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. अर्चयस्व हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
झाड़-बुहारकर साफ करना, उसे लीपना तथा पहलेके त्रिविक्रमको तथा चक्र, गदा, पद्य और शङ्खधारी चढ़े हुए निर्माल्यको दूर हटाना-'अभिगमन' कहलाता वामनमूर्तिको प्रणाम है। चक्र, पय, शङ्ख और गदा है। पूजाके लिये चन्दन और पुष्पादिके संग्रहका नाम धारण करनेवाले श्रीधररूपको नमस्कार है। चक्र, गदा, 'उपादान' है। अपने साथ अपने इष्टदेवकी आत्मभावना शङ्ख तथा पद्मधारी हृषीकेश ! आपको प्रणाम है। पद्य, करना अर्थात् मेरा इष्टदेव मुझसे भिन्न नहीं है, वह मेरा शङ्ख. गदा और चक्र ग्रहण करनेवाले पद्मनाभविग्रहको ही आत्मा है; इस तरहकी भावनाको दृढ़ करना 'योग' नमस्कार है। शङ्ख, गदा, चक्र और पद्मधारी दामोदर ! कहा गया है। इष्टदेवके मन्त्रका अर्थानुसन्धानपूर्वक आपको मेरा प्रणाम है। शङ्ख, कमल, चक्र तथा गदा जप करना 'स्वाध्याय' है। सूक्त और स्तोत्र आदिका धारण करनेवाले संकर्षणको नमस्कार है। चक्र, शङ्ख पाठ, भगवान्का कीर्तन तथा भगवत्-तत्त्व आदिका गदा तथा पासे युक्त भगवान् वासुदेव ! आपको प्रणाम प्रतिपादन करनेवाले शास्त्रोंका अभ्यास भी 'स्वाध्याय' है। शङ्ख, चक्र, गदा और कमल आदिके द्वारा प्रद्युम्नमूर्ति कहलाता है। अपने आराध्यदेवकी यथार्थ विधिसे पूजा धारण करनेवाले भगवान्को नमस्कार है। गदा, शङ्ख, करनेका नाम 'इज्या' है। सुव्रते! यह पाँच प्रकारकी कमल तथा चक्रधारी अनिरुद्धको प्रणाम है। पद्म, शद्ध, पूजा मैंने तुम्हें बतायी। यह क्रमशः सार्टि, सामीप्य, गदा और चक्रसे चिह्नित पुरुषोत्तमरूपको नमस्कार है। सालोक्य, सायुज्य और सारूप्य नामक मुक्ति प्रदान गदा, शङ्ख, चक्र और पद्य ग्रहण करनेवाले अधोक्षजको करनेवाली है।
प्रणाम है। पद्य, गदा, शङ्ख और चक्र धारण करनेवाले अव प्रसङ्गवश शालग्राम-शिलाकी पूजाके नृसिंह भगवान्को नमस्कार है। पद्म, चक्र, शङ्ख और सम्बन्धमें कुछ निवेदन करूंगा। चार भुजाधारी भगवान् गदा लेनेवाले अच्युतस्वरूपको प्रणाम है। गदा, पद्म, विष्णुके दाहिनी एवं ऊर्ध्वभुजाके क्रमसे अस्त्रविशेष चक्र और शङ्खधारी श्रीकृष्णविग्रहको नमस्कार है। ग्रहण करनेपर केशव आदि नाम होते हैं अर्थात्, दाहिनी जिस शालग्राम-शिलामें द्वार-स्थानपर परस्पर सटे
ओरका ऊपरका हाथ, दाहिनी ओरका नीचेका हाथ, हुए दो चक्र हो, जो शुरुवर्णकी रेखासे अङ्कित और बायों ओरका ऊपरका हाथ और बायीं ओरका नीचेका शोभासम्पन्न दिखायी देती हों, उसे भगवान् श्रीगदाधरका हाथ-इस क्रमसे चारों हाथोंमें शङ्ख, चक्र आदि स्वरूप समझना चाहिये । सङ्कर्षणमूर्तिमें दो सटे हुए चक्र आयुधोंको क्रम या व्यतिक्रमपूर्वक धारण करनेपर होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ भगवान्की भिन्न-भिन्न संज्ञाएँ होती है। उन्हीं संज्ञाओंका मोटा होता है। प्रद्युम्नके स्वरूपमें कुछ-कुछ पीलापन निर्देश करते हुए यहाँ भगवान्का पूजन बतलाया जाता होता है और उसमें चक्रका चिह्न सूक्ष्म रहता है। है। उपर्युक्त क्रमसे चारों हाथोंमें शङ्ख, चक्र, गदा और अनिरुद्धकी मूर्ति गोल होती है और उसके भीतरी भागमें पद्म धारण करनेवाले विष्णुका नाम 'केशव' है। पद्य, गहरा एवं चौड़ा छेद होता है; इसके सिवा, वह गदा, चक्र और शङ्कके क्रमसे शस्त्र धारण करनेपर उन्हें द्वारभागमें नौलवर्ण और तीन रेखाओंसे युक्त भी होती 'नारायण' कहते हैं। क्रमशः चक्र, शङ्ख, पद्म और गदा है। भगवान् नारायण श्यामवर्णके होते हैं, उनके ग्रहण करनेसे वे 'माधव' कहलाते हैं। गदा, पद्म, शङ्ख मध्यभागमें गदाके आकारकी रेखा होती है और उनका
और चक्र—इस क्रमसे आयुध धारण करनेवाले नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है। भगवान् नृसिंहकी भगवान्का नाम 'गोविन्द है। पद्य, शङ्ख, चक्र और मूर्तिमें चक्रका स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल गदाघारी विष्णुरूप भगवानको प्रणाम है। शङ्ख, पद्म, होता है तथा वे तीन या पाँच विन्दुओंसे युक्त होते हैं। गदा और चक्र धारण करनेवाले मधुसूदन-विग्रहको ब्रह्मचारीके लिये उन्हींका पूजन विहित है। वे भक्तोंकी नमस्कार है। गदा, चक्र, शङ्ख और पद्मसे युक्त रक्षा करनेवाले हैं। जिस शालग्राम-शिलामें दो चक्रके