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पातालखण्ड]
• श्रीकृष्णके द्वारा ब्रज तथा द्वारकामें निवास करनेवालोंकी मुक्तिका वर्णन .
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चिह्न विषमभावसे स्थित हो, तीन लिङ्ग हो तथा तीन चतुर्वृह चारसे, वासुदेव पाँचसे, प्रद्युम्न छ-से, संकर्षण रेखाएं दिखायी देती हो; वह वाराह भगवान्का स्वरूप है, सातसे, पुरुषोत्तम आठसे, नवव्यूह नवसे, दशावतार उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है। भगवान् दससे, अनिरुद्ध ग्यारहसे और द्वादशात्मा बारह चक्रोंसे वाराह भी सबकी रक्षा करनेवाले हैं। कच्छपकी मूर्ति युक्त होकर जगत्की रक्षा करते हैं। इससे अधिक चक्रश्यामवर्णकी होती है। उसका आकार पानीको भंवरके चिह्न धारण करनेवाले भगवान्का नाम अनन्त है। दण्ड, समान गोल होता है। उसमें यत्र-तत्र विन्दुओंके चिह्न कमण्डलु और अक्षमाला धारण करनेवाले चतुर्मुख देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंगका होता है। ब्रह्मा तथा पाँच मुख और दस भुजाओंसे सुशोभित श्रीधरकी मूर्तिमें पाँच रेखाएँ होती हैं, वनमालीके वृषध्वज महादेवजी अपने आयुधोंसहित शालग्रामस्वरूपमें गदाका चिह्न होता है। गोल आकृति, शिलामें स्थित रहते हैं। गौरी, चण्डी, सरस्वती और मध्यभागमें चक्रका चिह्न तथा नीलवर्ण, यह वामन- महालक्ष्मी आदि माताएँ, हाथमें कमल धारण करनेवाले मूर्तिकी पहचान है। जिसमें नाना प्रकारको अनेको सूर्यदेव, हाथीके समान कंधेवाले गजानन गणेश, छः मूर्तियो तथा सर्प-शरीरके चिह्न होते हैं, वह भगवान् मुखोवाले स्वामी कार्तिकेय तथा और भी बहुत-से अनन्तकी प्रतिमा है। दामोदरकी मूर्ति स्थूलकाय एवं देवगण शालग्राम-प्रतिमामें मौजूद रहते हैं, अतः नीलवर्णकी होती है। उसके मध्यभागमें चक्रका चिह्न मन्दिरमें शालग्रामशिलाको स्थापना अथवा पूजा करनेपर होता है। भगवान् दामोदर नौल चिह्नसे युक्त होकर ये उपर्युक्त देवता भी स्थापित और पूजित होते हैं। जो सङ्कर्षणके द्वारा जगत्की रक्षा करते हैं। जिसका वर्ण पुरुष ऐसा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष लाल है, तथा जो लम्बी-लम्बी रेखा, छिद्र, एक चक्र आदिकी प्राप्ति होती है।
और कमल आदिसे युक्त एवं स्थूल है, उस शालग्रामको गण्डकी अर्थात् नारायणी नदीके एक प्रदेशमें ब्रह्माकी मूर्ति समझनी चाहिये। जिसमें बृहत् छिद्र, स्थूल शालग्रामस्थल नामका एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँसे चक्रका चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्रीकृष्णका स्वरूप निकलनेवाले पत्थरको शालग्राम कहते हैं। शालग्रामहै। वह विन्दुयुक्त और विन्दुशून्य दोनों ही प्रकारका देखा शिलाके स्पर्शमात्रसे करोड़ों जन्मोंके पापका नाश हो जाता है। हयग्रीव मूर्ति अङ्कशके समान आकारवाली जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो और पाँच रेखाओंसे युक्त होती है। भगवान् वैकुण्ठ उसके फलके विषयमें कहना ही क्या है; वह भगवान्के कौस्तुभमणि धारण किये रहते हैं। उनकी मूर्ति बड़ी समीप पहुँचानेवाला है। बहुत जन्मोंके पुण्यसे यदि कभी निर्मल दिखायी देती है। वह एक चक्रसे चिह्नित और गोष्पदके चिह्नसे युक्त श्रीकृष्ण-शिला प्राप्त हो जाय तो श्याम वर्णकी होती है। मत्स्य भगवान्की मूर्ति बृहत् उसीके पूजनसे मनुष्यके पुनर्जन्मकी समाप्ति हो जाती है। कमलके आकारकी होती है। उसका रंग श्वेत होता है पहले शालग्राम-शिलाको परीक्षा करनी चाहिये; यदि तथा उसमें हारकी रेखा देखी जाती है। जिस शालग्रामका वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भागमें एक रेखा दिखायी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणीको मानी गयी देती हो तथा जो तीन चक्रोंके चिह्नसे युक्त हो, वह है और यदि उसमें दूसरे किसी रंगका सम्मिश्रण हो तो भगवान् श्रीरामचन्द्रजीका स्वरूप है. वे भगवान् सबकी वह मिश्रित फल प्रदान करनेवाली होती है। जैसे सदा रक्षा करनेवाले हैं। द्वारकापुरीमें स्थित शालग्रामस्वरूप काठके भीतर छिपी हुई आग मन्थन करनेसे प्रकट होती भगवान् गदाधरको नमस्कार है, उनका दर्शन बड़ा ही है, उसी प्रकार भगवान् विष्णु सर्वत्र व्याप्त होनेपर भी उत्तम है। वे भगवान् गदाधर एक चक्रसे चिह्नित देखे शालग्रामशिलामें विशेषरूपसे अभिव्यक्त होते है। जो जाते हैं। लक्ष्मीनारायण दो चक्रोसे, त्रिविक्रम तीनसे, प्रतिदिन द्वारकाकी शिला-गोमतीचक्रसे युक्त बारह संप पुः १९