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पातालखण्ड ]. वैशाख-माझम्यके प्रसङ्गमें राजा महीरथकी कथा और यम-ब्राह्मण-संवादका उपसंहार •
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हरिभक्त पुरुष अतिपापोंके समूहसे छुटकारा पाकर समझना चाहिये। वीर । वैशाख मासकी पूर्णिमाको विष्णुपदको प्राप्त होता है।*...
तीर्थमें जाकर जो तुमने सय पापोंका नाश करनेवाला यमराज कहते है-ब्रह्मन् ! तब दयासागर नान-दान आदि पुण्य किया है, उसे विधिवत् भगवान राजाने उन जीवोंके शोकसे पीड़ित हो भगवान् श्रीहरिको साक्षी बनाकर तीन बार प्रतिज्ञा करके इन श्रीविष्णुके दूतोसे विनयपूर्वक कहा-'साधु पुरुष प्राप्त पापियोंके लिये दान कर दो, जिससे ये नरकसे हुए ऐश्वर्यका, गुणोंका तथा पुण्यका यही फल मानते हैं निकलकर स्वर्गको चले जायें। हमारा तो ऐसा विश्वास कि इनके द्वारा कष्टमें पड़े हुए जीवोंकी रक्षा की जाय। है कि पीड़ित जन्तुओंको शान्ति प्रदान करनेसे जो यदि मेरा कुछ पुण्य है तो उसीके प्रभावसे ये नरकमें पड़े आनन्द मिलता है, उसे मनुष्य स्वर्ग और मोक्षमें भी नहीं हुए जीव निष्पाप होकर स्वर्गको चले जायें और मैं इनकी पा सकता। सौम्य ! तुम्हारी बुद्धि दया एवं दानमें दृढ़ है, जगह नरकमें निवास करूंगा।' राजाके ऐसे वचन इसे देखकर हमलोगोको भी उत्साह होता है। राजन् ! सुनकर श्रीविष्णुके मनोहर दूत उनके सत्य और यदि तुम्हें अच्छा जान पड़े तो अब बिना विलम्ब किये उदारतापर विचार करते हुए इस प्रकार बोले- इन्हें वह पुण्य प्रदान करो, जो नरकयातनाके दुःखको 'राजन् ! इस दयारूप धर्मक अनुष्ठानसे तुम्हारे संचित दग्ध करनेवाला है।' धर्मकी विशेष वृद्धि हुई है। तुमने वैशाख मासमें जो विष्णुदूतोंके यो कहनेपर दयालु राजा महीरथने नान, दान, जप, होम, तप तथा देवपूजन आदि कर्म भगवान् गदाधरको साक्षी बनाकर तीन बार प्रतिज्ञापूर्वक किये हैं, वे अक्षय फल देनेवाले हो गये। जो वैशाख संकल्प करके उन पापियोंके लिये अपना पुण्य अर्पण मासमें स्नान-दान करके भगवान्का पूजन करता है, वह किया। वैशाख मासके एक दिनके ही पुण्यका दान सब कामनाओंको प्राप्त होकर श्रीविष्णुधामको जाता है। करनेपर वे सभी जीव यम-यातनाके दुःखसे मुक्त हो एक ओर तप, दान और यज्ञ आदिकी शुभ क्रियाएँ और गये। फिर अत्यन्त हर्षमें भरकर वे श्रेष्ठ विमानपर एक ओर विधिपूर्वक आचरणमें लाया हुआ वैशाख आरूढ़ हुए और राजाको प्रशंसा करते हुए उन्हें प्रणाम मासका व्रत हो तो यह वैशाख मास ही महान् है। करके स्वर्गको चले गये। इस दानसे राजाको विशेष राजन् ! वैशाख मासके एक दिनका भी जो पुण्य है, वह पुण्यकी प्राप्ति हुई। मुनियों और देवताओंका समुदाय तुम्हारे लिये सब दानोंसे बढ़कर है। दयाके समान धर्म, उनकी स्तुति करने लगा तथा वे जगदीश्वर श्रीविष्णुके दयाके समान तप, दयाके समान दान और दयाके समान पार्षदोंद्वारा अभिवन्दित होकर उस परमपदको प्राप्त हुए. कोई मित्र नहीं है। पुण्यका दान करनेवाला मनुष्य सदा जो बड़े-बड़े योगियोंके लिये भी दुर्लभ है। लाखगुना पुण्य प्राप्त करता है। विशेषतः तुम्हारी दयाके द्विजश्रेष्ठ ! यह वैशाख मास और पूर्णिमाका कुछ कारण धर्मकी अधिक वृद्धि हुई है। जो मनुष्य दुःखित माहात्म्य यहाँ थोड़ेमें बतलाया गया। यह धन, यश, प्राणियोंका दुःखसे उद्धार करता है, वही संसारमें आयु तथा परम कल्याण प्रदान करनेवाला है। इतना ही पुण्यात्मा है। उसे भगवान् नारायणके अंशसे उत्पन्न नहीं, इससे स्वर्ग तथा लक्ष्मीकी भी प्राप्ति होती है। यह
• भक्त्या सम्पूजितो विष्णुर्विश्वेशो मधुसूदनः । महापापातिपापौघनिहन्ता मधुसूदनः ॥
सर्वेकसारेण पुनस्तेनैकेन नरेश्वर । जीयसे विष्णभवन पूज्यमानो मरुदणः ।। यथैव विस्फुलिङ्गेन ज्वाल्यते तृणसमयः । प्रातःस्मानेन वैशाखे तथायौयो नरेश्वर ॥ वैशाखे मासि यो युक्तो यथोक्तनियमैर्नरः । हरिभक्तोऽतिपापौधैर्मुक्तोऽच्युतपद व्रजेत् ।।
(९७१४६, ४७, ४८, ५०) 17 दयासदृशो धमों न दयासदृश तपः । न दयासदृशं दानं न दयासदृशः सखा ।। (९८।१५)