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. अर्जयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
व्रतका पालन करनेवाला शुद्धचित्त पुरुष दशमीको मनोरञ्जन करते हुए सम्पूर्ण दिन व्यतीत करे। नृपश्रेष्ठ ! मदा एकभुक्त रहे अथवा शौच-सन्तोषादि नियमोंके भक्तियुक्त होकर रात्रिमें जागरण करे, ब्राह्मणोंको दक्षिणा पालनपूर्वक नक्तव्रतके स्वरूपको जानकर उसके अनुसार दे और प्रणाम करके उनसे त्रुटियोंके लिये क्षमा मांगे। एक बार भोजन करे । दिनके आठवें भागमें जब सूर्यका जैसी कृष्णपक्षकी एकादशी है, वैसी ही शुरूपक्षको भी तेज मन्द पड़ जाता है, उसे 'नक्त' जानना चाहिये। है। इसी विधिसे उसका भी व्रत करना चाहिये। रातको भोजन करना 'नक्त नहीं है। गृहस्थके लिये पार्थ ! द्विजको उचित है कि वह शुक्ल और कृष्णतारोंके दिखायी देनेपर नक्तभोजनका विधान है और पक्षकी एकादशीके व्रती लोगोंमें भेदबुद्धि न उत्पन्न करे। संन्यासीके लिये दिनके आठवें भागमें; क्योंकि उसके शलोद्धार तीर्थमें स्नान करके भगवान् गदाधरका दर्शन लिये रातमें भोजनका निषेध है । कुन्तीनन्दन ! दशमीको करनेसे जो पुण्य होता है तथा संक्रान्तिके अवसरपर चार रात व्यतीत होनेपर एकादशीको प्रातःकाल व्रत लाखका दान देकर जो पुण्य प्राप्त किया जाता है, वह करनेवाला पुरुष व्रतका नियम ग्रहण करे और सबेरे तथा सब एकादशीव्रतकी सोलहवीं कलाके बराबर भी नहीं मध्याह्नको पवित्रताके लिये मान करे । कुक्का स्रान निम्र है। प्रभासक्षेत्रमें चन्द्रमा और सूर्यके ग्रहणके अवसरपर श्रेणीका है। बावलीमें स्नान करना मध्यम, पोखरेमें उत्तम नान-दानसे जो पुण्य होता है, वह निश्चय ही तथा नदीमें उससे भी उत्तम माना गया है। जहाँ जलमें एकादशीको उपवास करनेवाले मनुष्यको मिल जाता है। खड़ा होनेपर जल-जन्तुओंको पीड़ा होती हो, वहाँ स्रान केदारक्षेत्रमे जल पीनेसे पुनर्जन्म नहीं होता। एकादशीका करनेपर पाप और पुण्य बराबर होता है। यदि जलको भी ऐसा ही माहात्म्य है। यह भी गर्भवासका निवारण छानकर शुद्ध कर ले तो घरपर भी स्रान करना उत्तम करनेवाली है। पृथ्वीपर अश्वमेध यज्ञका जो फल होता माना गया है। इसलिये पाण्डव श्रेष्ठ ! घरपर उक्त है, उससे सौगुना अधिक फल एकादशी-व्रत करनेविधिसे स्नान करे। नानके पहले निम्नाङ्कित मन्त्र पढ़कर वाले को मिलता है। जिसके घरमें तपस्वी एवं श्रेष्ठ शरीरमें मृत्तिका लगा ले
ब्राह्मण भोजन करते हैं उसको जिस फलको प्राप्ति होती अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुकान्ते वसुन्धरे। है, वह एकादशी व्रत करनेवालेको भी अवश्य मिलता मृत्तिके हर मे पाईं यन्मया पूर्वसचितम् ॥ है। वेदाङ्गोंके पारगामी विद्वान् ब्राह्मणको सहस्र गोदान
(४०।२८) करनेसे जो पुण्य होता है, उससे सौगुना पुण्य एकादशी'वसुन्धरे ! तुम्हारे ऊपर अश्च और रथ चला करते व्रत करनेवालेको प्राप्त होता है। इस प्रकार व्रतीको वह हैं। भगवान् विष्णुने भी वामन अवतार धारण कर तुम्हें पुण्य प्राप्त होता है, जो देवताओंके लिये भी दुर्लभ है। अपने पैरोंसे नापा था। मृत्तिके ! मैंने पूर्वकालमें जो पाप रातको भोजन कर लेनेपर उससे आधा पुण्य प्राप्त होता सचित किया है, उस मेरे पापको हर लो।'
है तथा दिनमें एक बार भोजन करनेसे देहधारियोंको __ व्रती पुरुषको चाहिये कि वह एकचित्त और दृढ़ नक्त-भोजनका आधा फल मिलता है। जीव जबतक सङ्कल्प होकर क्रोध तथा लोभका परित्याग करे। भगवान् विष्णुके प्रिय दिवस एकादशीको उपवास नहीं अत्यज, पाखण्डी, मिथ्यावादी, ब्राह्मणनिन्दक, अगम्या करता, तभीतक तीर्थ, दान और नियम अपने महत्त्वको स्त्रीके साथ गमन करनेवाले अन्यान्य दुराचारी, गर्जना करते हैं। इसलिये पाण्डव-श्रेष्ठ ! तुम इस परधनहारी तथा परस्त्रीगामी मनुष्योंसे वार्तालाप न करे। व्रतका अनुष्ठान करो। कुन्तीनन्दन ! यह गोपनीय भगवान् केशवकी पूजा करके उन्हें नैवेद्य भोग लगाये। एवं उतम व्रत है, जिसका मैंने तुमसे वर्णन किया घरमें भक्तियुक्त मनसे दीपक जलाकर रखे। पार्थ ! उस है। हजारों यज्ञोंका अनुष्ठान भी एकादशी-व्रतकी तुलना दिन निद्रा और मैथुनका परित्याग करे। धर्मशास्त्रसे नहीं कर सकता।