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पातालखण्ड]
. वैशाख मासमें स्नान, तर्पण और श्रीमाधव-पूजनकी विधि एवं महिमा .
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पापप्रशमनं स्तोत्रं यः पठेणुयानरः। पापराशिका प्रायश्चित्त है; इसलिये श्रेष्ठ मनुष्योंको पूर्ण शारीरैर्मानसैर्वाचा कृतैः पापैः प्रमुच्यते ॥ प्रयत्न करके इस स्तोत्रका पाठ करना चाहिये। मुक्तः पापप्रहादिभ्यो याति विष्णोः परं पदम् । राजन् ! इस स्तोत्रके श्रवणमात्रसे पूर्वजन्म तथा तस्मात्सर्वप्रयनेन स्तोत्रं सर्वाधनाशनम् ॥ इस जन्मके किये हुए पाप भी तत्काल नष्ट हो जाते हैं। प्रायश्चित्तमघौघानां पठितव्यं नरोत्तमैः । - यह स्तोत्र पापरूपी वृक्षके लिये कुठार और पापमय
यह 'पापप्रशमन' नामक स्तोत्र है। जो मनुष्य इसे ईंधनके लिये दावानल है। पापराशिरूपी अन्धकारपढ़ता और सुनता है, वह शरीर, मन और वाणीद्वारा समूहका नाश करनेके लिये यह स्तोत्र सूर्यके समान है। किये हुए पापोंसे मुक्त हो जाता है। इतना ही नहीं, वह मैंने सम्पूर्ण जगत्पर अनुग्रह करनेके लिये इसे तुम्हारे पापग्रह आदिके भयसे भी मुक्त होकर विष्णुके परम सामने प्रकाशित किया है। इसके पुण्यमय माहात्म्यका पदको प्राप्त होता है। यह स्तोत्र सब पापोंका नाशक तथा वर्णन करनेमें स्वयं श्रीहरि भी समर्थ नहीं है।
वैशाख मासमें स्नान, तर्पण और श्रीमाधव-पूजनकी विधि एवं महिमा
अम्बरीषने पूछा-मुने ! वैशाख मासके व्रतका इस प्रकार कहकर मौनभावसे उस तीर्थक किनारे क्या विधान है? इसमें किस तपस्याका अनुष्ठान करना अपने दोनों पैर धो ले; फिर भगवान् नारायणका स्मरण पड़ता है? क्या दान होता है? कैसे स्नान किया जाता करते हुए विधिपूर्वक स्नान करे। नानकी विधि इस प्रकार है और किस प्रकार भगवान् केशवको पूजा की जाती है-विद्वान् पुरुषको मूल-मन्त्र पढ़कर तीर्थकी कल्पना है? ब्रह्मर्षे ! आप श्रीहरिके प्रिय भक्त तथा सर्वज्ञ है; कर लेनी चाहिये। 'ॐ नमो नारायणाय' यह मन्त्र ही अतः कृपा करके मुझे ये सब बातें बताइये। मूल-मन्त्र कहा गया है। पहले हाथमें कुश लेकर
नारदजीने कहा-साधुश्रेष्ठ ! सुनो-वैशाख विधिपूर्वक आचमन करे तथा मन और इन्द्रियोंको संयममें मासमें जब सूर्य मेषराशिपर चले जाय तो किसी बड़ी रखते हुए बाहर-भीतरसे पवित्र रहे। फिर चार हाथका नदीमें, नदीरूप तीर्थमें, नदमें, सरोवरमें, झरनेमें, चौकोर मण्डल बनाकर उसमें निम्नाङ्कित मन्त्रोंद्वारा भगवती देवकुण्डमें, स्वतः प्राप्त हुए किसी भी जलाशयमे, श्रीगङ्गाजीका आवाहन करे। बावड़ीमें अथवा कुएँ आदिपर जाकर नियमपूर्वक विष्णुपादप्रसूतासि वैष्णवी विष्णुदेवता ।। भगवान् श्रीविष्णुका स्मरण करते हुए स्रान करना त्राहि नस्त्वेनसस्तस्मादाजन्ममरणान्तिकात् । चाहिये। स्रानके पहले निम्नाङ्कित श्लोकका उच्चारण तिस्रःकोट्योऽर्धकोटी व तीर्थानां वायुरब्रवीत् ।। करना चाहिये
दिवि भुष्यन्तरिक्षे च तानि ते सन्ति जाह्रवि । ___ यथा ते माधवो मासो वल्लभो मधुसूदन। नन्दिनीति च ते नाम देवेषु नलिनीति च ।। प्रातःस्रानेन मे तस्मिन् फलदः पापहा भव ।। दक्षा पृथ्वी वियना विश्वकाया शिवामृता।
(८९ । ११) विद्याधरी महादेवी तथा लोकप्रसादिनी ।। 'मधुसूदन ! माधव (वैशाख) मास आपको विशेष क्षेमकरी जाह्नवी च शान्ता शान्तिप्रदायिनी। प्रिय है, इसलिये इसमें प्रातःस्नान करनेसे आप शास्त्रोक्त
(८९ | १५-१९) फलके देनेवाले हों और मेरे पापोंका नाश कर दें।' 'गङ्गे ! तुम भगवान् श्रीविष्णुके चरणोंसे प्रकट हुई
* अध्याय ८८ श्लोक ७२ से ९१ तक।