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पातालखण्ड ]
नाम-कीर्तनकी महिमा तथा भगवान्की विशेष आराधनाका वर्णन .
पत्तेमें भोजन करना निषिद्ध है। जला हुआ तथा भगवान्को अर्पण न किया हुआ अत्र, जम्बीर और बिजौरा नीबू, शाक तथा खाली नमक भी वैष्णवको नहीं खाना चाहिये। यदि दैवात् कभी खा ले तो भगवन्नामका स्मरण करना चाहिये। हेमन्त ऋतुमें उत्पन्न होनेवाला सफेद धान जो सड़ा हुआ न हो, मूँग, तिल, यव, केराव, कंगनी, नीवार (तीना), शाक, हिलमोचिका (हिलसा), कालशाक, बथुवा, मूली, दूसरे दूसरे मूल-शाक, सेंधा और साँभर नमक, गायका दही, गायका घी, बिना माखन निकाला हुआ गायका दूध, कटहल, आम, हरें, पिप्पली, जीरा, नारङ्गी, इमली, केला, लवली (हरफा रेवरी), आँवलेका फल, गुड़के सिवा इखके रससे तैयार होनेवाली अन्य सभी वस्तुएँ तथा विना तेलके पकाया हुआ अत्र – इन सभी खाद्य पदार्थोंको मुनिलोग हविष्यात्र कहते हैं।
जो मनुष्य तुलसीके पत्र और पुष्प आदिसे युक्त माला धारण करता है, उसको भी विष्णु ही समझना चाहिये। आँवलेका वृक्ष लगाकर मनुष्य विष्णुके समान हो जाता है। आँवलेके चारों ओर साढ़े तीन सौ हाथकी
भूमिको कुरुक्षेत्र जानना चाहिये। तुलसीकी लकड़ीके रुद्राक्षके समान दाने बनाकर उनके द्वारा तैयार की हुई माला कण्ठमें धारण करके भगवान्का पूजन आरम्भ करना चाहिये। भगवान्को चढ़ायी हुई तुलसीकी माला मस्तकपर धारण करे तथा भगवान्को अर्पण किये हुए चन्दनके द्वारा अपने अङ्गपर भगवान्का नाम लिखे । यदि तुलसीके काष्ठकी बनी हुई मात्रओंसे अलङ्कृत होकर मनुष्य देवताओं और पितरोंके पूजनादि कार्य करे तो वह कोटिगुना फल देनेवाला होता है। जो मनुष्य तुलसीके काष्ठकी बनी हुई माला भगवान् विष्णुको अर्पित करके पुनः प्रसादरूपसे उसको भक्तिपूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं। पाद्य आदि उपचारोंसे तुलसीकी पूजा करके इस मन्त्रका उच्चारण करे – जो दर्शन करनेपर सारे पापसमुदायका नाश कर देती है, स्पर्श करनेपर शरीरको पवित्र बनाती है, प्रणाम करनेपर रोगोंका निवारण करती है, जलसे सींचनेपर यमराजको भी भय पहुँचाती है, आरोपित करनेपर भगवान् श्रीकृष्णके समीप ले जाती है और भगवान्के चरणोंमें चढ़ानेपर मोक्षरूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवीको नमस्कार है। * ⭑
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पार्वतीजीने पूछा- कृपानिधे ! विषयरूपी माहोंसे भरे हुए भयङ्कर कलियुगके आनेपर संसारके सभी मनुष्य पुत्र, स्त्री और धन आदिकी चिन्तासे व्याकुल रहेंगे, ऐसी दशामें उनके उद्धारका क्या उपाय है ? यह बतानेकी कृपा कीजिये 1
महादेवजीने कहा-देवि ! कलियुगमें केवल हरिनाम ही संसारसमुद्रसे पार लगानेवाला है। जो लोग प्रतिदिन 'हरे राम हरे कृष्ण' आदि प्रभुके मङ्गलमय नामोंका उच्चारण करते हैं, उन्हें कलियुग बाधा नहीं
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नाम - कीर्तनकी महिमा, भगवान्के चरण-चिह्नोंका परिचय तथा प्रत्येक मासमें भगवान्की विशेष आराधनाका वर्णन
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पहुँचाता, अतः बीच-बीचमें जो आवश्यक कर्म प्राप्त हों, उन्हें करते-करते भगवान्के नामोंका भी स्मरण करते रहना चाहिये। जो बारम्बार 'कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण' की रट लगाता रहता है तथा मेरे और तुम्हारे नामका भी व्यतिक्रमपूर्वक अर्थात् गौरीशङ्कर आदि कहकर जप किया करता है, वह भी जैसे आग रूईकी ढेरीको जला डालती है उसी प्रकार अपनी पाप राशिको भस्म करके उससे मुक्त हो जाता है। जय अथवा श्रीशब्दपूर्वक जो तुम्हारा मेरा या श्रीकृष्णका मङ्गलमय नाम है, उसका
* या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी । प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता न्यस्ता तचरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः ॥
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