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उत्तरखण्ड ]
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• माघ मासकी 'षट्तिला' और 'जया' एकादशीका माहात्म्य -
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फड़कने लगा, जो उत्तम फलकी सूचना दे रहा था। सरोवर के तटपर बहुत-से मुनि वेद पाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजाको बड़ा हर्ष हुआ। वे घोड़ेसे उतरकर मुनियोंके सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे। वे मुनि उत्तम व्रतका पालन करनेवाले थे। जब राजाने हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले- 'राजन्! हमलोग तुमपर प्रसन्न हैं।'
मुनि बोले- राजन् ! आजके ही दिन 'पुत्रदा' नामकी एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रतका पालन करो। महाराज ! भगवान् केशवके प्रसादसे तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा ।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- युधिष्ठिर! इस प्रकार उन मुनियोंके कहनेसे राजाने उत्तम व्रतका पालन किया। महर्षियोंके उपदेशके अनुसार विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशीका अनुष्ठान किया। फिर द्वादशीको पारण करके मुनियोंके चरणोंमें बारम्बार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये। तदनन्तर रानीने गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आनेपर पुण्यकर्मा राजाको तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणोंसे पिताको संतुष्ट कर दिया। वह प्रजाओंका पालक हुआ। इसलिये राजन् ! 'पुत्रदा' का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिये। मैंने लोगों के हितके लिये तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित होकर 'पुत्रदा का व्रत करते हैं, वे इस लोकमें पुत्र पाकर राजाने कहा - विश्वेदेवगण! यदि आपलोग मृत्युके पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्यको पढ़ने प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये । और सुननेसे अग्रिष्टोम यज्ञका फल मिलता है !
मुनि बोले- राजन् ! हमलोग विश्वेदेव हैं, यहाँ स्नानके लिये आये हैं। माघ निकट आया है। आजसे पाँचवें दिन माघका स्नान आरम्भ हो जायगा। आज ही 'पुत्रदा' नामकी एकादशी है, जो व्रत करनेवाले मनुष्योंको पुत्र देती है।
राजा बोले- आपलोग कौन हैं? आपके नाम क्या हैं तथा आपलोग किसलिये यहाँ एकत्रित हुए हैं? यह सब सच सच बताइये ।
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माघ मासकी 'षट्तिला' और 'जया' एकादशीका माहात्म्य
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- जगन्नाथ !
युधिष्ठिरने पूछाश्रीकृष्ण ! आदिदेव ! जगत्पते ! माघ मासके कृष्ण पक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ? उसके लिये कैसी विधि है ? तथा उसका फल क्या है ? महाप्राज्ञ ! कृपा करके ये सब बातें बताइये ।
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श्रीभगवान् बोले – नृपश्रेष्ठ ! सुनो, माघ मासके कृष्ण पक्षकी जो एकादशी है, वह 'षट्तिला' के नामसे विख्यात है, जो सब पापोंका नाश करनेवाली है। अब तुम 'षट्तिला' की पापहारिणी कथा सुनो, जिसे मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्यने दाल्भ्यसे कहा था ।
दाल्भ्यने पूछा – ब्रह्मन् ! मृत्युलोकमें आये हुए प्राणी प्रायः पापकर्म करते हैं। उन्हें नरकमें न जाना पड़े, इसके लिये कौन सा उपाय है ? बतानेकी कृपा करें।
पुलस्त्यजी बोले- महाभाग ! तुमने बहुत
अच्छी बात पूछी है, बतलाता हूँ सुनो। माघ मास आनेपर मनुष्यको चाहिये कि वह नहा-धोकर पवित्र हो इन्द्रियोंको संयममें रखते हुए काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और चुगली आदि बुराइयोंको त्याग दे । देवाधिदेव ! भगवान्का स्मरण करके जलसे पैर धोकर भूमिपर पड़े हुए गोबरका संग्रह करे। उसमें तिल और कपास छोड़कर एक सौ आठ पिंडिकाएँ बनाये। फिर माघमें जब आर्द्रा या मूल नक्षत्र आये, तब कृष्ण पक्षकी एकादशी करनेके लिये नियम ग्रहण करे। भलीभाँति स्नान करके पवित्र हो शुद्धभावसे देवाधिदेव श्रीविष्णुकी पूजा करे। कोई भूल हो जानेपर श्रीकृष्णका नामोच्चारण करे। रातको जागरण और होम करे। चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि सामग्रीसे शङ्ख, चक्र और गदा धारण करनेवाले देवदेवेश्वर श्रीहरिकी पूजा करे। तत्पश्चात्