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उत्तरखण्ड ]
. पौष मासकी 'सफला' और 'पुत्रदा' नामक एकादशीका माहात्म्य .
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पौष मासकी 'सफला' और 'पुत्रदा' नामक एकादशीका माहात्म्य
युधिष्ठिरने पूछा-स्वामिन् ! पौष मासके करता था। अपने पुत्रको ऐसा पापाचारी देखकर राजा कृष्णपक्षमें जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? माहिष्मतने राजकुमारोंमें उसका नाम लुम्भक रख दिया । उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवताको पूजा की फिर पिता और भाइयोंने मिलकर उसे राज्यसे बाहर जाती है? यह बताइये।
निकाल दिया। लुम्भक उस नगरसे निकलकर गहन भगवान् श्रीकृष्णने कहा-राजेन्द्र ! बतलाता वनमें चला गया। वहीं रहकर उस पापीने प्रायः समूचे हूँ, सुनो; बड़ी-बड़ी दक्षिणावाले यज्ञोंसे भी मुझे उतना नगरका धन लूट लिया । एक दिन जब वह चोरी करनेके संतोष नहीं होता, जितना एकादशी-व्रतके अनुष्ठानसे लिये नगर आया तो रातमें पहरा देनेवाले सिपाहियोंने होता है। इसलिये सर्वथा प्रयत्न करके एकादशीका व्रत उसे पकड़ लिया। किन्तु जब उसने अपनेको राजा करना चाहिये । पौष मासके कृष्णपक्षमें 'सफला' नामकी माहिष्मतका पुत्र बतलाया तो सिपाहियोंने उसे छोड़ एकादशी होती है। उस दिन पूर्वोक्त विधानसे ही दिया। फिर वह पापी वनमें लौट आया और प्रतिदिन विधिपूर्वक भगवान् नारायणकी पूजा करनी चाहिये। मांस तथा वृक्षोंके फल खाकर जीवन-निर्वाह करने एकादशी कल्याण करनेवाली है। अतः इसका व्रत लगा। उस दुष्टका विश्राम-स्थान पीपल वृक्षके निकट अवश्य करना उचित है। जैसे नागोंमें शेषनाग, पक्षियोंमें था। वहाँ बहुत वर्षोंका पुराना पीपलका वृक्ष था। उस गरुड़, देवताओंमें श्रीविष्णु तथा मनुष्योंमें ब्राह्मण श्रेष्ठ वनमें वह वृक्ष एक महान् देवता माना जाता था। है, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतोंमें एकादशी तिथि श्रेष्ठ है। पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था। राजन् ! 'सफला' एकादशीको नाम-मन्त्रोंका उच्चारण बहुत दिनोंके पश्चात् एक दिन किसी संचित पुण्यके करके फलोंके द्वारा श्रीहरिका पूजन करे। नारियल के प्रभावसे उसके द्वारा एकादशीके व्रतका पालन हो गया। फल, सुपारी, बिजौरा नीबू, जमीरा नीबू, अनार, सुन्दर पौष मासमें कृष्णपक्षको दशमीके दिन पापिष्ठ लुम्भन्ने
आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषतः आमके फलोंसे वृक्षोंके फल खाये और वस्त्रहीन होनेके कारण रातभर देवदेवेश्वर श्रीहरिकी पूजा करनी चाहिये। इसी प्रकार जाड़ेका कष्ट भोगा। उस समय न तो उसे नींद आयी धूप-दीपसे भी भगवान्की अर्चना करे। 'सफला' और न आराम ही मिला । वह निष्पाण-सा हो रहा था। एकादशीको विशेषरूपसे दीप-दान करनेका विधान है। सूर्योदय होनेपर भी उस पापीको होश नहीं हुआ। रातको वैष्णव पुरुषोंके साथ जागरण करना चाहिये। 'सफला एकादशीके दिन भी लुम्भक बेलेश पड़ा रहा। जागरण करनेवालेको जिस फलकी प्राप्ति होती है, वह दोपहर होनेपर उसे चेतना प्राप्त हुई। फर इधर-उधर हजारों वर्ष तपस्या करनेसे भी नहीं मिलता। दृष्टि डालकर वह आसनसे उठा औ लैंगड़ेकी भाँति
नृपश्रेष्ठ ! अब 'सफला एकादशीकी शुभकारिणी पैरोंसे बार-बार लड़खड़ाता हुआ वनके भीतर गया। वह कथा सुनो। चम्पावती नामसे विख्यात एक पुरी है, जो भूखसे दुर्बल और पीड़ित हो रह था। राजन् ! उस कभी राजा माहिष्मतकी राजधानी थी। राजर्षि समय लुम्भक बहुत-से फल लेकर ज्यों ही विश्राममाहिष्मतके पाँच पुत्र थे। उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा स्थानपर लौटा, त्यों ही सूर्यदेव अस्त हो गये। तब उसने पापकर्ममें ही लगा रहता था। परस्त्रीगामी और वृक्षकी जड़में बहुत-से फल न्विदन करते हुए कहावेश्यासक्त था। उसने पिताके धनको पापकर्ममें ही खर्च 'इन फलोंसे लक्ष्मीपति भगवन् विष्णु संतुष्ट हों।' यों किया। वह सदा दुराचारपरायण तथा ब्राह्मणोंका निन्दक कहकर लुम्भकने रातभर नंद नहीं ली। इस प्रकार था। वैष्णवों और देवताओकी भी हमेशा निन्दा किया अनायास ही उसने इस व्रतका पालन कर लिया। उस