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• अर्चयस्व हबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
समारोहके साथ भगवान्का पूजन किया गया था, भिन्न- तिथि आती है और किस विधिसे उसका व्रत करना भिन्न पुष्पोंसे उनका शृङ्गार हुआ था । भगवान्की भक्तिके चाहिये? यह मुझे बताइये।
सनत्कुमारजीने कहा-राजन् ! मैं तुम्हें इस व्रतको बताता हूँ; सावधान होकर सुनो। श्रावणमासके' कृष्णपक्षकी अष्टमी तिथिको यदि रोहिणी नक्षत्रका योग मिल जाय तो उस जन्माष्टमीका नाम 'जयन्ती' होता है। अब मैं इसकी विधिका वर्णन करता हूँ, जैसा कि ब्रह्माजीने मुझे बताया था। उस दिन उपवासका व्रत लेकर काले तिलोंसे मिश्रित जलसे स्नान करे। फिर नवीन कलशकी, जो फूटा-टूटा न हो, स्थापना करे। उसमें पचरल डाल दे। हीरा, मोती, वैदूर्य, पुष्पराग (पुखराज) और इन्द्रनील-ये उत्तम पञ्चरत्न है-ऐसा कात्यायनका कथन है। कलशके ऊपर सोनेका पात्र रखे और सोनेकी बनी हुई नन्दरानी यशोदाको प्रतिमा स्थापित करे। प्रतिमाका भाव यह होना चाहिये'यशोदा अपने पुत्र श्रीकृष्णको स्तन पिलाती हुई मन्द-मन्द मुसकरा रही हैं, श्रीकृष्ण यशोदा मैयाका एक
स्तन तो पी रहे हैं और दूसरा स्तन दूसरे हाथसे पकड़े वशीभूत हो तुमने भी अपनी पत्रीके साथ कमलके हुए हैं। वे माताको ओर प्रेमसे देखकर उन्हें सुख पहुँचा फूलोंसे वहाँ श्रीहरिका पूजन किया तथा पूजासे बचे हुए रहे हैं।' इस प्रकार जैसी अपनी शक्ति हो, उसीके फूलोंको उनके समीप ही बिखेर दिया । तुमने भगवानको अनुसार सुवर्णमय भगवत्प्रतिमाका निर्माण कराये। पुष्पमय कर दिया। इससे उस कन्याको बड़ा संतोष इसके सिवा सोनेकी रोहिणी और चाँदीके चन्द्रमाकी हुआ। वह स्वयं तुम्हें धन देने लगी, किन्तु तुमने नहीं प्रतिमा बनवाये। अंगूठेके बराबर चन्द्रमा हों और चार लिया। तब राजकुमारीने तुम्हें भोजनके लिये निमन्त्रित अंगुलको रोहिणी। भगवान्के कानोंमें कुण्डल और किया; किन्तु उस समय तुमने न तो भोजन स्वीकार किया गलेमें कण्ठा पहनाये । इस प्रकार माताके साथ जगत्पति
और न धन ही लिया। यही पुण्य तुमने पिछले जन्ममें गोविन्दकी प्रतिमा बनवाकर दूध आदिसे स्नान कराये उपार्जित किया था। फिर अपने कर्मके अनुसार तुम्हारी तथा चन्दनसे अनुलेप करे । दो श्वेत वस्त्रोंसे भगवान्को मृत्यु हो गयी। उसी महान् पुण्यके प्रभावसे तुम्हें विमान आच्छादित करके फूलोंकी मालासे उनका शृङ्गार करे। मिला है। राजन् ! पूर्वजन्ममें जो तुम्हारे द्वारा वह पुण्य भाँति-भाँतिके भक्ष्य पदार्थोका नैवेद्य लगाये, नाना हुआ था, उसीका फल इस समय तुम भोग रहे हो। प्रकारके फल अर्पण करे। दीप जलाकर रखे और
हरिश्चन्द्र बोले-मुनिवर ! किस महीनेमें वह फूलोंके मण्डपसे पूजास्थानको सुशोभित करे। विज्ञ
१-यहाँ श्रावणका अर्थ भाद्रपद समझना चाहिये । जहाँ शुक्रपक्षसे मासका आरम्भ होता है वहाँ भाद्रपदका कृष्णपक्ष श्रावणका कृष्णपक्ष समझा जाता है। इन प्रान्तोंमें कृष्णपक्षसे ही महीना आरम्भ होता है।
२-अजमौक्तिकवैदूर्यपुष्परागेन्द्रनीलकम् । पञ्चरलं प्रशस्तं तु इति कात्यायनोऽब्रवीत् ।। (३२ ॥ ३८)