________________ पातालखण्ड] . शत्रुघ्न और पुष्कल आदिका घोड़ेके साथ जाना तथा राजा सुमदकी कथा . 435 पास जाता हूँ। आप देवताओंकी रक्षा कीजिये। है। मैं भक्ति-भावसे जिनकी आराधनामें लगा हूँ, वे मेरी ऐसा कहकर कामदेव अपने सखा वसन्त तथा स्वामिनी जगदम्बा मुझे उत्तम वरदान देंगी। जिनकी अप्सराओंके समूहको साथ लेकर हेमकूट पर्वतपर गया। कृपासे सत्यलोकको पाकर ब्रह्माजी महान् बने हैं, वे ही वसन्तने जाते ही वहाँकै सारे वृक्षोंको फल और फूलोंसे मुझे सब कुछ देंगी; क्योंकि वे भक्तोंका दुःख दूर सुशोभित कर दिया। उनकी डालियोंपर कोयल कूकने करनेवाली हैं। भगवतीकी कृपाके सामने नन्दन-वन तथा भ्रमर गुंजार करने लगे। दक्षिण दिशाकी ओरसे अथवा सुवर्णमण्डित मेरुगिरि क्या है ? और वह सुधा ठंडी-ठंडी हवा चलने लगी। जिसमें कृतमाला नदीके भी किस गिनतीमें है, जो थोड़े-से पुण्यके द्वारा प्राप्त तीरपर खिले हुए लवङ्ग-कुसुमोंकी सुगन्ध आ रही थी। होनेवाली और दानवोंको दुःखमें डालनेवाली है?' इस प्रकार जब समूचे वनमें वसन्तकी शोभा छा गयी, तो राजाका यह वचन सुनकर कामदेवने उनपर अनेकों अप्सराओंमें श्रेष्ठ रम्भा अपनी सखियोंसे घिरकर सुमदके बाणोंका प्रहार किया; किन्तु वह उनकी कुछ भी हानि न पास गयी। रम्भाका स्वर किन्नरोंके समान मनोहर था। कर सका। वे सुन्दरी अप्सराएँ अपने कुटिल-कटाक्ष, वह मृदङ्ग और पणव आदि नाना प्रकारके बाजे बजानेमें नूपुरोंकी झनकार, आलिङ्गन तथा चितवन आदिके द्वारा भी निपुण थी। राजाके समीप पहुँचकर उसने गाना उनके मनको मोहमें न डाल सकी। अन्तमें निराश होकर आरम्भ कर दिया। महाराज सुमदने जब वह मधुर गान जैसे आयी थीं, वैसे ही लौट गयीं और इन्द्रसे सुना, वसन्तकी मनोहारिणी छटा देखी तथा मनको बोलीं-'राजा सुमदको बुद्धि स्थिर है, उनपर हमारा लुभानेवाली कोयलकी मीठी तान सुनी तो चारों ओर दृष्टि जादू नहीं चल सकता।' अपने प्रयत्नके व्यर्थ होनेकी दौड़ायी, फिर सारा रहस्य उनकी समझमें आ गया। बात सुनकर इन्द्र डर गये। इधर जगदम्बाने महाराज राजाको ध्यानसे जगा देख फूलोंका धनुष धारण सुमदको जितेन्द्रिय तथा अपने चरण-कमलोंके ध्यानमें करनेवाले कामदेवने बड़ी फुती दिखायी। उसने उनके दृढ़तापूर्वक स्थित देख उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया। उनकी पीछेकी ओर खड़ा होकर तत्काल अपना धनुष चढ़ा लिया। इतनेहीमें एक अप्सरा अपने नेत्रपल्लवोंको नचाती हुई राजाके दोनों चरण दबाने लगी। दूसरी सामने खड़ी होकर कटाक्ष-पात करने लगी तथा तीसरी शरीरकी शृङ्गार-जनित चेष्टाएँ (तरह-तरहके हाव-भाव) प्रदर्शित करने लगी। इस प्रकार अप्सराओंसे घिरकर जितेन्द्रियोंके शिरोमणि बुद्धिमान् राजा सुमद यों चिन्ता करने लगे-'ये सुन्दरी अप्सराएँ मेरी तपस्यामें विघ्न डालनेके लिये यहाँ आयी हैं। इन्हें इन्द्रने भेजा है। ये सब-की-सब उनकी आज्ञाके अनुसार ही कार्य करेंगी।' इस प्रकार चिन्तासे आकुल होकर धीरचित्त, मेधावी तथा वीर राजा सुमदने अपने हृदयमें अच्छी तरह विचार किया। इसके बाद वे देवाङ्गनाओंसे बोले'देवियो! आपलोग मेरे हृदय-मन्दिरमें विराजमान जगदम्बाकी स्वरूप है। आपलोगोंने जिस स्वर्गीय सुखकी चर्चा की है, वह अत्यन्त तुच्छ और अनिश्चित संप पु० 15