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अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
देवता समूचे तीर्थस्थानकी रक्षामें रहते हैं। वह स्थान बीचकी भूमिमें दान देता है, वह सद्गतिको प्राप्त होता सब पापोंको हरनेवाला और शुभ है। जो प्रयागका है। जो अपने कार्यके लिये या पितृकार्यके लिये अथवा स्मरण करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। उस देवताकी पूजाके लिये प्रयागमें सुवर्ण, मणि, मोती तीर्थके दर्शन और नाम-कीर्तनसे तथा वहाँकी मिट्टी प्राप्त अथवा धान्यका दान ग्रहण करता है, उसका तीर्थ-सेवन करनेसे भी मनुष्य पापमुक्त हो जाता है। महाराज! व्यर्थ होता है; वह जबतक दूसरेका द्रव्य भोगता है, प्रयागमें पाँच कुण्ड हैं, जिनके बीचसे होकर गङ्गाजी तबतक उसके तीर्थ-सेवनका कोई फल नहीं है। बहती हैं। प्रयागमें प्रवेश करनेवाले मनुष्यका पाप अतः इस प्रकार तीर्थ अथवा पवित्र मन्दिरोंमें तत्काल नष्ट हो जाता है। जो मनुष्य सहस्रों योजन दूरसे जाकर किसीसे कुछ ग्रहण न करे। कोई भी निमित्त हो, भी गङ्गाजीका स्मरण करता है, वह पापाचारी होनेपर भी द्विजको प्रतिग्रहसे सावधान रहना चाहिये । प्रयागमें भूरी परमगतिको प्राप्त होता है। मनुष्य गङ्गाका नाम लेनेसे अथवा लाल रंगकी गायके, जो दूध देनेवाली हो, पापमुक्त होता है, दर्शन करनेसे कल्याणका दर्शन करता सींगोंको सोनेसे और खुरोंको चाँदीसे मढ़ा दे; फिर उसके है तथा स्नान करने और जल पीनेसे अपने कुलकी सात गलेमें वस्त्र लपेटकर श्वेतवस्त्रधारी, शान्त धर्मज्ञ, वेदोंके पीढ़ियोंको पवित्र कर देता है। जो सत्यवादी, क्रोधजयी, पारगामी तथा साधु श्रोत्रिय ब्राह्मणको बुलाकर गङ्गाअहिंसा-धर्ममें स्थित, धर्मानुगामी, तत्त्वज्ञ तथा गौ और यमुनाके संगममें वह गौ उसे विधिपूर्वक दान कर दे। ब्राह्मणोंके हितमें तत्पर होकर गङ्गा-यमुनाके बीचमें नान साथ ही बहुमूल्य वस्त्र तथा नाना प्रकारके रन भी देने करता है, वह सारे पापोंसे छूट जाता है तथा मन-चीते चाहिये। इससे उस गौके शरीरमें जितने रोएँ होते हैं, समस्त भोगोंको पूर्णरूपसे प्राप्त कर लेता है।* उतने हजार वर्षांतक मनुष्य स्वर्गलोकमें प्रतिष्ठित होता
तत्पश्चात् सम्पूर्ण देवताओंसे रक्षित प्रयागमें जाकर है। वह उस पुण्यकर्मके प्रभावसे भयङ्कर नरकका दर्शन ब्रह्मचर्यका पालन करते हुए एक मासतक निवास करे नहीं करता। लाख गौओंकी अपेक्षा वहाँ एक ही दूध
और देवताओं तथा पितरोंका तर्पण करे। इससे मनुष्य देनेवाली गौ देना उत्तम है। वह एक ही पुत्र, स्त्री तथा मनोवाञ्छित पदार्थोको प्राप्त करता है। युधिष्ठिर! भृत्योंतकका उद्धार कर देती है। इसलिये सब दानोंमें प्रयागमें साक्षात् भगवान् महेश्वर सदा निवास करते हैं। गोदान ही सबसे बढ़कर है। महापातकके कारण वह परम पावन तीर्थ मनुष्योंके लिये दुर्लभ है। राजेन्द्र ! मिलनेवाले दुर्गम, विषम तथा भयङ्कर नरकमें गौ ही देवता, दानव, गन्धर्व, ऋषि, सिद्ध और चारण वहाँ मनुष्यकी रक्षा करती है। इसलिये ब्राह्मणको गोदान स्नान करके स्वर्गलोकमें जा सुख भोगते हैं। करना चाहिये।
प्रयागमे जानेवाला मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो कुरुश्रेष्ठ ! जो देवताओंके द्वारा सेवित प्रयागतीर्थमें जाता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। मनुष्य अपने बैल अथवा बैलगाड़ीपर चढ़कर जाता है, वह पुरुष देशमें हो या वनमें, विदेशमें हो या घरमें, जो प्रयागका गौओंका भयङ्कर क्रोध होनेपर घोर नरकमें निवास करता स्मरण करते हुए मृत्युको प्राप्त होता है, वह ब्रह्मलोकमें है तथा उसके पितर उसका दिया जलतक नहीं ग्रहण जाता है-यह श्रेष्ठ ऋषियोंका कथन है। जो मन, वाणी करते। जो ऐश्वर्यके लोभसे अथवा मोहवश सवारीसे तथा क्रियाद्वारा सत्यधर्ममें स्थित हो गङ्गा-यमुनाके तीर्थयात्रा करता है, उसके तीर्थसेवनका कोई फल नहीं
* योजनानां सहस्तेषु गङ्गा स्मरति यो नरः । अपि दुष्कृतकर्मासौं लभते परमां गतिम् ।। कीर्तनामुच्यते पापैदृष्टा भद्राणि पश्यति । अवगाह्य च पीत्वा च पुनात्यासतम कुलम्॥ सत्यवादी जितक्रोधो अहिंसा परमां स्थितः । धर्मानुसारी तत्त्वज्ञो गोब्राह्मणहिते रतः॥ गङ्गायमुनयोर्मध्ये स्नातो मुच्येत किल्बिषात् । मनसा चिन्तितान् कामान् सम्यक् प्राप्रोति पुष्कलान् ॥ (४१ । १४-१७)