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पातालखण्ड]
. वाल्मीकिजीके द्वारा सीनाकी शुद्धताका परिचय .
[बिना किसी अपराधके] हत्या कर डाली है।* तदनन्तर, एक दिन वाल्मीकिजी नदीके मनोहर
यह वाक्य छन्दोबद्ध श्लोकके रूपमें निकला; इसे तटपर ध्यान लगा रहे थे। उस समय उनके हृदयमें सुन्दर सुनकर मुनिके शिष्योंने प्रसन्न होकर कहा- 'स्वामिन् ! रूपधारी श्रीरामचन्द्रजी प्रकट हुए। नील पद्य-दलके आपने शाप देनेके लिये जिस वाक्यका प्रयोग किया है, समान श्याम विग्रहवाले कमलनयन श्रीरामचन्द्रजीका उसमें सरस्वती देवीने श्लोकका विस्तार किया है। मुनिश्रेष्ठ ! यह वाक्य अत्यन्त मनोहर श्लोक बन गया है।' उस समय ब्रह्मर्षि वाल्मीकिजीके मनमें भी बड़ी प्रसत्रता हुई। उसो अवसरपर ब्रह्माजीने आकर
दर्शन पाकर मुनिने उनके भूत, वर्तमान और भविष्य
तीनों कालके चरित्रोंका साक्षात्कार किया। फिर तो उन्हें वाल्मीकिजीसे कहा-'मुनीश्वर ! तुम धन्य हो। आज बड़ा आनन्द मिला और उन्होंने मनोहर पदों तथा नाना सरस्वती तुम्हारे मुखमें स्थित होकर श्लोकरूपमें प्रकट प्रकारके छन्दोंमें रामायणकी रचना की। उसमें अत्यन्त हुई है। इसलिये अब तुम मधुर अक्षरों में सुन्दर मनोरम छ: काण्ड है-बाल, आरण्यक, किष्किन्धा, रामायणकी रचना करो। मुखसे निकलनेवाली वही वाणी सुन्दर, युद्ध तथा उत्तर । महामते ! जो इन काण्डोंको घन्य है, जो श्रीरामनामसे युक्त हो। इसके सिवा, अन्य सुनता है, वह मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है। जितनी बातें हैं, सब कामकी कथाएँ हैं, ये मनुष्योंके लिये बालकाण्डमें-राजा दशरथने प्रसन्नतापूर्वक पुत्रेष्टि यज्ञ केवल सूतक (अपवित्रता) उत्पन्न करती हैं। अतः तुम करके चार पुत्र प्राप्त किये, जो साक्षात् सनातन ब्रह्म श्रीरामचन्द्रजीके लोकप्रसिद्ध चरित्रको लेकर काव्य रचना श्रीहरिके अवतार थे। फिर श्रीरामचन्द्रजीका विश्वामित्रके करो, जिससे पद-पदपर पापियोंके पापका निवारण यज्ञमें जाना, वहाँसे मिथिलामें जाकर सीतासे विवाह होगा।' इतना कहकर ब्रह्माजी सम्पूर्ण देवताओके साथ करना, मार्गमें परशुरामजीसे मिलते हुए अयोध्यापुरीमें अन्तर्धान हो गये।
आना, वहाँ युवराजपदपर अभिषेक होनेकी तैयारी, फिर
* मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्रौशपक्षिणोरेकमयधीः
काममोहितम् ॥