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• अर्चयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पद्मपुराण
जिस-जिस घर, गाँव अथवा वनमें तुलसीका वृक्ष कोटिगुना पुण्य प्राप्त होता है। जहाँ कहीं शालग्राममयी हो, वहाँ-वहाँ जगदीश्वर श्रीविष्णु प्रसत्रचित्त होकर मुद्रा हो, वहाँ काशीका सारा पुण्य प्राप्त हो जाता है। निवास करते हैं। उस घरमें दरिद्रता नहीं रहती और मनुष्य ब्रह्महत्या आदि जो कुछ पाप करता है, वह सब बन्धुओंसे वियोग नहीं होता। जहाँ तुलसी विराजमान शालग्रामशिलाकी पूजासे शीघ्र नष्ट हो जाता है। होती हैं, वहाँ दुःख, भय और रोग नहीं ठहरते । यो तो महादेवजी कहते है-नारद ! अब मैं वेदोंमें तुलसी सर्वत्र ही पवित्र होती है, किन्तु पुण्यक्षेत्रमें वे कही हुई प्रयागतीर्थकी महिमाका वर्णन करूँगा। जो अधिक पावन मानी गयी है। भगवान्के समीप पृथ्वी- मनुष्य पुण्य-कर्म करनेवाले हैं, वे ही प्रयागमें निवास तलपर तुलसीको लगानेसे सदा विष्णुपद (वैकुण्ठ- करते हैं। जहाँ गङ्गा, यमुना और सरस्वती-तीनों धाम) की प्राप्ति होती है। तुलसीद्वारा भक्तिपूर्वक पूजित नदियोंका संगम है, वही तीर्थप्रवर प्रयाग है, वह होनेपर शान्तिकारक भगवान् श्रीहरि भयंकर उत्पातों, देवताओंके लिये भी दुर्लभ है। इसके समान तीर्थ तीनों रोगों तथा अनेक दुर्निमित्तोंका भी नाश कर डालते हैं। लोकोंमें न कोई हुआ है न होगा। जैसे ग्रहोंमें सूर्य और जहाँ तुलसीकी सुगन्ध लेकर हवा चलती है, वहाँको नक्षत्रोंमें चन्द्रमा श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सब तीर्थोंमें प्रयाग दसों दिशाएँ और चारों प्रकारके जीव पवित्र हो जाते हैं। नामक तीर्थ उत्तम है। विद्वन् ! जो प्रातःकाल प्रयागमें मुनिश्रेष्ठ ! जिस गृहमें तुलसीके मूलकी मिट्टी मौजूद है, स्नान करता है, वह महान् पापसे मुक्त हो परमपदको प्राप्त वहाँ सम्पूर्ण देवता तथा कल्याणमय भगवान् श्रीहरि होता है। जो दरिद्रताको दूर करना चाहता हो, उसे सर्वदा स्थित रहते हैं। ब्रह्मन् ! तुलसी-वनको छाया प्रयागमें जाकर कुछ दान करना चाहिये। जो मनुष्य जहाँ-जहाँ जाती हो, वहाँ-वहाँ पितरोंकी तृप्तिके लिये प्रयागमें जाकर वहाँ सान करता है, वह धनवान् और तर्पण करना चाहिये।
दीर्घजीवी होता है। वहाँ जाकर मनुष्य अक्षयवटका नारद ! जहाँ तुलसीका समुदाय पड़ा हो, वहाँ दर्शन करता है, उसके दर्शनमात्रसे ब्रह्महत्याका पाप नष्ट किया हुआ पिण्डदान आदि पितरोंके लिये अक्षय होता होता है। उसे आदिवट कहा गया है। कल्पान्तमें भी है। तुलसीकी जड़में ब्रह्मा, मध्यभागमें भगवान् जनार्दन उसका दर्शन होता है। उसके पत्रपर भगवान् विष्णु शयन तथा मञ्जरीमें श्रीरुद्रदेवका निवास है; इसीसे वह पावन करते हैं; इसलिये वह अविनाशी माना गया है। मानी गयी है । विशेषतः शिवमन्दिरमै यदि तुलसीका वृक्ष विष्णुभक्त मनुष्य प्रयागमें अक्षयवटका पूजन करते है। लगाया जाय तो उससे जितने बीज तैयार होते हैं, उतने उस वृक्षमें सूत लपेटकर उसकी पूजा करनी चाहिये। ही युगोंतक मनुष्य स्वर्गलोकमें निवास करता है। जो वहाँ 'माधव' नामसे प्रसिद्ध भगवान् विष्णु नित्य पार्वण श्राद्धके अवसरपर, श्रावण मासमें तथा संक्रान्तिके विराजमान रहते हैं। उनका दर्शन अवश्य करना चाहिये। दिन तुलसीका पौधा लगाता है, उसके लिये वह अत्यन्त ऐसा करनेवाला पुरुष महापापोंसे छुटकारा पा जाता है। पुण्यदायिनी होती है। जो प्रतिदिन तुलसीदलसे देवता, ऋषि और मनुष्य-सभी वहाँ अपने-अपने भगवानकी पूजा करता है, वह यदि दरिद्र हो तो धनवान् योग्य स्थानका आश्रय लेकर नित्य निवास करते हैं। हो जाता है। तुलसीकी मूर्ति सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्रदान गोहत्यारा, चाण्डाल, दुष्ट, दृषितहृदय, बालघाती तथा करनेवाली होती है; वह श्रीकृष्णको कीर्ति प्रदान करतो अज्ञानी मनुष्य भी यदि वहाँ मृत्युको प्राप्त होता है तो है। जहाँ शालग्रामको शिला होती है, वहाँ श्रीहरिका चतुर्भुजरूप धारण करके सदा ही वैकुण्ठ-धाममें निवास सांनिध्य बना रहता है। वहाँ किया हुआ स्रान और दान करता है। जो मानव प्रयागमें माघ-सान करता है, उसे काशीसे सौगुना अधिक महत्त्वशाली है। शालग्रामकी प्राप्त होनेवाले पुण्यफलकी कोई गणना नहीं है। भगवान् पूजासे कुरुक्षेत्र, प्रयाग तथा नैमिषारण्यकी अपेक्षा नारायण प्रयागमें स्नान करनेवाले पुरुषोंको भोग और