________________
३९६
• अर्जयस्व एषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[ संक्षिप्त पद्मपुराण
दिया जाता है, उसका अक्षय फल माना गया है। जो करनेवाले पुरुषको पत्नी मिलती है। अभय-दान मनुष्य जिस देवताकी आराधना करना चाहे, उसके करनेवालेको ऐश्वर्य प्राप्त होता है। धान्य-दाताको सनातन उद्देश्यसे ब्राह्मणोंका ही यत्नपूर्वक पूजन करे, इससे वह सुख और ब्रह्म (वेद) दान करनेवालेको शाश्वत उस देवताको संतुष्ट कर लेता है। देवता सदा ब्राह्मणोंके ब्रह्मलोककी प्राप्ति होती है। शरीरका आश्रय लेकर ही रहते हैं। ब्राह्मणोंके न जो वेदविद्याविशिष्ट ब्राह्मणोंको अपनी शक्तिके मिलनेपर वे कहीं-कहीं प्रतिमा आदिमें भी पूजित होते अनुसार अनाज देता है, वह मृत्युके पश्चात् स्वर्गका सुख हैं। प्रतिमा आदिमें बहुत यत्न करनेपर अभीष्ट फलकी भोगता है। गौओंको अन्न देनेसे मनुष्य सब पापोंसे प्राप्ति होती है। अतः सदा विशेषतः द्विजोंमें ही छुटकारा पा जाता है; ईंधन दान करनेसे मनुष्यकी जठराग्नि देवताओंका पूजन करना उचित है।
दीप्त होती है। जो ब्राह्मणोंको फल, मूल, पीनेयोग्य पदार्थ ऐश्वर्य चाहनेवाला मनुष्य इन्द्रकी पूजा करे। और तरह-तरहके शाक-दान करता है, वह सदा आनन्दित ब्रह्मतेज और ज्ञान चाहनेवाला पुरुष ब्रह्माजीकी होता है। जो रोगीके रोगको शान्त करनेके लिये उसे आराधना करे। आरोग्यको अभिलाषा रखनेवाला पुरुष औषध, तेल और आहार प्रदान करता है, वह रोगहीन, सूर्यकी, धनकी कामनावाला मनुष्य अग्रिकी तथा सुखी और दीर्घायु होता है। जो छत्र और जूते दान करता कोंकी सिद्धि चाहनेवाला पुरुष गणेशजीका पूजन करे। है, वह नरकोंके अन्तर्गत असिपत्रवन, छूरेकी धारसे जो भग चाहता हो, वह चन्द्रमाकी, बल चाहनेवाला युक्त मार्ग तथा तीखे तापसे बच जाता है। संसारमें वायुकी तथा सम्पूर्ण संसार-बन्धनसे छूटनेकी अभिलाषा जो-जो वस्तु अत्यन्त प्रिय मानी गयी है तथा जो मनुष्यके रखनेवाला मनुष्य यत्नपूर्वक श्रीहरिकी आराधना करे। घरमें अपेक्षित है, उसीको यदि अक्षय बनानेकी इच्छा जो योग, मोक्ष तथा ईश्वरीय ज्ञान-तीनोंकी इच्छा हो तो गुणवान् ब्राह्मणको उसका दान करना चाहिये। रखता हो, वह यत्न करके देवताओंके स्वामी अयन-परिवर्तनके दिन, विषुव' नामक योग आनेपर, महादेवजीकी अर्चना करे । जो महान् भोग तथा विविध चन्द्रमा और सूर्यके ग्रहणमें तथा संक्रान्ति आदिके प्रकारके ज्ञान चाहते हैं, वे भोगी पुरुष श्रीभूतनाथ महेश्वर अवसरोंपर दिया हुआ दान अक्षय होता है। प्रयाग तथा भगवान् श्रीविष्णुकी भी पूजा करते हैं। जल आदि तीर्थों, पुण्य-मन्दिरों, नदियों तथा वनोंमें भी दान देनेवाले मनुष्यको तृप्ति होती है; अतः जलदानका महत्त्व करके मनुष्य अक्षय फलका भागी होता है। प्राणियोंके अधिक है। तेल दान करनेवालेको अनुकूल संतान और लिये इस संसारमें दानधर्मसे बढ़कर दूसरा कोई धर्म दीप देनेवालेको उत्तम नेत्रकी प्राप्ति होती है। भूमि-दान नहीं है। इसलिये द्विजातियोंको चाहिये कि वे श्रोत्रिय करनेवालोंको सब कुछ सुलभ होता है। सुवर्ण-दाताको ब्राह्मणको अवश्य दान दें। ऐश्वर्यकी इच्छा रखनेवाले दीर्घ आयु प्राप्त होती है। गृह-दान करनेवालेको श्रेष्ठ पुरुष स्वर्गकी प्राप्तिके लिये तथा मुमुक्षु पुरुष पापोंकी भवन और चाँदी दान करनेवालेको उत्तम रूप मिलता शान्तिके लिये प्रतिदिन ब्राह्मणोंको दान देते रहें। है। वस्त्र-दान करनेवाला चन्द्रमाके लोकमें जाता है। जो पापात्मा मानव गौ, ब्राह्मण, अग्नि और देवताके अश्व-दान करनेवालेको उत्तम सवारी मिलती है। अन्न- लिये दी जानेवाली वस्तुको मोहवश रोक देता है, उसे दाताको अभीष्ट सम्पत्ति और गोदान करनेवालेको पशु-पक्षियोंकी योनिमें जाना पड़ता है। जो द्रव्यका सूर्यलोककी प्राप्ति होती है। सवारी और शय्या-दान उपार्जन करके ब्राह्मणों और देवताओंका पूजन नहीं
१. तुला और मेघको संक्रान्तिको, जब कि दिन और रात बराबर होते हैं, 'विषुव' कहते है। + अयने विषुवे चैव ग्रहणे चन्द्रसूर्ययोः । संक्रान्त्यादिषु कालेषु दतं भवति चाक्षयम् । (५७ । ५३)