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पातालखण्ड ]
• भगवान् श्रीकृष्णका ध्यान .
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मीठी-मीठी तोतली वाणी साफ समझमें नहीं आती। सम्प्रीणयन्तमुदिताभिरपि प्रभक्तया
भगवान्के प्रति दृढ़ अनुराग रखनेवाली सुन्दरी संविन्तयेन्नभसि मां इहिणप्रसूतम् ॥ गोपाङ्गनाएँ भी उन्हें प्रेमपूर्ण दृष्टिसे निहारती हुई तत्पश्चात् आकाशमें स्थित मुझ ब्रह्मपुत्र देवर्षि सब ओरसे घेरकर खड़ी है। गोपी, गोप और पशुओंके नारदका चिन्तन करना चाहिये । नारदजीके शरीरका वर्ण पेरेसे बाहर भगवान्के सामनेको ओर ब्रह्मा, शिव तथा शङ्ख, चन्द्रमा तथा कुन्दके समान गौर है; वे सम्पूर्ण इन्द्र आदि देवताओंका समुदाय खड़ा होकर स्तुति कर आगमोंके ज्ञाता है, उनकी जटाएं बिजलीकी पङ्क्तियोंके
समान पीली और चमकीली है, वे भगवानके चरणतद् दक्षिणतो मुनिनिकर दृढधर्मवाञ्छया समानायपरम्। कमलोंकी निर्मल भक्तिके इच्छुक हैं तथा अन्य सब योगीन्द्रानथ पृष्ठे मुमुक्षमाणान् समाधिना तु सनकाद्यान् ॥ ओरकी आसक्तियोंका सर्वथा परित्याग कर चुके हैं और
इसी प्रकार उपर्युक्त घेरेसे बाहर भगवान्के दक्षिण संगीतसम्बन्धी नाना प्रकारकी श्रुतियोंसे युक्त सात भागमें सुदृढ़ धर्मकी अभिलाषासे वेदाभ्यासपरायण स्वरों और त्रिविध ग्रामोंकी मनोहर मूर्च्छनाओंको मुनियोंका समुदाय उपस्थित है तथा पृष्ठभागकी ओर अभिव्यञ्जित करके अत्यन्त भक्ति के साथ भगवान्को समाधिके द्वारा मुक्तिकी इच्छा रखनेवाले सनकादि प्रसन्न कर रहे हैं।' योगीश्वर खड़े हैं।
इति ध्यात्वाऽऽत्मानं पटुविशदधीनन्दतनयं सव्ये सकान्तानथ यक्षसिद्धान्
नरो बौद्धाप्रभृतिभिरनिन्द्योपद्धतिभिः । गन्धर्वविद्याधरचारणांच
। यजेद् भूयो भक्त्या स्ववपुषि बहिष्क्ष विभवेसकिन्नरानप्सरसश्च - मुख्याः
रिति प्रोक्तं सर्व यदभिलषितं भूसुरवराः ॥. कामार्थिनीर्तनगीतवाद्यैः
॥ इस प्रकार प्रखर एवं निर्मल बुद्धिवाला पुरुष अपने वाम भागमें अपनी स्त्रियोसहित यक्ष, सिद्ध, आत्मस्वरूप भगवान् नन्दनन्दनका ध्यान करके मानसिक गन्धर्व, विद्याधर, चारण और किन्नर खड़े हैं। साथ ही अर्घ्य आदि उत्तम उपहारोंसे अपने शरीरके भीतर ही भगवत्प्रेमकी इच्छा रखनेवाली मुख्य-मुख्य अप्सराएँ भी भक्तिपूर्वक उनका पूजन करे तथा बाह्य उपचारोंसे भी मौजूद हैं। ये सब लोग नाचने, गाने तथा बजानेके द्वारा उनकी आराधना करे। ब्राह्मणो! आपलोगोकी जैसी भगवान्की सेवा कर रहे हैं।
अभिलाषा थी, उसके अनुसार भगवान्का यह सम्पूर्ण शोन्दुकुन्दधवलं सकलागमज़
ध्यान मैंने बता दिया। सौदामनीततिपिशङ्गजटाकलापम् । सूतजी कहते हैं-महर्षिगण ! जो इस कथाको तत्पादपङ्कजगताममला च भक्ति
सुनाता है, वह भगवान्के समान हो जाता है। विप्रो ! __वाञ्छन्तमुज्झिततरान्यसमस्तसङ्गम् ॥ यह गुह्यसे भी गुहा प्रसङ्ग कल्याणमय ज्ञान प्रदान नानाविधभुतिगणान्वितसप्तराग
करनेवाला है। जो इसे पढ़ता अथवा सुनता है, वह प्रामत्रयीगतमनोहरमूर्च्छनाभिः । परम-पदको प्राप्त होता है।
॥पातालखण्ड सम्पूर्ण ॥
* ये ध्यानसम्बन्धी श्लोक अध्याय ९९ से लिये गये हैं।