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अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् •
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ब्राह्मणों तथा अतिथियोंको तृप्त करता है, उसे अक्षय पुण्यकी प्राप्ति होती है। महान् पाप करके भी जो याचकको — विशेषतः ब्राह्मणको अत्र दान करता है, वह पापसे मुक्त हो जाता है। ब्राह्मणको दिया हुआ दान अक्षय होता है। शूद्रको भी किया हुआ अत्र दान महान् फल देनेवाला है। अन्न-दान करते समय याचकसे यह न पूछे कि वह किस गोत्र और किस शाखाका है, तथा उसने कितना अध्ययन किया है ? अन्नका अभिलाषी कोई भी क्यों न हो, उसे दिया हुआ अन्न-दान महान् फल देनेवाला होता है। अतः मनुष्यों को इस पृथ्वीपर विशेष रूपसे अन्नका दान करना चाहिये ।
जलका दान भी श्रेष्ठ है; वह सदा सब दानोंमें उत्तम है। इसलिये बावली, कुआँ और पोखरा बनवाना चाहिये। जिसके खोदे हुए जलाशयमें गौ, ब्राह्मण और साधु पुरुष सदा पानी पीते हैं, वह अपने कुलको तार देता है। नारद ! जिसके पोखरेमें गर्मीकि समयतक पानी ठहरता है, वह कभी दुर्गम एवं विषम संकटका सामना नहीं करता। पोखरा बनवानेवाला पुरुष तीनों लोकोंमें सर्वत्र सम्मानित होता है। मनीषी पुरुष धर्म, अर्थ और कामका यही फल बतलाते हैं कि देशमें खेतके भीतर उत्तम पोखरा बनवाया जाय, जो प्राणियोंके लिये महान् आश्रय हो । देवता मनुष्य, गन्धर्व, पितर, नाग, राक्षस तथा स्थावर प्राणी भी जलाशयका आश्रय लेते हैं। जिसके पोखरेमें केवल वर्षा ऋतुमें ही जल रहता है, उसे अग्निहोत्रका फल मिलता है। जिसके तालाबमें हेमन्त और शिशिर कालतक जल ठहरता है, उसे सहस्र गोदानका फल मिलता है। यदि वसन्त तथा ग्रीष्म ऋतुतक पानी रुकता हो तो मनीषी पुरुष अतिरात्र और अश्वमेध यज्ञोंका फल बतलाते हैं।
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
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अब वृक्ष लगानेके जो लाभ हैं, उनका वर्णन सुनो। महामुने! वृक्ष लगानेवाला पुरुष अपने भूतकालीन पितरों तथा होनेवाले वंशजोंका भी उद्धार कर देता है। इसलिये वृक्षोंको अवश्य लगाना चाहिये । वह पुरुष परलोकमें जानेपर वहाँ अक्षय लोकोंको प्राप्त करता है। वृक्ष अपने फूलोंसे देवताओंका पत्तोंसे पितरोंका तथा छायासे समस्त अतिथियोंका पूजन करते हैं किन्नर, यक्ष, राक्षस, देवता, गन्धर्व, मानव तथा ऋषि भी वृक्षोंका आश्रय लेते हैं। वृक्ष फूल और फलोंसे युक्त होकर इस लोकमें मनुष्योंको तृप्त करते हैं। वे इस लोक और परलोकमें भी धर्मतः पुत्र माने गये हैं। जो पोखरेके किनारे वृक्ष लगाते यज्ञानुष्ठान करते तथा जो सदा सत्य बोलते हैं, वे कभी स्वर्गसे भ्रष्ट नहीं होते।
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सत्य ही परम मोक्ष है, सत्य ही उत्तम शास्त्र है, सत्य देवताओंमें जाग्रत् रहता है तथा सत्य परम पद है। तप, यज्ञ, पुण्यकर्म, देवर्षि-पूजन, आद्यविधि और विद्या- ये सभी सत्यमें प्रतिष्ठित हैं। सत्य ही यज्ञ, दान, मन्त्र और सरस्वती देवी हैं; सत्य ही व्रतचर्या है तथा सत्य ही ॐकार है। सत्यसे ही वायु चलती है, सत्यसे ही सूर्य तपता है, सत्यके प्रभावसे ही आग जलती है तथा सत्यसे ही स्वर्ग टिका हुआ है। लोकमें जो सत्य बोलता है, वह सब देवताओंके पूजन तथा सम्पूर्ण तीर्थोंमें खान करनेका फल निःसंदेह प्राप्त कर लेता है। एक हजार अश्वमेध यज्ञका पुण्य और सत्य — इन दोनोंको यदि तराजूपर रखकर तौला जाय तो सम्पूर्ण यशोकी अपेक्षा सत्यका ही पलड़ा भारी होगा। देवता, पितर और ऋषि सत्यमें ही विश्वास करते हैं। सत्यको ही परम धर्म और सत्यको ही परम पद कहते हैं। * सत्यको
* सत्यमेव परो मोक्षः सत्यमेव परं श्रुतम् । सत्यं देवेषु जागर्ति सत्यं च परमं पदम् ॥ तपो यज्ञाश्च पुण्यं च तथा देवर्षिपूजनम्। आद्यो विधि विद्या च सर्व सत्ये प्रतिष्ठितम् ॥ सत्यं यज्ञस्तथा दानं मन्त्रो देवी सरस्वती । व्रतचर्या तथा सत्यमोङ्कारः सत्यमेव च ॥ सत्येन वायुरभ्येति सत्येन तपते रविः । सत्येन चाग्निर्दहति स्वर्गः सत्येन तिष्ठति ॥ पूजन सर्वदेवानां सर्वतीर्थावगाहनम् । सत्ये च वदते लोके सर्वमाप्रोत्यसंशयः ॥ अश्वमेधसहस्रं च सत्यं च तुलया भूतम् । सर्वेषां सर्वयज्ञानां सत्यमेव विशिष्यते ॥
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सत्ये देवाः प्रतीयन्ते पितरो ऋषयस्तथा । सत्यमाहुः परं धर्म सत्यमाहुः परं पदम् ॥ (२८ । २० - २६ )