे ! सुनो, मैं तुम्हारे नारद ! इस प्रकार भगवान् विष्णुको प्रतिमाको प्रश्नका उत्तर देता हूँ। आषाढ़के शुक्लपक्षमें एकादशीको स्थापित करके उसीके आगे स्वयं वाणीसे कहकर उपवास करके भक्तिपूर्वक चातुर्मास्य व्रतके नियम ग्रहण चातुर्मास्य व्रतके नियम ग्रहण करे। स्त्री हो या पुरुष, जो करे। श्रीहरिके योगनिद्रामें प्रवृत्त हो जानेपर मनुष्य चार भगवान्का भक्त हो, उसे हरिबोधिनी एकादशीतक चार मास अर्थात् कार्तिककी पूर्णिमातक भूमिपर शयन करे। महीनोंके लिये नियम अवश्य ग्रहण करने चाहिये। इस बीचमें न तो घर या मन्दिर आदिकी प्रतिष्ठा होती है जितात्मा पुरुष निर्मल प्रभातकालमें दन्तधावनपूर्वक और न यज्ञादि कार्य ही सम्पन्न होते हैं, विवाह, उपवास करके नित्यकर्मका अनुष्ठान करनेके पश्चात् यज्ञोपवीत, अन्यान्य माङ्गलिक कर्म, राजाओंकी यात्रा भगवान् विष्णुके समक्ष जिन नियमोंको ग्रहण करता है, तथा नाना प्रकारकी दूसरी-दूसरी क्रियाएँ भी नहीं होती। उनका तथा उनके पालन करनेवालोंका फल पृथक्मनुष्य एक हजार अश्वमेध यज्ञ करनेसे जिस फलको पृथक् बतलाता हूँ। पाता है, वही चातुर्मास्य व्रतके अनुष्ठानसे प्राप्त कर लेता विद्वन् ! चातुर्मास्यमें गुडका त्याग करनेसे मनुष्यको है। जब सूर्य मिथुन राशिपर हों, तब भगवान् मधुसूदनको मधुरताकी प्राप्ति होती है। इसी प्रकार तेलको त्याग देनेसे शयन कराये और तुला राशिके सूर्य होनेपर पुनः श्रीहरिको दीर्घायु संतान और सुगन्धित तेलके त्यागसे अनुपम शयनसे उठाये। यदि मलमास आ जाय तो निम्नलिखित सौभाग्यकी प्राप्ति होती है। योगाभ्यासी मनुष्य ब्रह्मपदको विधिका अनुष्ठान करे। भगवान् विष्णुको प्रतिमा स्थापित प्राप्त होता है। ताम्बूलका त्याग करनेसे मनुष्य भोगकरे, जो शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाली हो, जिसे सामग्रीसे सम्पन्न होता और उसका कण्ठ सुरीला होता पीताम्बर पहनाया गया हो तथा जो सौम्य आकारवाली है। घीके त्यागसे लावण्यकी प्राप्ति होती और शरीर हो। नारद ! उसे शुद्ध एवं सुन्दर पलंगपर, जिसके ऊपर चिकना होता है। विप्रवर ! फलका त्याग करनेवालेको सफेद चादर बिछी हो और तकिया रखी हो, स्थापित करे। बहुत-से पुत्रोंकी प्राप्ति होती है। जो चौमासेभर पलाशके फिर दही, दूध, मधु, लावा और घौसे नहलाकर उत्तम पत्तेमें भोजन करता है, वह रूपवान् और भोगसामग्रीसे चन्दनका लेप करे। तत्पश्चात् धूप दिखाकर मनोहर सम्पन्न होता है। दही-दूध छोड़नेवाले मनुष्यको गोलोक पुष्पोंसे शृङ्गार करे। इस प्रकार उसकी पूजा करके मिलता है। जो मौनव्रत धारण करता है, उसकी आज्ञा निम्नाङ्कित मन्त्रसे प्रार्थना करे
भंग नहीं होती। जो स्थालीपाक (बटलोईमें भोजन सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत्सनं भवेदिदम्। बनाकर खाने) का त्याग करता है, वह इन्द्रका सिंहासन विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत्सर्व चराचरम् ॥ प्राप्त करता है। नारद ! इस प्रकारके त्यागसे धर्मकी
(६६ । १५) सिद्धि होती है। इसके साथ 'नमो नारायणाय' का जप