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• अर्वग्रस्व पीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पापुराण
इन्द्रकी बात सुनकर भगवान् विष्णु बोले- है; उससे परास्त होकर सम्पूर्ण देवता दसों दिशाओमें 'देवराज ! वह दानव कैसा है? उसका रूप और बल भाग गये। अब वह दानव भगवान् विष्णुको देखकर कैसा है तथा उस दुष्टके रहनेका स्थान कहाँ है?' बोला, 'खड़ा रह, खड़ा रह ।' उसकी ललकार सुनकर
इन्द्र बोले-देवेश्वर ! पूर्वकालमें ब्रह्माजीके भगवान्के नेत्र क्रोधसे लाल हो गये। वे बोले-'अरे वैशमें तालजङ्घ नामक एक महान् असुर उत्पन्न हुआ था, दुराचारी दानव ! मेरी इन भुजाओंको देख ।' यह कहकर जो अत्यन्त भयङ्कर था। उसका पुत्र मुर दानवके नामसे श्रीविष्णुने अपने दिव्य बाणोंसे सामने आये हुए दुष्ट विख्यात हुआ। वह भी अत्यन्त उत्कट, महापराक्रमी दानवोको मारना आरम्भ किया। दानव भयसे विह्वल हो
और देवताओंके लिये भयङ्कर है। चन्द्रावती नामसे उठे। पाण्डुनन्दन ! तत्पश्चात् श्रीविष्णुने दैत्य-सेनापर प्रसिद्ध एक नगरी है, उसीमें स्थान बनाकर वह निवास चक्रका प्रहार किया। उससे छिन्न-भिन्न होकर सैकड़ों करता है। उस दैत्यने समस्त देवताओंको परास्त करके योद्धा मौतके मुखमें चले गये। इसके बाद भगवान् स्वर्गलोकसे बाहर कर दिया है। उसने एक दूसरे ही मधुसूदन बदरिकाश्रमको चले गये। वहाँ सिंहावतो इन्द्रको स्वर्गके सिंहासनपर बैठाया है। अनि, चन्द्रमा, नामकी गुफा थी, जो बारह योजन लम्बी थी। पाण्डुसूर्य, वायु तथा वरुण भी उसने दूसरे ही बनाये हैं। नन्दन ! उस गुफामे एक ही दरवाजा था । भगवान् विष्णु जनार्दन ! मैं सच्ची बात बता रहा हूँ। उसने सब कोई उसीमें सो रहे। दानव मुर भगवान्को मार डालनेके दूसरे ही कर लिये हैं। देवताओको तो उसने प्रत्येक उद्योगमें लगा था। वह उनके पीछे लगा रहा। वहाँ स्थानसे वञ्चित कर दिया है।
पहुंचकर उसने भी उसी गुहामें प्रवेश किया। वहाँ इन्द्रका कथन सुनकर भगवान् जनार्दनको बड़ा भगवान्को सोते देख उसे बड़ा हर्ष हुआ। उसने सोचा, क्रोध हुआ। वे देवताओंको साथ लेकर चन्द्रावतीपुरीमें 'यह दानवोंको भय देनेवाला देवता है। अतः निस्सन्देह गये । देवताओंने देखा, दैत्यराज बारम्बार गर्जना कर रहा इसे मार डालूंगा।' युधिष्ठिर ! दानवके इस प्रकार विचार
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