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. अर्चयस हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् ।
[संक्षिप्त पद्मपुराण
माता-पिता कौन हैं? तुम बड़े सौभाग्यशाली हो; क्योंकि बाणोंद्वारा ही प्रहार करने लगे। किसीने प्रास, किसीने इस युद्धमें तुमने विजय पायी है। महाबली वीर ! कुन्त और किसीने फरसोंसे ही काम लिया। सारांश यह तुम्हारा लोक-प्रसिद्ध नाम क्या है? मैं जानना चाहता कि राजालोग सब ओरसे लवपर प्रहार करने लगे। हूँ।' शत्रुघ्नके इस प्रकार पूछनेपर वीर बालक लवने उत्तर वीरशिरोमणि लवने देखा कि ये क्षत्रिय अधर्मपूर्वक युद्ध दिया-'वीरवर ! मेरे नामसे, पितासे, कुलसे तथा करनेको तैयार हैं तो उन्होंने दस-दस बाणोसे सबको अवस्थासे तुम्हें क्या काम है? यदि तुम स्वयं बलवान् घायल कर दिया। लवकी वाणवर्षासे आहत होकर हो तो समरमें मेरे साथ युद्ध करो, यदि शक्ति हो तो कितने ही क्रोधी राजा रणभूमिसे पलायन कर गये और बलपूर्वक अपना घोड़ा छुड़ा ले जाओ। ऐसा कहकर कितने ही युद्धक्षेत्रमें ही मूर्च्छित होकर गिर पड़े। उस उदट वीरने अनेकों बाणोंका सन्धान करके शत्रुघ्रकी इतनेहीमें राजा शत्रुघ्रकी मूर्छा दूर हुई और वे महावीर छाती, मस्तक और भुजाओंपर प्रहार किया। तब राजा लवसे बलपूर्वक युद्ध करनेके लिये आगे बढ़े तथा शत्रुघ्रने भी अत्यन्त कोपमें भरकर अपना धनुष चढ़ाया सामने आकर बोले-'वीर ! तुम धन्य हो ! देखने में ही
और बालकको त्रास-सा देते हुए मेघके समान गम्भीर बालक-जैसे जान पड़ते हो, [वास्तवमें तुम्हारी वीरता वाणीमें टङ्कार की । बलवानोंमें श्रेष्ठ तो वे थे ही, असंख्य अद्भुत है !] अब मेरा पराक्रम देखो; मैं अभी तुम्हें बाणोंकी वर्षा करने लगे। परन्तु बालक लवने उनके युद्धमें गिराता हूँ। ऐसा कहकर शत्रुघ्नने एक बाण सभी सायकोंको बलपूर्वक काट दिया । तत्पश्चात् लवके हाथमें लिया, जिसके द्वारा लवणासुरका वध हुआ था छोड़े हुए करोड़ों बाणोंसे वहाँकी सारी पृथ्वी आच्छादित तथा जो यमराजके मुखकी भाँति भयङ्कर था। उस तीखे हो गयी।
बाणको धनुषपर चढ़ाकर शत्रुघ्नने लवकी छातीको इतने बाणोंका प्रहार देखकर शत्रुघ्न दंग रह गये। विदीर्ण करनेका विचार किया। वह बाण धनुषसे छुटते फिर उन्होंने लवके लाखों बाणोंको काट गिराया । अपने ही दसों दिशाओंको प्रकाशित करता हुआ प्रज्वलित हो समस्त सायकोंको कटा देख कुशके छोटे भाई लवने उठा। उसे देखकर लवको अपने बलिष्ठ भ्राता कुशकी राजा शत्रुनके धनुषको वेगपूर्वक काट डाला। वे दूसरा याद आयो, जो वैरियोंको मार गिरानेवाले थे। वे सोचने धनुष लेकर ज्यों ही वाण छोड़नेको उद्यत होते हैं, त्यों लगे, यदि इस समय मेरे बलवान् भाई वीरवर कुश होते ही लवने तीक्ष्ण सायकोंसे उनके रथको भी खण्डित कर तो मुझे शत्रुनके अधीन न होना पड़ता तथा मुझपर यह दिया। रथ, घोड़े, सारथि और धनुषके कट जानेपर वे दारुण भय न आता। इस प्रकार विचारते हुए महात्मा दूसरे रथपर सवार हुए और बलपूर्वक लवका सामना लवको छातीमें वह महान् बाण आ लगा। जो करनेके लिये चले। उस समय शत्रुघ्नने अत्यन्त कोपमें कालाग्निके समान भयङ्कर था। उसकी चोट खाकर वीर भरकर लवके ऊपर दस तीखे बाण छोड़े, जो प्राणोंका लव मूर्च्छित हो गये। संहार करनेवाले थे। परन्तु लवने तीखी गाँठवाले बलवान् वैरियोंको विदीर्ण करनेवाले लवको बाणोंसे उनके टुकड़े-टुकड़े करके एक अर्धचन्द्राकार मूर्छित देख महावली शत्रुघ्ने युद्धमें विजय प्राप्त की। बाणसे शत्रुघ्रकी छाती प्रहार किया, उससे उनकी वे शिरस्त्राण आदिसे अलङ्कत बालक लवको, जो छातीमें गहरी चोट पहुँची और उन्हें बड़ी भयङ्कर पीड़ा स्वरूपसे श्रीरामचन्द्रजीकी समानता करता था, रथपर हुई। वे हाथमें धनुष लिये ही रथको बैठकमें गिर पड़े। बिठाकर वहाँसे जानेका विचार करने लगे। अपने
शत्रुघ्रको मूर्च्छित देख सुरथ आदि राजा युद्धमें मित्रको शत्रुके चंगुलमे फँसा देख आश्रमवासी विजय प्राप्तिके लिये उद्यत हो लवपर टूट पड़े। किसीने ब्राह्मण-बालकोंको बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने तुरंत जाकर क्षुरप्र और मुशल चलाये तो कोई अत्यन्त भयानक लवकी माता सीतासे सब समाचार कह सुनाया-'मा