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उत्तरखण्ड ]
. फाल्गुन मासकी "विजया' तथा 'आमलकी' एकादशीका माहात्म्य .
समझकर वे कुपित हो गये। अतः इन दोनोंको शाप देते किया था। उस व्रतके प्रभावसे तथा भगवान् विष्णुकी हुए बोले-'ओ मूखों ! तुम दोनोंको धिक्कार है! शक्तिसे उन दोनोंकी पिशाचता दूर हो गयी। पुष्पवत्ती तुमलोग पतित और मेरी आज्ञा भंग करनेवाले हो; अतः और माल्यवान् अपने पूर्वरूपमें आ गये। उनके हृदयमें पति-पत्नीके रूपमें रहते हुए पिशाच हो जाओ।' वही पुराना नेह उमड़ रहा था। उनके शरीरपर पहले
इन्द्रके इस प्रकार शाप देनेपर इन दोनोंके मनमें बड़ा ही-जैसे अलङ्कार शोभा पा रहे थे। वे दोनों मनोहर रूप दुःख हुआ। वे हिमालय पर्वतपर चले गये और पिशाच- धारण करके विमानपर बैठे और स्वर्गलोकमें चले गये। योनिको पाकर भयङ्कर दुःख भोगने लगे। शारीरिक वहाँ देवराज इन्द्रके सामने जाकर दोनोंने बड़ी प्रसन्नताके पातकसे उत्पन्न तापसे पीड़ित होकर दोनों ही पर्वतको साथ उन्हें प्रणाम किया। उन्हें इस रूपमें उपस्थित कन्दराओंमें विचरते रहते थे। एक दिन पिशाचने अपनी देखकर इन्द्रको बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने पूछापली पिशाचीसे कहा-'हमने कौन-सा पाप किया है, 'बताओ, किस पुण्यके प्रभावसे तुम दोनोंका पिशाचत्व जिससे यह पिशाच-योनि प्राप्त हुई है? नरकका कष्ट दूर हुआ है। तुम मेरे शापको प्राप्त हो चुके थे, फिर किस
अत्यन्त भयङ्कर है तथा पिशाचयोनि भी बहुत दुःख देने- देवताने तुम्हें उससे छुटकारा दिलाया है ?' वाली है। अतः पूर्ण प्रयत्न करके पापसे बचना चाहिये। माल्यवान् बोला-स्वामिन् ! भगवान्
इस प्रकार चिन्तामग्न होकर वे दोनों दुःखके कारण वासुदेवकी कृपा तथा 'जया' नामक एकादशीके व्रतसे सूखते जा रहे थे। दैवयोगसे उन्हें माघ मासकी एकादशी हमारी पिशाचता दूर हुई है। तिथि प्राप्त हो गयी। 'जया' नामसे विख्यात तिथि, जो इन्द्रने कहा-तो अब तुम दोनों मेरे कहनेसे सब तिथियोंमें उत्तम है, आयी । उस दिन उन दोनोंने सव सुधापान करो। जो लोग एकादशीके व्रतमें तत्पर और प्रकारके आहार त्याग दिये। जलपानतक नहीं किया। भगवान् श्रीकृष्णके शरणागत होते हैं, वे हमारे भी किसी जीवकी हिंसा नहीं की, यहाँतक कि फल भी नहीं पूजनीय हैं। खाया। निरन्तर दुःखसे युक्त होकर वे एक पीपलके भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-राजन् ! इस समीप बैठे रहे । सूर्यास्त हो गया। उनके प्राण लेनेवाली कारण एकादशीका व्रत करना चाहिये । नृपश्रेष्ठ ! 'जया' भयङ्कर रात उपस्थित हुई। उन्हें नींद नहीं आयी। वे रति ब्रह्महत्याका पाप भी दूर करनेवाली है। जिसने 'जया' या और कोई सुख भी नहीं पा सके। सूर्योदय हुआ। का व्रत किया है, उसने सब प्रकारके दान दे दिये और द्वादशीका दिन आया। उन पिशाचोंके द्वारा 'जया के सम्पूर्ण यज्ञोंका अनुष्ठान कर लिया। इस माहात्म्यके उत्तम व्रतका पालन हो गया। उन्होंने रातमे जागरण भी पढ़ने और सुननेसे अग्रिष्टोम यज्ञका फल मिलता है।
फाल्गुन मासकी 'विजया' तथा 'आमलकी' एकादशीका माहात्म्य
युधिष्ठिरने पूछा-वासुदेव! फाल्गुनके कृपया उसके पुण्यका वर्णन कीजिये।' कृष्णपक्षमें किस नामकी एकादशी होती है? कृपा ब्रह्माजीने कहा-नारद ! सुनो-'मैं एक उत्तम करके बताइये।
कथा सुनाता हूँ, जो पापोंका अपहरण करनेवाली है। भगवान् श्रीकृष्ण बोले-युधिष्ठिर ! एक बार यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पापनाशक है। यह नारदजीने कमलके आसनपर विराजमान होनेवाले "विजया' नामकी एकादशी राजाओंको विजय प्रदान ब्रह्माजीसे प्रश्न किया-'सुरश्रेष्ठ ! फाल्गुनके करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। पूर्वकालकी कृष्णपक्षमें जो 'विजया' नामकी एकादशी होती है, बात है, भगवान् श्रीरामचन्द्रजी चौदह वर्षों के लिये वनमें