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• अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
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गये और वहाँ पञ्चवटीमें सीता तथा लक्ष्मणके साथ श्रीराम बोले-ब्रह्मन् ! आपकी कृपासे रहने लगे। वहाँ रहते समय रावणने चपलतावश राक्षसोंसहित लङ्काको जीतनेके लिये सेनाके साथ विजयात्या श्रीरामको तपस्विनी पत्नी सीताको हर लिया। उस दुःखसे श्रीराम व्याकुल हो उठे। उस समय सीताकी खोज करते हुए वे वनमें घूमने लगे। कुछ दूर जानेपर उन्हें जटायु मिले, जिनकी आयु समाप्त हो चुकी थी। इसके बाद उन्होंने वनके भीतर कबध नामक राक्षसका वध किया। फिर सुग्रीवके साथ उनकी मित्रता हुई। तत्पश्चात् श्रीरामके लिये वानरोंकी सेना एकत्रित हुई। हनुमान्जीने लङ्काके उद्यानमें जाकर सीताजीका दर्शन किया और उन्हें श्रीरामको चिहस्वरूप मुद्रिका प्रदान की। यह उन्होंने महान् पुरुषार्थका काम किया था। वहाँसे लौटकर वे श्रीरामचन्द्रजीसे मिले और लङ्काका सारा समाचार उनसे निवेदन किया। हनुमान्जीकी बात सुनकर श्रीरामने सुग्रीवको अनुमति ले लङ्काको प्रस्थान करनेका विचार किया और समुद्रके किनारे पहुंचकर उन्होंने लक्ष्मणसे कहा-'सुमित्रानन्दन ! किस पुण्यसे इस समुद्रको पार किया जा सकता है? यह अत्यन्त अगाध और भयङ्कर जलजन्तुओंसे भरा हुआ है। मुझे समुद्रके किनारे आया हूँ। मुने! अब जिस प्रकार ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको समुद्र पार किया जा सके, वह उपाय बताइये। मुझपर सुगमतासे पार किया जा सके।'
लक्ष्मण बोले-महाराज! आप हो आदिदेव बकदाल्भ्यने कहा- श्रीराम ! फाल्गुनके कृष्णऔर पुराणपुरुष पुरुषोत्तम है। आपसे क्या छिपा है? पक्षमें जो 'विजया' नामकी एकादशी होती है, उसका यहाँ द्वीपके भीतर बकदालभ्य नामक मुनि रहते हैं। व्रत करनेसे आपकी विजय होगी। निश्चय ही आप यहाँसे आधे योजनकी दूरीपर उनका आश्रम है। अपनी वानरसेनाके साथ समुद्रको पार कर लेंगे। रघुनन्दन ! उन प्राचीन मुनीश्वरके पास जाकर उन्हींसे राजन् ! अब इस व्रतको फलदायक विधि सुनिये। इसका उपाय पूछिये।
___दशमीका दिन आनेपर एक कलश स्थापित करे। वह लक्ष्मणको यह अत्यन्त सुन्दर बात सुनकर सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टोका भी हो सकता है। उस श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्यसे मिलनेके लिये कलशको जलसे भरकर उसमे पल्लव डाल दे। उसके गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने मस्तक झुकाकर मुनिको ऊपर भगवान् नारायणके सुवर्णमय विग्रहकी स्थापना प्रणाम किया। मुनि उनको देखते ही पहचान गये कि ये करे। फिर एकादशीके दिन प्रातःकाल स्रान करे। पुराणपुरुषोत्तम श्रीराम हैं, जो किसी कारणवश मानव- कलशको पुनः स्थिरतापूर्वक स्थापित करे। माला, शरीरमें अवतीर्ण हुए हैं। उनके आनेसे महर्षिको बड़ी चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदिके द्वारा विशेषरूपसे प्रसन्नता हुई। उन्होंने पूछा-'श्रीराम ! आपका कैसे उसका पूजन करे । कलशके ऊपर सप्तधान्य और जौ यहाँ आगमन हुआ?'
रखे। गन्ध, धूप, दीप और भाँति-भाँतिके नैवेद्यसे पूजन
कृपा कीजिये।