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• अर्थयस्व इषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
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यह सब करनेके पश्चात् गुरुकी पूजा करे। उन्हें वस्त्र, पगड़ी तथा जामा दे। अपनी शक्तिके अनुसार दक्षिणा भी दे। फिर भोजन और ताम्बूल निवेदन करके आचार्यको संतुष्ट करे। निर्धन पुरुषोंको भी यथाशक्ति प्रयत्नपूर्वक पक्षवर्धिनी एकादशीका व्रत करना चाहिये तदनन्तर गीत, नृत्य, पुराण पाठ तथा हर्षके साथ रात्रिमें जागरण करे।
जो मनीषी पुरुष पक्षवर्धिनी एकादशीका माहात्म्य श्रवण करते हैं, उनके द्वारा सम्पूर्ण व्रतका अनुष्ठान हो जाता है । पञ्चाग्निसेवन तथा तीर्थो में साधना करनेसे जो पुण्य होता है, वह श्रीविष्णुके समीप जागरण करनेसे ही प्राप्त हो जाता है। पक्षवर्धिनी एकादशी परम पुण्यमयी तथा सब पापों का नाश करनेवाली है। ब्रह्मन् ! यह उपवास करनेवाले मनुष्योंकी करोड़ों हत्याओंका भी विनाश कर डालती है। मुने! पूर्वकालमें महर्षि वसिष्ठ, भरद्वाज, ध्रुव तथा राजा अम्बरीषने भी इसका व्रत किया था। यह तिथि श्रीविष्णुको अत्यन्त प्रिय है। यह काशी तथा द्वारकापुरीके समान पवित्र है। भक्त पुरुषके उपवास करनेपर यह उसे मनोवाञ्छित फल प्रदान करती है। जैसे सूर्योदय होनेपर तत्काल अन्धकारका नाश हो जाता है, उसी प्रकार पक्षवर्धिनीका व्रत करनेसे पापराशि नष्ट हो जाती है।
नारद ! अब मैं एकादशीकी रातमें जागरण करनेका माहात्म्य बतलाऊँगा, ध्यान देकर सुनो भक्त पुरुषको चाहिये कि एकादशी तिथिको रात्रिके समय भक्तिपूर्वक भगवान् विष्णुका पूजन करके वैष्णवोंके साथ उनके सामने जागरण करे। जो गीत, वाद्य, नृत्य, पुराण-पाठ, धूप दीप, नैवेद्य, पुष्प, चन्दनानुलेप, फल, अर्घ्य, श्रद्धा, दान, इन्द्रियसंयम, सत्यभाषण तथा शुभकर्मके अनुष्ठानपूर्वक प्रसन्नताके साथ श्रीहरिके समक्ष जागरण करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान्का प्रिय होता है। जो विद्वान् मनुष्य भगवान् विष्णुके समीप जागरण करते, श्रीकृष्णकी भावना करते हुए कभी नींद नहीं लेते तथा मन-ही-मन बारम्बार श्रीकृष्णका नामोच्चारण करते हैं, उन्हें परम धन्य समझना चाहिये। विशेषतः एकादशीकी रातमें जागनेपर
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[ संक्षिप्त पद्मपुराण
तो वे और भी धन्यवादके पात्र हैं। जागरणके समय एक क्षण गोविन्दका नाम लेनेसे व्रतका चौगुना फल होता है, एक पहरतक नामोच्चारणसे कोटिगुना फल मिलता है और चार पहरतक नामकीर्तन करनेसे असीम फलकी प्राप्ति होती है। श्रीविष्णुके आगे आधे निमेष भी जागनेपर कोटिगुना फल होता है, उसकी संख्या नहीं है। जो नरश्रेष्ठ भगवान् केशवके आगे नृत्य करता है, उसके पुण्यका फल जन्मसे लेकर मृत्युकालतक कभी क्षीण नहीं होता। महाभाग ! प्रत्येक प्रहरमें विस्मय और उत्साहसे युक्त हो पाप तथा आलस्य आदि छोड़कर निर्वेदशून्य हृदयसे श्रीहरिके समक्ष नमस्कार और नीराजनासे युक्त आरती उतारनी चाहिये जो मनुष्य एकादशीको भक्तिपूर्वक अनेक गुणोंसे युक्त जागरण करता है, वह फिर इस पृथ्वीपर जन्म नहीं लेता। जो धनकी कंजूसी छोड़कर पूर्वोक्त प्रकारसे एकादशीको भक्तिसहित जागरण करता है, वह परमात्मामें लीन होता है।
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जो भगवान् विष्णुके लिये जागरणका अवसर प्राप्त होनेपर उसका उपहास करता है, वह साठ हजार वर्षोंतक विष्ठाका कोड़ा होता है। प्रतिदिन वेद-शास्त्रमें परायण तथा यज्ञोंका अनुष्ठान करनेवाला ही क्यों न हो, यदि एकादशीकी रातमें जागरणका समय आनेपर उसकी निन्दा करता है तो उसका अधःपतन होता है। जो मेरी (शिवकी) पूजा करते हुए विष्णुकी निन्दामें तत्पर रहता है, वह अपनी इक्कीस पीढ़ियोंके साथ नरकमें पड़ता है। विष्णु ही शिव हैं और शिव ही विष्णु हैं। दोनों एक ही मूर्तिकी दो झाँकियोंके समान स्थित है, अतः किसी प्रकार भी इनकी निन्दा नहीं करनी चाहिये। यदि जागरणके समय पुराणकी कथा बाँचनेवाला कोई न हो तो नाच-गान कराना चाहिये। यदि कथावाचक मौजूद हों तो पहले पुराणका ही पाठ होना चाहिये। वत्स ! श्रीविष्णुके लिये जागरण करनेपर एक हजार अश्वमेध तथा दस हजार वाजपेय यज्ञोंसे भी करोड़गुना पुण्य प्राप्त होता है। श्रीहरिकी प्रसन्नताके लिये जागरण करके मनुष्य पिता, माता तथा पत्नी - तीनोंके कुलोंका उद्धार कर देता है।
यदि एकादशीके व्रतका दिन दशमीसे विद्ध हो तो