________________
पातालखण्ड ]
• नाम-कीर्तनकी महिमा तथा भगवानकी विशेष आराधनाका वर्णन .
५६७
आराधना करता है, वह सब पापोंसे मुक्त होकर विष्णु- करानेसे अवश्य पूर्ण हो जाती है। माधके शुक्लपक्षमें लोकमें जाता है।
वसन्त पञ्चमीको भगवान् केशवको नहलाकर आमके आषाढ़ शुक्ला द्वितीयाको भगवान्को सवारी पल्लव तथा भाँति-भांतिके सुगन्धित चूर्ण आदिके द्वारा निकालकर रथयात्रा-सम्बन्धी उत्सव करना चाहिये। विधिपूर्वक उनकी पूजा करे। तत्पश्चात् 'जय कृष्ण' तथा आषाढ़ शुक्रा एकादशीको भगवान्के शयनका कहकर भगवान्का स्मरण करते हुए उन्हें एक मनोहर उत्सव मनाना चाहिये फिर श्रावणके महीनेमें श्रावणीकी उपवन में प्रदक्षिणभावसे ले जाय और वहाँ दोलोत्सव विधिका पालन करना उचित है। भाद्रपद कृष्ण मनावे। उक्त उपवनको प्रज्वलित दीपकोंके द्वारा अष्टमीको भगवान् श्रीकृष्ण जन्मका दिन है, उस दिन प्रकाशित किया जाय । उसमें ऐसे-ऐसे वृक्ष हों, जो सभी व्रत रखना चाहिये। तत्पश्चात् आश्विनके महीनेमें सोये ऋतुओंमें फूलोंसे भरे रहें । फल-फूलोंसे सुशोभित नाना हुए भगवान्के करवट बदलनेका उत्सव मनाना उचित प्रकारके वृक्ष, पुष्पनिर्मित चैदोवे, जलसे भरे हुए घट, है। उसके बाद समयानुसार श्रीहरिके शयनसे उठनेका आमकी छोटी-बड़ी शाखाएँ तथा छत्र और चैवर आदि उत्सव करे, अन्यथा वह मनुष्य विष्णुका द्रोह करनेवाला वस्तुएँ उस वनकी शोभा बढ़ा रही हो। कलियुगमें माना जाता है। आश्विनके शुक्लपक्षमें भगवती विशेषरूपसे दोलोत्सवका विधान है। फाल्गुनकी महामायाका भी पूजन करना कर्तव्य है। उस समय चतुर्दशीको आठवें पहरमें अथवा पूर्णमासी या विष्णुरूपा भगवतीकी सोने या चाँदीकी प्रतिमा बना लेनी प्रतिपदाकी सन्धिमें भगवान्की भक्तिपूर्वक विधिवत् पूजा चाहिये। हिंसा और द्वेषका परित्याग करना चाहिये; करे। उस समय श्वेत, लाल, गौर तथा पीले-इन चार क्योंकि विष्णुकी पूजा करनेवाला पुरुष धर्मात्मा होता है प्रकारके चूोका उपयोग करे, उनमें कर्पूर आदि [और हिंसा, द्वेष आदि महान् अधर्म है] । कार्तिक सुगन्धित पदार्थ मिले होने चाहिये। हल्दीका रंग मिला पुण्यमास है; उसमें इच्छानुसार पुण्य करे। भगवान् देनेसे उन चूणोंक रंग तथा रूप और भी मनोहर हो जाते दामोदरके लिये प्रतिदिन किसी ऊँचे स्थानपर दीपदान है। इनके सिवा, अन्य प्रकारके रंग-रूपवाले चूर्णोद्वारा करना उचित है। दीपक चार अङ्गलका चौड़ा हो और भी परमेश्वरको प्रसन्न करे । एकादशीसे लेकर पञ्चमीतक उसमें सात बत्तियाँ जलायी जाय। फिर पक्षके अन्तमें इस उत्सवको पूरा करे अथवा पाँच या तीन दिनतक अमावास्याको सुन्दर दीपावलीका उत्सव मनाया जाय। दोलोत्सव करना उचित है। यदि मनुष्य एक बार भी अगहनके शुक्लपक्षमें षष्ठी तिथिको सफेद वस्त्रोंके द्वारा झूलेमें झूलते हुए दक्षिणाभिमुख श्रीकृष्णका दर्शन कर भगवान् जगदीशकी और विशेषतः ब्रह्माजीकी पूजा लें तो वे पापराशिसे मुक्त हो जाते हैं। इसमें तनिक भी करे। पौष मासमें भगवान्का पुष्पमिश्रित जलसे सन्देह नहीं है। अभिषेक तथा तरल चन्दन वर्जित है। मकरसंक्रान्तिके महाभागे ! जो मनुष्य वैशाख-मासमें जलसे भरे दिन तथा माघके महीनेमें अधिवासित तण्डुलका हुए सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टीके पात्रमें भगवान्के लिये नैवेद्य लगावे और 'ॐ विष्णवे नमः' श्रीशालग्रामको या भगवान्की प्रतिमाको पधराकर इस मन्त्रका उच्चारण करे। फिर ब्राह्मणोंको देवाधिदेव जलमें ही उसका पूजन करता है, उसके पुण्यकी गणना भगवानके सामने बिठाकर भक्तिपूर्वक भोजन करावे नहीं हो सकती। 'दमन' (दौना) नामक पुष्पका तथा उन भगवद्भक्त द्विजोंकी भगवद्बुद्धिसे पूजा करे। आरोपण करके उसे श्रीविष्णुको अर्पित करना चाहिये। एक भगवद्भक्त पुरुषके भोजन करा देनेपर करोड़ों वैशाख, श्रावण अथवा भाद्रपद मासमें 'दमनार्पण' मनुष्योंके भोजन करानेका फल होता है। यदि पूजामें करना उचित है। पूर्वी हवा चलनेपर ही दमनार्पण आदि किसी अङ्गकी कमी रह गयी हो तो वह ब्राह्मण-भोजन कर्म होते हैं; उस समय विधिपूर्वक भगवान्का पूजन