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....... अर्जयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
BALRAM
जो महान् कान्तिमान, अत्यन्त उत्साही, महामोहके परिपूर्ण हैं, उन श्रीवासुदेवको नमस्कार है। जो पाञ्चजन्य नाशक, सम्पूर्ण जगत्में व्यापक तथा गुणातीत है; जो नामक शङ्ख और सूर्यके समान तेजस्वी सुदर्शन चक्रसे सर्वत्र विद्यमान रहकर शोभायमान हो रहे हैं, प्राणियोंके विराजमान हैं तथा कौमोदकी गदा जिनकी शोभा बढ़ा ऐश्वर्य एवं कल्याणकी वृद्धि करते हैं तथा समताका भाव रही है, उन भगवान् श्रीविष्णुकी मैं सदा शरण लेता हूँ। उत्पन्न करनेके लिये सद्धर्मका प्रसार करनेवाले हैं, उन जो उत्तम गुणोंसे सम्पन्न हैं, जिन्हें गुणोंका कोश माना प्रणवरूप परमेश्वरको मैं नमस्कार करता हूँ। जो विचारक जाता है, जो चराचर जगत्के आधार तथा सूर्य एवं हैं, वेद जिनका स्वरूप है, जो 'यज्ञ' के नामसे पुकारे अग्निके समान तेजस्वी हैं, उन भगवान् वासुदेवकी मैं जाते हैं, यज्ञ जिन्हें अत्यन्त प्रिय है, जो सम्पूर्ण विश्वकी शरण लेता हूँ। जो अपने प्रकाशकी किरणोंसे अविद्याके उत्पत्तिके स्थान तथा समस्त जगत्का उद्धार करनेवाले बादलोको छिन्न-भिन्न कर देते हैं, सन्यास-धर्मके प्रवर्तक हैं: संसार-सागरमें डूबे हुए प्राणियोंको बचानेके लिये जो हैं तथा सूर्यके समान तेजसे सबसे ऊँचे लोकमें नौकारूपसे विराजमान हैं, उन प्रणवस्वरूप श्रीहरिको मैं प्रकाशित होते हैं, उन भगवान् वासुदेवकी मैं शरण प्रणाम करता हूँ। जो सम्पूर्ण भूतोंमें निवास करते हैं, प्रहण करता है। जो चन्द्रमाके रूपमें अमृतके भंडार हैं, नाना रूपोंमें प्रतीत होते हुए भी एक रूपसे विराजमान आनन्दकी मात्रासे जिनकी विशेष शोभा हो रही है, हैं तथा जो परमधाम और कैवल्य (मोक्ष) के रूपमें देवताओंसे लेकर सम्पूर्ण जीव जिनका आश्रय पाकर ही प्रतिष्ठित हैं, उन सुखस्वरूप वरदाता भगवान्को मैं जीवन धारण करते हैं, उन भगवान् वासुदेवकी मैं शरण प्रणाम करता हूँ।
- ग्रहण करता हूँ। जो सूर्यके रूपमें सर्वत्र विराजमान । जो सूक्ष्म, सूक्ष्मतर, शुद्ध, निर्गुण, गुणोंके नियन्ता रहकर पृथ्वीके रसको सोखते और पुनः नवीन रसकी और प्राकृत भावोंसे रहित हैं, उन वेदसंज्ञक परमात्माको वृष्टि करते हैं, जो सम्पूर्ण प्राणियोंके भीतर प्राणरूपसे नमस्कार करता हूँ। जो देवताओं और दैत्योंके वियोगसे व्याप्त हैं, उन भगवान् वासुदेवकी मैं शरण लेता हूँ। जो वर्जित (सर्वदा सबसे संयुक्त), तुष्टियोंसे रहित तथा महात्मा स्वरूपसे सबकी अपेक्षा ज्येष्ठ है, देवताओके भी वेदों और योगियोंके ध्येय हैं, उन ॐकारस्वरूप आराध्य देव है, सम्पूर्ण लोकोका पालन करते हैं तथा परमेश्वरको नमस्कार करता हूँ। व्यापक, विश्वके ज्ञाता, प्रलयकालीन जलमें नौकाकी भाँति स्थित रहते हैं, उन विज्ञानस्वरूप, परमपदरूप, शिव, कल्याणमय गुणोंसे भगवान् वासुदेवकी मैं शरण लेता हूँ। सम्पूर्ण विश्व युक्त, शान्त एवं प्रणवरूप ईश्वरको मैं प्रणाम करता हूँ। जिनका स्वरूप है, जो स्थावर और जङ्गम-सभी जिनको मायाके प्रभावमें आकर ब्रह्मा आदि देवता और प्राणियोंके भीतर निवास करते हैं, स्वाहा जिनका मुख है असुर भी उनके परम शुद्ध रूपको नहीं जानते तथा जो तथा जो देववृन्दकी उत्पत्तिके कारण हैं, उन भगवान् मोक्षके द्वार हैं, उन परमात्माको मैं नमस्कार करता हूँ।। वासुदेवकी मैं शरण ग्रहण करता हूँ। जो सब प्रकारके . जो आनन्दके मूलस्रोत, केवल (अद्वितीय) तथा परम पवित्र रसोंसे परिपुष्ट और शान्तिमय रूपोंसे युक्त शुद्ध हंसस्वरूप हैं; कार्य-कारणमय जगत् जिनका हैं, संसारमें गुणज्ञ माने जाते हैं, रत्नोंके अधीश्वर हैं और स्वरूप है; जो गुणोंके नियन्ता तथा महान् प्रभा-पुञ्जसे निर्मल तेजसे शोभा पाते हैं, उन भगवान् वासुदेवकी मैं
राजन्त दिजमण्डले मखमुखे ब्रह्मश्रिया पूजितं दिव्येनापि सुतेजसा करमयं यं चेन्द्रनीलोपमम् । देवानां हितकाम्यया सुतनुर्ज वैरोचनस्यार्पक याचनं मम दीयतां त्रिपदक बन्दे पर वामनम्। तं दृष्टं रविमण्डले मुनिगणः सम्पासवन्त दिवं चन्द्राकों तु तपन्तमेव सहसा सम्प्राप्तवन्तौ सदा। तस्यैवापि सुरक्रिणः सुरगणाः प्रापुर्लय साम्प्रतं काये विश्वविकोशके तमतुलं भौमि प्रभोविक्रमम् ॥
(१८।३१-७७)