________________ पातालखण्ड ] * सुकन्याके द्वारा पतिकी सेवा तथा अश्विनीकुमारोंका च्यवनको यौवन-दान . अपने अभीष्ट पूर्ण करनेवाले कुलदेवताके समान भाग अर्पण कर सकें तो हम इनके नेत्रोंमें स्पष्टरूपसे समझकर उनकी शुश्रूषा करती थी। जैसे शची इन्द्रकी सेवामें तत्पर होकर प्रसन्नता प्राप्त करती हैं, उसी प्रकार उस सुन्दरी सतीको अपने प्रियतम पतिकी सेवामें बड़ा आनन्द आता था। पति भी साधारण नहीं, तपस्याके भण्डार थे और उनका आशय (मनोभाव) बहुत ही गम्भीर था, तो भी वह उनकी प्रत्येक चेष्टाको जानती-हर एक अभिप्रायको समझती हुई शुश्रूषामें संलग्न रहती थी। वह सुन्दर शरीरवाली राजकुमारी सभी शुभ लक्षणोंसे सम्पन्न और कृशाङ्गी थी, तो भी फल, मूल और जलका आहार करती हुई अपने स्वामीके चरणोंकी सेवा करती थी। सदा पतिकी आज्ञा पालन करनेके लिये तैयार रहती और उन्हींके पूजन (आदरसत्कार) में समय बिताती थी। सम्पूर्ण प्राणियोंका हितसाधन करनेमें उसका अनुराग था। वह काम, दम्भ, द्वेष, लोभ, भय और मदका परित्याग करके सावधानीके साथ उद्यत रहकर सर्वदा च्यवन मुनिको सन्तुष्ट रखनेका यत्न करती थी। महाराज ! इस प्रकार वाणी, शरीर और देखनेकी शक्ति पैदा कर सकते हैं।' च्यवनने भी उन क्रियाके द्वारा मुनिकी सेवा करती हुई उस राजकुमारीने तेजस्वी देवताओंको यज्ञमें भाग देनेके लिये हामी भर एक हजार वर्ष व्यतीत कर दिये तथा अपनी कामनाको दी। तब वे दोनों अश्विनीकुमार अत्यन्त प्रसन्न होकर मनमें ही रखा [मुनिपर कभी प्रकट नहीं किया। महान् तपस्वी च्यवनसे बोले-'मुने ! सिद्धोंद्वारा तैयार एक समयकी बात है, मुनिके आश्रमपर देववैद्य किये हुए इस कुण्डमें आप गोता लगावें। ऐसा कहकर अश्विनीकुमार पधारे। सुकन्याने स्वागतके द्वारा उनका उन्होंने च्यवन मुनिको, जिनका शरीर वृद्धावस्थाका ग्रास सम्मान करके उन दोनोंका पूजन (आतिथ्य-सत्कार) बन चुका था तथा जिनकी नस-नाड़ियाँ साफ दिखायी किया। शर्याति-कुमारी सुकन्याके किये हुए पूजन तथा दे रही थीं, उस कुण्डमें प्रवेश कराया और स्वयं भी अर्ध्य-पाद्य आदिसे उन सुन्दर शरीरवाले अश्विनी- उसमें गोता लगाया। तत्पश्चात् उस कुण्डमेंसे तीन पुरुष कुमारोंके मनमें प्रसन्नता हुई। उन्होंने नेहवश उस प्रकट हुए जो अत्यन्त सुन्दर और नारियोंका मन सुन्दरीसे कहा-'देवि ! तुम कोई वर माँगो।' उन दोनों मोहनेवाले थे। उनका रूप एक ही समान था। सोनेके देववैद्योंको सन्तुष्ट देख बुद्धिमती नारियोंमें श्रेष्ठ हार, कुण्डल तथा सुन्दर वस्त्र-तीनोंके शरीरपर शोभा राजकुमारी सुकन्याने उनसे वर माँगनेका विचार किया। पा रहे थे। सुन्दर शरीरवाली सुकन्या उन तीनोंको अपने पतिके अभिप्रायको लक्ष्य करके उसने कहा- अत्यन्त रूपवान् और सूर्यके समान तेजस्वी देखकर 'देवताओ! यदि आप मुझपर प्रसन्न हैं तो मेरे पतिको अपने पतिको पहचान न सकी। तब वह साध्वी दोनों नेत्र प्रदान कीजिये।' सुकन्याका यह मनोहर वचन अश्विनीकुमारोंकी शरणमें गयी। सुकन्याके पातिव्रत्यसे सुनकर तथा उसके सतीत्वको देखकर उन श्रेष्ठ वैद्योंने सन्तुष्ट होकर उन्होंने उसके पतिको दिखा दिया और कहा-'यदि तुम्हारे पति यज्ञमें हमलोगोंको देवोचित ऋषिसे विदा ले वे दोनों विमानपर बैठकर स्वर्गको