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. अर्चयस्थ हषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् .
[संक्षिप्त पयपुराण
जप करनेसे मनुष्य पापमुक्त हो जाता है। दिन, रात और बीचकी ओर अङ्कशका चिह्न है, जो भक्तोंके चित्तरूपी सन्ध्या-सभी समय नाम-स्मरण करना चाहिये । दिन- हाथीका दमन करनेवाला है। श्रीहरि अपने अङ्गष्टके रात हरि-नामका जप करनेवाला पुरुष श्रीकृष्णका प्रत्यक्ष पर्वमें भोग-सम्पत्तिके प्रतीकभूत यवका चिह्न धारण दर्शन पाता है। अपवित्र हो या पवित्र, सब समय, करते हैं तथा मूल-भागमें गदाकी रेखा है, जो समस्त निरन्तर भगवन्नामका स्मरण करनेसे वह क्षणभरमें देहधारियोंके पापरूपी पर्वतको चूर्ण कर डालनेवाली है। भव-बन्धनसे छुटकारा पा जाता है।* भगवानका नाम इतना ही नहीं, वे अजन्मा भगवान् सम्पूर्ण विद्याओंको नाना प्रकारके अपराधोंसे युक्त मनुष्यका पाप भी हर प्रकाशित करनेके लिये भी पद्म आदि चिह्नको धारण लेता है। कलियुगमे यज्ञ, व्रत, तप और दान-कोई भी करते हैं। दाहिने पैरमें जो-जो चिह्न हैं, उन्हीं-उन्हीं कर्म सब अङ्गोंसे पूर्ण नहीं उतरता; केवल गङ्गाका स्रान चिह्नोंको करुणानिधान प्रभु अपने बायें पैरमें भी धारण
और हरि-नामका कीर्तन-ये ही दो साधन विघ्न- करते हैं। इसलिये गोविन्दके माहात्म्यका, जो आनन्दमय बाधाओंसे रहित हैं। कल्याणी ! हत्याजनित हजारों रसके कारण अत्यन्त मनोरम जान पड़ता है, सदा श्रवण भयङ्कर पाप तथा दूसरे-दूसरे पातक भी भगवान्के और कीर्तन करना चाहिये। ऐसा करनेवाले मनुष्यकी गोविन्द नामका उच्चारण करनेसे नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य मुक्ति होने में तनिक भी सन्देह नहीं है। अपवित्र हो या पवित्र अथवा किसी भी दशा में क्यों न अब मैं प्रत्येक मासका वह कृत्य बतला रहा है, स्थित हो, जो पुण्डरीकाक्ष (कमल-नयन) भगवान् जो भगवान् विष्णुको प्रसन्न करनेवाला है। जेठके विष्णुका स्मरण करता है, वह बाहर और भीतर-सब महीनेमें पूर्णिमा तिथिको स्रान आदिसे पवित्र होकर
ओरसे पवित्र हो जाता है। । केवल भगवन्नामोंके यापूर्वक श्रीहरिका स्नानोत्सव मनाना चाहिये, इससे स्मरणसे तथा भगवान्के चरणोंका चिन्तन करनेसे शुद्धि दिन, पक्ष, मास, ऋतु और वर्षभरके पाप नष्ट हो जाते होती है। सोने, चाँदी, भिगोये हुए आटे अथवा हैं। कोटि-कोटि सहस्र जो पातक और उपपातक होते पुष्प-मालाके द्वारा भगवान्के चरणोंकी आकृति बनाकर हैं, उन सबका नाश हो जाता है। नानके समय कलशमें उसे चक्र आदि चिह्नोंसे अङ्कित कर ले, उसके बाद जल लेकर भगवान्के मस्तकपर धीरे-धीरे गिराना पूजन आरम्भ करे। पूजनके समय भगवचरणोंका इस चाहिये और पुरुषसूक्तके मन्त्रों तथा पावमानी प्रकार ध्यान करे-भगवान् अपने दाहिने पैरके ऋचाओंका क्रमशः पाठ करते रहना चाहिये । नारियलअँगूठेकी जड़में प्रणतजनोंके संसार-बन्धनका उच्छेद युक्त जल, तालफलसे युक्त जल, रत्लमिश्रित जल, करनेके लिये चक्रका चिह्न धारण करते हैं। मध्यमा चन्दनमिश्रित जल तथा पुष्पयुक्त जल-इन पाँच अँगुलीके मध्यभागमें अच्युतने अत्यन्त सुन्दर कमलका उपचारोंसे स्नान कराकर अपने वैभव-विस्तारके अनुसार चिह्न धारण कर रखा है; उसका उद्देश्य है-ध्यान भगवानकी आराधना करे। तत्पश्चात् 'घं घण्टायै नमः' करनेवाले भक्तोंके चित्तरूपी भ्रमरको लुभाना। कमलके इस मन्त्रको पढ़कर घण्टा बजावे और इस प्रकार नीचे वे ध्वजका चिह्न धारण करते हैं, जो मानो समस्त प्रार्थना करे-'अपनी ऊँची आवाजसे पतितोंकी अनर्थोंको परास्त करके फहरानेवाली विजय-ध्वजा है। पातकराशिका निवारण करनेवाली घण्टे! घोर कनिष्ठिका अँगुलोको जड़मे वनका चिह्न है, जो भक्तोंकी संसारसागरमें पड़े हुए मुझ पापीकी रक्षा करो।' जो पापराशिको विदीर्ण करनेवाला है। पैरके पार्श्व-भागमें श्रोत्रिय विद्वान् ब्राह्मण पवित्रभावसे इस प्रकार भगवानकी
* अशुचिर्वा शुचिर्वापि सर्वकालेषु सर्वदा । नामसंस्मरणादेव संसारापुच्यते क्षणात् ।। (८०।७.८) + अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽगि या । यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाहाभ्यन्तरः शुचिः ।। (८०।११)