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पातालखण्ड ]
• वाल्मीकिजीके द्वारा सीताकी शुद्धताका परिचय .
प्रदान करेंगे।' कुमार कुश और लव नहीं चाहते थे कि इच्छाके कारण यहाँसे मुनियोंको प्रिय लगनेवाले वनमें
गयी थीं। वहाँ तुमने मुनिपलियोंका पूजन किया और मुनियोंके भी दर्शन किये; अब तो तुम्हारी इच्छा पूरी हुई ! अब क्यों नहीं आती? जानकी ! स्त्री कहीं भी क्यों न जाय, पति ही उसके लिये एकमात्र गति है। वह गुणहीन होनेपर भी पत्नीके लिये गुणोंका सागर है। फिर यदि वह मनके अनुकूल हुआ तब तो उसकी मान्यताके विषयमें कहना ही क्या है। उत्तम कुलकी स्त्रियाँ जो-जो कार्य करती हैं, वह सब पतिको सन्तुष्ट करनेके लिये ही होता है। परन्तु मैं तो तुमपर पहलेसे ही विशेष सन्तुष्ट हूँ और इस समय वह सन्तोष और भी बढ़ गया है। त्याग, जप, तप, दान, व्रत, तीर्थ और दया आदि सभी साधन मेरे प्रसन्न होनेपर ही सफल होते हैं। मेरे सन्तुष्ट होनेपर सम्पूर्ण देवता सन्तुष्ट हो जाते हैं, इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है।' __ लक्ष्मणने कहा-भगवन् ! सीताको ले आनेके
उद्देश्यसे प्रसन्न होकर आपने जो-जो बातें कहीं है, वह हम माताके चरणोंसे अलग हों; फिर भी उनकी आज्ञा सब मैं उन्हें विनयपूर्वक सुनाऊँगा। मानकर वे लक्ष्मणके साथ गये। वहाँ पहुँचनेपर भी वे ऐसा कहकर लक्ष्मणने श्रीरघुनाथजीके चरणोंमें वाल्मीकिजीके ही चरणोंके निकट गये। लक्ष्मणने भी प्रणाम किया और अत्यन्त वेगशाली रथपर सवार हो वे बालकोंके साथ जाकर पहले महर्षिको ही प्रणाम किया। तुरंत सीताके आश्रमपर चल दिये। तदनन्तर फिर वाल्मीकि, लक्ष्मण तथा वे दोनों कुमार सब एक वाल्मीकिजीने श्रीरामचन्द्रजीके दोनों पुत्रोंको ओर, जो साथ मिलकर चले और श्रीरामचन्द्रजीको सभामें स्थित परम शोभायमान और अत्यन्त तेजस्वी थे, देखा तथा जान उनके दर्शनके लिये उत्कण्ठित हो वहीं गये। किञ्चित् मुसकराकर कहा- 'वत्स ! तुम दोनों वीणा लक्ष्मणने श्रीरामचन्द्रजीके चरणोंमें प्रणाम करके सीताके बजाते हुए मधुर स्वरसे श्रीरामचन्द्रजीके अद्भुत चरित्रका साथ जो कुछ बातचीत हुई थी, वह सब उनसे कह गान करो।' महर्षिके इस प्रकार आज्ञा देनेपर उन सुनायी। उस समय परम बुद्धिमान् लक्ष्मण हर्ष और बड़भागी बालकोंने महान् पुण्यदायक श्रीरामचरित्रका शोक-दोनों भावोंमें मन हो रहे थे।
गान किया, जो सुन्दर वाक्यों और उत्तम पदोंमें चित्रित श्रीरामचन्द्रजीने कहा-सखे ! एक बार फिर हुआ था, जिसमें धर्मकी साक्षात् विधि, पातिव्रत्यके वहाँ जाओ और महान् प्रयत्न करके सीताको शीघ्र यहाँ उपदेश, महान् धातनेह तथा उत्तम गुरुभक्तिका वर्णन ले आओ। तुम्हारा कल्याण हो । मेरी ये बातें जानकीसे हैं। जहाँ स्वामी और सेवककी नीति मूर्तिमान् दिखायी कहना-देवि ! क्या वनमें तपस्या करके तुमने मेरे देती है तथा जिसमें साक्षात् श्रीरघुनाथजीके हाथसे सिवा कोई दूसरी गति प्राप्त करनेका विचार किया है? पापाचारियोंको दण्ड मिलनेका वर्णन है। वालकोंके उस अथवा मेरे अतिरिक्त और कोई गति सुनी या देखी है जो गानसे सारा जगत् मुग्ध हो गया। स्वर्गके देवता भी मेरे बुलानेपर भी नहीं आ रही हो? तुम अपनी ही विस्मयमें पड़ गये। किनर भी वह गान सुनकर मूर्छित