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पानालखण्ड ]
. श्रीकृष्णके द्वारा ब्रज तथा द्वारकामे निवास करनेवालोकी मुक्तिका वर्णन .
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भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा व्रज तथा द्वारकामें निवास करनेवालोंकी मुक्ति, वैष्णवोंकी द्वादश शुद्धि, पाँच प्रकारकी पूजा, शालग्रामके स्वरूप और महिमाका वर्णन, तिलककी विधि, अपराध और उनसे छूटनेके उपाय, हविष्यान्न और तुलसीकी महिमा
महादेवजी कहते हैं-देवि ! एक समयकी बात ब्रज और द्वारकापुरीमे निवास करनेवाले समस्त चराचर है, भगवान् श्रीकृष्ण द्वारकासे मथुरामें आये और वहाँसे प्राणियोंको भवबन्धनसे मुक्त करके उन्हें योगियोंके यमुना पार करके नन्दके ब्रजमें गये। वहाँ उन्होंने अपने ध्येयभूत परम सनातन धाममें स्थापित कर दिया। पिता नन्दजी तथा यशोदा मैयाको प्रणाम करके उन्हें तदनन्तर, वे स्वयं भी अपने परम धामको पधारे।। भलीभाँति सान्त्वना दी, फिर पिता-माताने भी उन्हें पार्वतीने कहा-भगवन् ! वैष्णवोंका जो यथार्थ छातीसे लगाया। इसके बाद वे बड़े-बूढ़े गोपोंसे मिले। धर्म है, जिसका अनुष्ठान करके सब मनुष्य भवसागरसे उन सबको आश्वासन दिया तथा बहुत-से वस्त्र और पार हो जाते हैं, उसका मुझसे वर्णन कीजिये। आभूषण आदि भेटमें देकर वहाँ रहनेवाले सब लोगोंको महादेवजीने कहा-देवि! प्रथम वैष्णवोंकी सन्तुष्ट किया।
द्वादश' प्रकारको शुद्धि बतायी जाती है। भगवान्के - तत्पश्चात् पावन वृक्षोंसे भरे हुए यमुनाके रमणीय मन्दिरको लोपना, भगवानकी प्रतिमाके पीछे-पीछे जाना तटपर गोपाङ्गनाओके साथ श्रीकृष्णने तीन राततक वहाँ तथा भक्तिपूर्वक उनकी प्रदक्षिणा करना-ये तीन कर्म सुखपूर्वक निवास किया। उस समय उस स्थानपर अपने चरणोंकी शुद्धि करनेवाले हैं। भगवान्की पूजाके लिये पुत्रों और स्त्रियोंसहित नन्दगोप आदि सब लोग, यहाँतक भक्तिभावके साथ पत्र और पुष्पोंका संग्रह करना-यह कि पशु, पक्षी और मृग आदि भी भगवान् वासुदेवकी हाथोंकी शुद्धिका उपाय है। यह शुद्धि सब प्रकारको कृपासे दिव्य रूप धारण कर विमानपर आरूढ़ हुए और शुद्धियोंसे बढ़कर है। भक्तिपूर्वक भगवान् श्रीकृष्णके परम धाम-वैकुण्ठलोकको चले गये। इस प्रकार नाम और गुणोंका कीर्तन वाणीको शुद्धिका उपाय बताया नन्दके व्रजमें निवास करनेवाले सब लोगोंको अपना गया है। उनकी कथाका श्रवण और उत्सवका दर्शननिरामय पद प्रदान करके भगवान् श्रीकृष्ण देवियों और ये दो कार्य क्रमशः कानों और नेत्रोंकी शुद्धि करनेवाले देवताओंके मुखसे अपनी स्तुति सुनते हुए शोभा-सम्पन्न कहे गये हैं। मस्तकपर भगवान्का चरणोदक, निर्माल्य द्वारकापुरीमें आये।
तथा माला धारण करना-ये भगवान्के चरणोंमें पड़े वहाँ वसुदेव, उग्रसेन, संकर्षण, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध हुए पुरुषके लिये सिरकी शुद्धिके साधन हैं। भगवान्के और अक्रूर आदि यादव प्रतिदिन उनकी पूजा करते थे निर्माल्यभूत पुष्प आदिको सूंघना अन्तःशुद्धि तथा तथा वे विश्वरूपधारी भगवान् दिव्य रत्रोंद्वारा बने घ्राणशुद्धिका उपाय माना गया है। श्रीकृष्णके युगल लतागृहोंमें पारिजात-पुष्प बिछाये हुए मृदुल पलंगोंपर चरणोंपर चढ़ा हुआ पत्र-पुष्प आदि संसारमें एकमात्र शयन करके अपनी सोलह हजार आठ रानियोंके साथ पावन है, वह सभी अङ्गोंको शुद्ध कर देता है। विहार किया करते थे। इस प्रकार सम्पूर्ण देवताओंका, भगवानकी पूजा पाँच प्रकारकी बतायी गयी है। उन हित और समस्त भूभारका नाश करनेके लिये भगवान् पाँचों भेदोंको सुनो-अभिगमन, उपादान, योग, यदुवंशमें अवतीर्ण हुए थे। उन्होंने सभी राक्षसोंका स्वाध्याय और इज्या-ये ही पूजाके पाँच प्रकार हैं; अब संहार करके पृथ्वीके महान् भारको दूर किया तथा नन्दके तुम्हें इनका क्रमशः परिचय दे रहा हूँ। देवताके स्थानको
१-दो पैर, दो हाथ, दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, एक मस्तक और एक अन्तःकरण-इन बारह अङ्गोंकी शुद्धि ही द्वादश शुद्धि है।