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• अवस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
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लगा हुआ था। मुनिश्रेष्ठ नारदके पधारनेपर साधु राजा किस प्रकार कर सकते है ? नारदजी! आप वैष्णव है, अम्बरीषने उनका सत्कार किया और प्रसन्नचित्त होकर भगवानके प्रिय भक्त है, परमार्थतत्त्वके ज्ञाता तथा श्रद्धाके साथ आपलोगोंकी ही भाँति प्रश्न किया- ब्रह्मवेताओमे श्रेष्ठ है; इसलिये मैं आपसे ही यह बात 'मुने ! वेदोंके वक्ता विद्वान् पुरुष जिन्हें परम ब्रह्म कहते पूछता हूँ। भगवान् श्रीकृष्णके विषयमें किया हुआ प्रश्न है, वे स्वयं भगवान् कमलनयन नारायण ही हैं। जो वक्ता, श्रोता और प्रश्रकर्ता-इन तीनों पुरुषोको पवित्र सबसे परे हैं, जिनकी कोई मूर्ति न होनेपर भी जो करता है; ठीक उसी तरह, जैसे उनके चरणोका जल मूर्तिमान् स्वरूप धारण करते हैं, जो सबके ईश्वर, व्यक्त श्रीगङ्गाजीके रूपमें प्रवाहित होकर तीनों लोकोंको पावन
और अव्यक्तस्वरूप है, सनातन हैं, समस्त भूत जिनके बनाता है। देहधारियोंका यह देह क्षणभङ्गर है, इसमें स्वरूप है, जिनका चित्तद्वारा चिन्तन नहीं किया जा मनुष्य-शरीरका मिलना बड़ा दुर्लभ है, उसमें भी सकता, ऐसे भगवान् श्रीहरिका ध्यान किस प्रकार हो भगवान्के प्रेमी भक्तोंका दर्शन तो मैं और भी दुर्लभ सकता है ? जिनमें यह सारा विश्व ओतप्रोत है, जो समझता हूँ। इस संसारमें यदि क्षणभरके लिये भी अव्यक्त, एक, पर (उत्कृष्ट) और परमात्माके नामसे सत्सङ्ग मिल जाय तो वह मनुष्योंके लिये निधिका काम प्रसिद्ध हैं, जिनसे इस जगत्का जन्म, पालन और संहार देता है; क्योंकि उससे चारों पुरुषार्थ प्राप्त हो जाते हैं। होता है, जिन्होंने ब्रह्माजीको उत्पन्न करके उन्हें अपने ही भगवन् ! आपकी यात्रा सम्पूर्ण प्राणियोंका मङ्गल भीतर स्थित वेदोंका ज्ञान दिया, जो समस्त पुरुषार्थीको करनेके लिये होती है। जैसे माता-पिताका प्रत्येक देनेवाले हैं, योगीजनोंको भी जिनके तत्त्वका बड़ी विधान बालकोंके हितके लिये ही होता है, उसी प्रकार कठिनाईसे बोध होता है, उनकी आराधना कैसे की जा भगवान्के पथपर चलनेवाले संत-महात्माओंकी हर सकती है? कृपया यह बात बताइये। जिसने एक क्रिया जगत्के जीवोका कल्याण करनेके लिये ही श्रीगोविन्दकी आराधना नहीं की, वह निर्भय पदको नहीं होती है। देवताओका चरित्र प्राणियोंके लिये कभी 'प्राप्त कर सकता। इतना ही नहीं, उसे तप, यज्ञ और दुःखका कारण होता है और कभी सुखका; किन्तु दानका भी उत्तम फल नहीं मिलता । जिसने श्रीगोविन्दके आप-जैसे भगवत्परायण साधुपुरुषोंका प्रत्येक कार्य चरणारविन्दोका रसास्वादन नहीं किया, उसे मनोवाञ्छित जीवोंके सुखका ही साधक होता है। जो देवताओंकी फलकी प्राप्ति कैसे हो सकती है ? भगवान्की आराधना जैसी सेवा करते हैं, देवता भी उन्हें उसी प्रकार सुख समस्त पापोंको दूर करनेवाली है, उसे छोड़कर मैं पहुँचानेकी चेष्टा करते हैं। जैसे छाया सदा शरीरके साथ मनुष्योंके लिये दूसरा कोई प्रायश्चित्त नहीं देखता।* ही रहती है, उसी प्रकार देवता भी कोंक साथ रहते जिनके भ्रूभङ्ग मात्रसे समस्त सिद्धियोकी प्राप्ति सुनी जाती हैं-जैसा कर्म होता है, वैसी ही सहायता उनसे प्राप्त है, उन शहारी केशवकी आराधना कैसे होती है? होती है, किन्तु साधु पुरुष स्वभावसे ही दीनोपर दया स्त्रियाँ भी किस प्रकारसे उनकी उपासना कर सकती हैं? करनेवाले होते हैं। इसलिये भगवन् ! मुझे वैष्णवये सब बातें संसारकी भलाईके लिये आप मुझे बताइये। धोका उपदेश कीजिये, जिससे वेदोंके स्वाध्यायका भगवान् भक्तिके प्रेमी हैं। सब लोग उनकी आराधना फल प्राप्त होता है।
• अनाराधितगोविन्दो न विन्दति यतोऽभयम्।न तपोयज्ञदानानां लभते फलमुत्तमम्॥
अनास्वादितगोविन्दपादाम्बुजरसो नरः । मनोरथकथानीतं कथमाकलयेत्फलम्॥ हरेराराधनं हित्वा दुरितीघनिवारणम्। नान्यत्पश्यामि जन्तूनां प्रायश्चित्तं परं मुने । (४।१५-१७) +श्रोतारमथ वक्तारं प्रष्ट्रारं पुरुष हरेः । प्रश्नः पुनाति कृष्णस्य तदधिसलिल यथा ॥ दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभङ्गुरः । तत्रापि दुर्लभं मन्ये वैकुण्ठप्रियदर्शनम् ॥