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• अयस्व हबीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पापुराण
कन्या होनेके कारण गङ्गाको 'जाह्नवी' कहते हैं। इस हुए मनुष्यके लिये माधव ही जहाजका काम देते हैं। तिथिको लान करके जो आकाशकी मेखलाभूत गङ्गा- माधव मासमें जो भक्तिपूर्वक दान, जप, हवन और स्नान देवीका उत्तम विधानके साथ पूजन करता है, वह मनुष्य आदि शुभकर्म किये जाते हैं, उनका पुण्य अक्षय तथा धन्य एवं पुण्यात्मा है। जो वैशाख शुक्ला सप्तमीको सौ करोड़गुना अधिक होता है। जिस प्रकार देवताओंमें विधिपूर्वक गङ्गामें देवताओं और पितरोंका तर्पण करता विश्वात्मा भगवान् नारायणदेव श्रेष्ठ हैं, जैसे जप करने है, उसे गङ्गादेवी कृपा-दृष्टि से देखती है तथा वह स्रानके योग्य मन्त्रोंमें गायत्री सबसे उत्कृष्ट है, उसी प्रकार पश्चात् सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। वैशाखके समान नदियोंमें गङ्गाजीका स्थान सबसे ऊंचा है। जैसे सम्पूर्ण कोई मास नहीं है तथा गङ्गाके सदृश दूसरी कोई नदी स्त्रियोंमें पार्वती, तपनेवालोंमें सूर्य, लाभोंमें आरोग्यलाभ, नहीं है। इन दोनोंका संयोग दुर्लभ है। भगवान्की मनुष्योंमें ब्राह्मण, पुण्योंमें परोपकार, विद्याओंमें वेद, भक्तिसे ही ऐसा सुयोग प्राप्त होता है। गङ्गाजीका मन्त्रोंमें प्रणव, ध्यानों में आत्मचिन्तन, तपस्याओंमें सत्य प्रादुर्भाव भगवान् श्रीविष्णुके चरणोंसे हुआ है। वे और स्वधर्म-पालन, शुद्धियोंमें आत्मशुद्धि, दानोंमें ब्रह्मलोकसे आकर भगवान् शङ्करके जटा-जूटमें निवास अभयदान तथा गुणोंमें लोभका त्याग ही सबसे प्रधान करती हैं। गङ्गा समस्त दुःखोंका नाश करनेवाली हैं। वे माना गया है, उसी प्रकार सब मासोंमें वैशाख मास अपने तीन स्रोतोंसे निरन्तर प्रवाहित होकर तीनों अत्यन्त श्रेष्ठ है। पापोंका अन्त वैशाख मासमें प्रातःस्नान लोकोंको पवित्र करती रहती हैं। उन्हें स्वर्गपर चढ़नेके करनेसे होता है। अन्धकारका अन्त सूर्यके उदयसे तथा लिये सीढ़ी माना गया है। वे सदा आनन्द देनेवाली, पुण्योंका अन्त दूसरोंकी बुराई और चुगली करनेसे होता नाना प्रकारके पापोको हरनेवाली, संकटसे तारनेवाली, है। राजन् ! कार्तिक मासमें जब सूर्य तुलाराशिपर स्थित भक्तजनोंके अन्तःकरणमें दिव्य प्रकाश फैलानेकी हों, उस समय जो नान-दान आदि पुण्यकार्य किया लीलासे सुशोभित होनेवाली, सगरके पुत्रोंको मोक्ष प्रदान जाता है, उसका पुण्य परार्धगुना अधिक होता है। माध करनेवाली, धर्म-मार्गमें लगानेवाली तथा तीन मार्गोसे मासमें जब पकरराशिपर सूर्य हो तो कार्तिककी अपेक्षा प्रवाहित होनेवाली हैं। गङ्गादेवी तीनों लोकोंका शृङ्गार भी हजारगुना उत्तम फल होता है और वैशाख मासमें हैं। वे अपने दर्शन, स्पर्श, नान, कीर्तन, ध्यान और मेषको संक्रान्ति होनेपर माघसे भी सौगुना अधिक पुण्य सेवनसे हजारों पवित्र तथा अपवित्र पुरुषोंको पावन होता है। वे ही मनुष्य पुण्यात्मा और धन्य है, जो वैशाख बनाती रहती हैं। जो लोग दूर रहकर भी तीनों समय मासमें प्रातःकाल खान करके विधि-विधानसे भगवान् 'गङ्गा, गङ्गा, गङ्गा' इस प्रकार उचारण करते हैं, उनके लक्ष्मीपतिकी पूजा करते हैं। वैशाख मासमें सवेरेका तीन जन्मोंका पाप गङ्गाजी नष्ट कर देती हैं। जो मनुष्य सान, यज्ञ, दान, उपवास, हविष्य-भक्षण तथा हजार योजन दूरसे भी गङ्गाका स्मरण करता है, वह पापी ब्रह्मचर्यका पालन-ये महान् पातकोंका नाश करनेवाले होनेपर भी उत्तम गतिको प्राप्त होता है।
हैं। राजन् ! कलियुगमें वैशाखकी महिमा गुप्त नहीं रहने * 'राजन् ! वैशाख शुक्ला सप्तमीको गङ्गाजीका दर्शन पायगी; क्योंकि उस समय वैशाखस्रानका माहात्म्य विशेष दुर्लभ है। भगवान् श्रीविष्णु और ब्राह्मणोंकी अश्वमेध-यज्ञके अनुष्ठानसे भी बढ़कर है। कलियुगमें कपासे ही उस दिन उनकी प्राप्ति होती है। माधव परमपावन अश्वमेध-यज्ञका अनुष्ठान नहीं हो सकता। (वैशाख) के समान महीना और माधव (विष्णु) के उस समय वैशाख मासका स्रान ही अश्वमेध-यज्ञके समान कोई देवता नहीं है; क्योंकि पापके समुद्र में डूबते समान विहित है। कलियुगके अधिकांश मनुष्य पापी
१. संख्याको पराकाष्टाका नाम 'पराध है। आधुनिक गणनाके अनुसार यह संख्या 'शर' या 'महार' कहलाती है।