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पातालखण्ड]
.वैशाख-माहात्म्य.
होंगे। उनकी बुद्धि पापमें ही आसक्त होगी; अतः वे पापोंके कारण नरकमें पड़ेंगे। अतएव कलियुगके लिये अश्वमेधके पुण्यको, जो स्वर्ग और मोक्षरूप फल प्रदान अश्वमेधका प्रचार कम कर दिया गया [और उसके करनेवाला है, नहीं जान सकेंगे। उस समयके लोग अपने स्थानपर वैशाख मासके स्नानका विधान किया गया ।
वैशाख-माहात्म्य
सूतजी कहते है-महात्मा नारदके ये वचन धर्माचरणके अभिलाषी बन जाते हैं। वैशाख मासके जो सुनकर राजर्षि अम्बरीषने विस्मित होकर कहा- एकादशीसे लेकर पूर्णिमातक अन्तिम पाँच दिन हैं, वे 'महामुने! आप मार्गशीर्ष (अगहन) आदि पवित्र समूचे महीनेके समान महत्त्व रखते हैं। राजेन्द्र ! जिन महीनोंको छोड़कर वैशाख मासकी ही इतनी प्रशंसा क्यों लोगोंने वैशाख मासमें भाँति-भांतिके उपचारों द्वारा मधु करते है ? उसीको सब मासोंमें श्रेष्ठ क्यों बतलाते हैं? दैत्यके मारनेवाले भगवान् लक्ष्मीपतिका पूजन कर यदि माधव मास सबसे श्रेष्ठ और भगवान् लक्ष्मीपतिको लिया, उन्होंने अपने जन्यका फल पा लिया। भला, अधिक प्रिय है तो उस समय स्रान करनेकी क्या विधि कौन-सी ऐसी अत्यन्त दुर्लभ वस्तु है जो वैशाखके स्नान है? वैशाख मासमें किस वस्तुका दान, कौन-सी तपस्या तथा विधिपूर्वक भगवानके पूजनसे नहीं प्राप्त होती। तथा किस देवताका पूजन करना चाहिये? कृपानिधे! जिन्होंने दान, होम, जप, तीर्थमें प्राणत्याग तथा सम्पूर्ण उस समय किये जानेवाले पुण्यकर्मका आप मुझे उपदेश पापोंका नाश करनेवाले भगवान् श्रीनारायणका ध्यान कीजिये । सद्गुरुके मुखसे उपदेशकी प्राप्ति दुर्लभ होती नहीं किया, उन मनुष्योंका जन्म इस संसारमें व्यर्थ हो है। उत्तम देश और कालका मिलना भी बड़ा कठिन समझना चाहिये । जो धनके रहते हुए भी कंजूसी करता होता है। राज्य-प्राप्ति आदि दूसरे कोई भी भाव हमारे है, दान आदि किये बिना ही मर जाता है, उसका धन हृदयको इतनी शीतलता नहीं प्रदान करते, जितनी कि व्यर्थ है। आपका यह समागम।
राजन् ! उत्तम कुलमें जन्म, अच्छी मृत्यु, श्रेष्ठ नारदजीने कहा-राजन् ! सुनो, मैं संसारके भोग, सुख, सदा दान करने में अधिक प्रसन्नता, उदारता हितके लिये तुमसे माधव मासकी विधिका वर्णन करता तथा उत्तम धैर्य-ये सब कुछ भगवान् श्रीविष्णुकी हूँ। जैसा कि पूर्वकालमें ब्रह्माजीने बतलाया था। पहले कृपासे ही प्राप्त होते हैं। महात्मा नारायणके अनुग्रहसे ही तो जीवका भारतवर्षमें जन्म होना ही दुर्लभ है, उससे भी मनोवाञ्छित सिद्धियाँ मिलती है। जो कार्तिकमें, माघमें अधिक दुर्लभ है-वहाँ मनुष्यकी योनिमें जन्म । मनुष्य तथा माधवको प्रिय लगनेवाले वैशाख मासमें स्नान होनेपर भी अपने-अपने धर्मके पालनमें प्रवृत्ति होनी तो करके मधुहन्ता लक्ष्मीपति दामोदरकी विशेष विधिके
और भी कठिन है। उससे भी अत्यन्त दुर्लभ है- साथ भक्तिपूर्वक पूजा करता है और अपनी शक्तिके भगवान् वासुदेवमें भक्ति और उसके होनेपर भी माधव अनुसार दान देता है, वह मनुष्य इस लोकका सुख मासमें स्नान आदिका सुयोग मिलना तो और भी कठिन भोगकर अन्तमें श्रीहरिके पदको प्राप्त होता है। भूप ! है। माधव मास माधव (लक्ष्मीपति) को वहुत प्रिय है। जैसे सूर्योदय होनेपर अन्धकार नष्ट हो जाता है, उसी माधव (वैशाख) मासको पाकर जो विधिपूर्वक स्नान, प्रकार वैशाख मासमें प्रातःस्रान करनेसे अनेक जन्मोंकी दान तथा जप आदिका अनुष्ठान करते हैं, वे ही मनुष्य उपार्जित पापराशि नष्ट हो जाती है। यह बात ब्रह्माजीने धन्य एवं कृतकृत्य हैं। उनके दर्शन मात्रसे पापियोंके भी मुझे वतायी थी। भगवान् श्रीविष्णुने माधव मासको पाप दूर हो जाते हैं और वे भगवद्भावसे भावित होकर महिमाका विशेष प्रचार किया है। अतः इस महीने के